कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हर कोई अगर ऐसा ही सोचता रहा कि हम तो केवल अपने रिश्तेदारों के घर जा रहे हैं और हमें तो वैसे भी कोरोना नहीं है, तो फिर यह कड़ियां कैसे टूटेंगी?
“अरे मां! ये लिजिए ऊटी वाली सुमन दीदी का फोन है, बात किजिए।”
इतना कहकर बहु रजनी उमा जी को फोन देकर रसोई में चली गई। वापस आई तो देखा सास उमा जी थोड़ा परेशान थी, कुछ सोच रही थी।
“क्या हुआ मां? क्या कहा सुमन दीदी ने? सब ठीक तो है ना?”
“हाँ बेटा, सब ठीक है। बस सोच रही हूं कि पढ़ें लिखे समझदार लोगों को भी इतनी छोटी सी बात समझ में क्यों नहीं आ रही है कि यह समय घूमने फिरने या किसी समारोह में शामिल होने का नहीं है।”
“हाँ माँ, यह तो आपने बिल्कुल सही कहा है। अब मेरी बुआ की ननद को देख लो इस समय गोवा गई है। माना लॉकडाउन नहीं है पर कोरोना तो है।”
“अभी सुमन का फोन भी इसलिए आया था।कह रही थी कि उसकी ननद की बेटी की शादी है तो आ रही है। चलो ठीक है, लेकिन शादी से फ्री होकर सबके घर जाने का विचार है उसका।”
“क्या! सबके घर?”
“हाँ, पहले तो अपने मायके जाएगी, फिर वहां से सबके घर घूमने जाएगी। अपने घर, छोटी चाची के घर, बहन चारु के घर।”
“पर मां ये तो गलत है। सुमन दीदी शादी में आ रही है। शादी में न जाने कितने लोगों से उनका मिलना जुलना होगा और ईश्वर ना करें अगर उनमें से किसी को कोरोना हुआ और दीदी उसके संपर्क में आई हो, तो जहां जहां दीदी घूमने जाएंगे उन सब के ऊपर खतरा बढ़ जाएगा कोरोना का और हमारे घर, छोटी चाची के घर सब के घर छोटे-छोटे बच्चे भी हैं।”
“हाँ! और यही मैंने उसे समझाने की कोशिश भी की तो गुस्सा हो गई और कहने लगी कि आप तो मुझे ज्ञान दे रहे हो, मुझे करोना थोड़ी ना है जो मैं किसी के घर ना जाऊं किसी से मिलूं नहीं। हाँ, अगर आप मना करो तो आपके घर नहीं आऊ।”
“तो फिर? अब क्या होगा मां।”
“देख बहू, मैं इतनी पढ़ी लिखी तो नहीं हूं लेकिन इतना तो समझती हूं कि जब तक कोरोना है तब तक हम लोगों को सतर्क रहना है। घर में छोटे बच्चे भी हैं और तुम्हारी दादी सास भी है जो कि उम्र के इस पड़ाव पर है कि किसी भी समय उन्हें कोई भी संक्रमण हो सकता है।
पूरी जिंदगी उन्होंने अच्छे से बिताई है सबको प्यार दिया है और मैं नहीं चाहती की अंत समय में उन्हें कोई ऐसा संक्रमण हो जाए कि जाते-जाते हम उनका मूंह भी ना देख पाए। और सोच हमारे घर में बच्चे भी हैं अगर किसी को भी कुछ हो गया तो बच्चों का क्या होगा। ना तो बच्चे माँ-बाप से दूर रह पाएंगे, ना ही माँ-बाप बच्चों से दूर इसलिए अगर कोई नाराज होता है तो हो जाए लेकिन मैं रिस्क नहीं लूंगी।”
“हाँ, आप बिल्कुल सही कह रही हैं। सुमन दीदी को पहली बात तो शादी में ही नहीं आना चाहिए था, लेकिन अगर वह शादी में आ ही रही है तो उन्हें सीधा वापस अपने घर जाना चाहिए था। अगर इस तरह वह सब के घर घूमने जाएंगे तो हो सकता है अनजाने में वह संक्रमण फैलाती रहे और हर कोई अगर ऐसा ही सोचता रहा कि हम तो केवल अपने रिश्तेदारों के घर जा रहे हैं और हमें तो वैसे भी कोरोना नहीं है, तो फिर यह कड़ियां कैसे टूटेंगी? कैसे कोरोना खत्म होगा?
भले ही वेक्सीन आ गयी है, पर तब भी हमें सावधानी रखना बहुत जरूरी है। अगर सुमन दीदी रूठती है तो रूठ जाए। उन्हें तो हम बाद में मना लेंगे, लेकिन फिलहाल तो कोरोना को भगाना है। क्यों सही कहा ना?”
“हाँ, वैसे मेरे साथ रहकर समझदार हो गई है तू।”
मूल चित्र: vaibhavnagare via unsplash( for representational purpose only)
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