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शादी के बाद शैली जब भी पति संग ससुराल जाती तो सास उसके रंग-रूप का मखौल भी उड़ाती और अब तो छोटी बहू भी आ गई थी।
शैली एक ग़रीब परिवार से नाता रखती थी। उसके माता पिता बचपन में ही गुज़र गए थे। साधारण नैन-नक्श और औसत कद काठी, लेकिन पढ़ने में काफ़ी तेज़ तर्रार। ग्रेजुएशन करते ही उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई। ऑफिस में साथ काम करते करते, कब विकास उसे दिल दे बैठा उसे पता भी नहीं चला। पहले तो शैली ने मना कर दिया पर विकास के प्यार के आगे वो हार गई। शैली और विकास अलग-अलग जाति के थे।
विकास ने जब अपने घरवालों को ये बात बताई तो उनके तो पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। विकास की माँ तो सदमे से कुछ कह न सकी पर उसके पिता एक सिरे से बिफर गए और विकास को जायदाद से बेदखल करने कि धमकी दी। पर प्रेम में आसक्त व्यक्ति को कौन समझा पाया है। विकास ने घरवालों के ख़िलाफ़ जा कर शैली से शादी कर ली।
शादी के बाद शैली जब भी पति संग ससुराल जाती तो काफ़ी ताने सुनने को मिलते। सास तो उसके रंग रूप का मखौल भी उड़ाती। समय बीतते गए और शैली एक बच्चे कि माँ भी बन गई पर आज भी उसके ससुराल वाले उसे पूरे ढंग से अपना नहीं पाए थे।
कुछ दिनों बाद शैली को विकास ने बताया कि उसके छोटे भाई की शादी है और उन्हें घर चलना है।ससुराल पहुँचते ही शैली की सास, उषा जी अपने होने वाली नई बहू की तारीफ में क़सीदे गढ़ने लगी।
“पता है विकास, मनीषा तो इतनी गोरी है कि लगता है की कोई शहज़ादी है। उसके पिता दान दहेज़ भी अच्छा दे रहे हैं।”
विकास चुप रहा पर जानता था की शैली को बुरा लग रहा होगा।
“शैली, माँ की बातों का बुरा मत मानना।”
“नहीं विकास, मैं बुरा नहीं मान रही। मुझे यकीन है कि माँ का स्नेह मुझे एक दिन ज़रूर मिलेगा”, शैली रुंधे गले से बोली।
जल्द ही नई दुल्हन घर आ गई। शरू में तो सब ठीक रहा पर मनीषा ज़्यादा समय खुद में और मोबाइल पर गुज़ारती। उसका पति तो शादी के बाद ही अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने चला गया और और वो अपने दुनिया में मग्न रहने लगी।
एक रोज़ उषा जी बाथरूम में गिर गई। पैर की हड्डी टूट गई और डॉक्टर ने दो महीने का बेड रेस्ट बोल दिया। शैली को जैसे ये बात पता चली वो तुरंत ही थोड़ी छुट्टी लेकर सासुमाँ को देखने चली आयी और उनकी तीमारदारी करने लगी। लेकिन छोटी बहू ज़िम्मेदारी के बोझ के डर से अपने एग्जाम का बहाना बना मायके चल दी।
बड़ी बहू शैली की सेवा सुश्रुता से उषा जी जल्द ही ठीक हो गई और धीरे-धीरे अपने रोजमर्रा के काम करने लगी। मन ही मन उन्हें पछतावा हो रहा था की जिसे वो कोयला समझती थी वो तो सच्चा हीरा निकली।
व्यक्ति की पहचान उसके रूप रंग जाति से नहीं बल्कि उसके कर्मों से होती है और ये बात उषा जी समझ चुकी थी। ससुराल से विदा होते समय सासू माँ ने शैली को सीने से लगा लिया। शैली को ऐसा लगा कि ये उसकी सास नहीं बल्कि माँ हैं, वो माँ जिसे उसने बचपन में ही खो दिया था।
मूल चित्र : Still from the Amazon ad, YouTube
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