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कहीं बहू के पेट में भूत का बच्चा तो नहीं?

"हां, माजी ना जाने क्यो सुबह उठते ही जी मचलाता है और दिन भर चक्कर आते हैं खाने का भी  कुछ जी नहीं करता", बहु ने कहा तो...उसके बाद क्या हुआ?

“हां, माजी ना जाने क्यो सुबह उठते ही जी मचलाता है और दिन भर चक्कर आते हैं खाने का भी  कुछ जी नहीं करता”, बहु ने कहा तो…उसके बाद क्या हुआ?

“अरे बहु! ले यह खा ले, ईश्वर ने चाहा तो इस बार तुझे संतान की प्राप्ति होगी। बाबा जी ने पूरे विश्वास से कहा है”, शांति काकी बाहर से आते ही बोली।

धर्मपुर गांव की शांति काकी का बस एक ही बेटा था सूरज। 5 बरस पहले बहुत ही धूमधाम से वह राधा को अपने घर की बहू बना कर लायी। राधा बहुत पढ़ी-लिखी तो ना थी पर एक समझदार महिला थी।

अपनी आंखों में ढेरों सपने सजोए व अरमान लिए वो सूरज के घर में रच बस गई। पर 5 बरस बाद भी उसकी गोद हरी ना हो पाई। हर बार किसी ना किसी कारण उसका गर्भपात हो जाता। यही कमी उसे अंदर ही अंदर से खोखला किए जा रही थी।

शांति काकी को तो बस चाहिए था तो अपने घर का वारिस। यूं वो सरल स्वभाव की महिला थी पर अंधविश्वास, जादू टोना व भाग्य पर उनका बहुत यकीन था। पड़ोस की सरला चाची भी उनके मन में शंका डाल ही गई कि कहीं तेरे बहू पर भूत का साया तो नहीं?

बस फिर क्या था शांति काकी, बाबा जी के पास जाकर भभूत ले आई और राधा को दे दिया। गांव की औरतों के ताने भी राधा के माँ बनने की इच्छा को और अधिक  प्रबल कर देते कि वह अपने सास के आगे कुछ न बोल पाती। यूं ही दिन गुजरते गए।

“क्या बात है बहू कुछ दिनों से तेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही?” शांति काकी ने राधा को कुछ दिनों से बीमार देखकर पूछा।

“हां, माजी ना जाने क्यो सुबह उठते ही जी मचलाता है और दिन भर चक्कर आते हैं खाने का भी  कुछ जी नहीं करता।”

शांति काकी के मन में उम्मीद की किरण जागी। लगता है खुशखबरी है। मन ही मन वो बहुत खुश थी। शांति काकी राधा को कोई काम ना करने देती। राधा का खूब ख्याल रखती। सूरज कई बार उसे डॉक्टर को दिखाने तो कहता।

“पहले भी तो बड़े शहर के बड़े अस्पताल में दिखाया था पर क्या हुआ?” यही कहकर शांति टाल जाती।

धीरे-धीरे राधा में शारीरिक बदलाव होना शुरू हो गये। बढ़ते हुए पेट के साथ राधा का चलना फिरना मुश्किल हो गया।

9 वाँ महीना लगा ही था कि राधा को असहनीय पीड़ा होने लगी। शांति काकी और सूरज उसे अस्पताल लेकर भागे। अस्पताल में ना जाने क्यों चेकअप के बाद बच्चे की धड़कन सुनाई ना दे रही थी।

“ऑपरेशन करना पड़ेगा बच्चे की धड़कन नहीं सुनाई दे रही है”, डॉक्टर बोली।

सूरज और शांति काकी ने हामी भर दी। पर यह क्या ऑपरेशन होते समय डॉक्टर देखकर दंग रह गए उसके पेट में तो कोई बच्चा था ही नहीं। उसकी कोख खाली थी पर पेट फुला हुआ था। शांति काकी और सूरज को अलग बुला के डॉक्टर ने समझाया। 

“यह बहुत ही अलग मेडिकल कंडीशन है जिसे फैंटम प्रेगनेंसी या फॉल्स प्रेगनेंसी भी कहते हैं।”

“उसे तो सारे लक्षण थे और पेट भी तो  निकला था?” सूरज हैरानी से बोला। शांति काकी को कुछ न समझ आ रहा था।

“आम तौर पर इसके सारे लक्षण गर्भवती महिला जैसे ही होते हैं जैसे चक्कर आना, पेट का निकलना व वजन बढ़ना”, डॉक्टर ने समझाते हुए कहा। लेकिन सूरज हैरान था।

“मानसिक स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का कहना है जब किसी स्त्री में मां बनने की इच्छा प्रबल होती है या उसका बार-बार गर्भपात होता है तो उस तरह की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अगर इसे डॉक्टर के पास ले गए होते तो यह ना होता।”

सूरज को मन ही मन अपने मां के अंधविश्वास पर गुस्सा आ रहा था। उन्होंने डॉक्टर के पास जाने पर मना जो कर दिया था।

राधा को ऑपरेशन के बाद होश आ गया था। कुछ दिन बाद वो अस्पताल से वापस लौट आई। सूरज अब राधा का पूरा ध्यान रखता उसे डॉक्टर की बात समझ में आ चुकी थी। सरला चाची ने आते ही शांति काकी से पूछा, “बहू को क्या हुआ?”

“तू सही ही कहती थी सरला मेरी बहू पर भूत का ही साया था। उसके पेट में भूत का ही बच्चा था। जो ना जाने कहां गायब हो गया?” चाची ने अब भी अंधविश्वास की डोर थाम ही रखी थी।

“कल ही जाकर बाबा जी से भभूत ले आती हूं”, वह बोली पर सूरज मन ही मन सोच चुका था कि वह अपनी मां को एसा ना करने देगा।

(हमारे समाज में आज भी ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो अंधविश्वास को बढ़ावा देती है जो कि अनुचित है।)

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मूल चित्र : Still from Prega News Ad, YouTube

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Meenakshii Tripathi

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