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3 ग्राम क्षेत्र के चैंपियन से मिलिए जो अविकसित समुदायों में शिक्षात्मक सुधारों के लिए काम कर रहे हैं, महिलाएँ जो इन समुदायों का हिस्सा हैं।
नोट : ये लेख पहले यहां अंग्रेजी में पब्लिश हुआ और इसका हिंदी अनुवाद मृगया राय ने किया है
ग्राम क्षेत्र में काम करते हुए, समुदाय का समर्थन प्राप्त करना हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होता है।
अक्सर, अच्छे इरादे, ऊर्जा और प्रयास के साथ भी पहल सफल नहीं हो पाती है, क्योंकि इसमें समुदाय शामिल और परिवर्तन की ओर अग्रसर नहीं होते हैं। लेकिन जब समुदाय के लोग आगे कदम बढ़ाते हैं और जीमेदारी लेते हैं, तो ही परिवर्तन होता है।
एसएमसी (स्कूल प्रबंधन समिति) एक ऐसी ही सशक्त धारना है। आरटीई (RTE) – शिक्षा का अधिकार 2009, के अनुसार हर सरकारी स्कूल में एक एसएमसी बनाना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य शिक्षा प्रक्रिया में माता-पिता और सामुदायिक भागीदारी में सुधार करना है।
एसएमसी समुदाय के प्रतिनिधियों (12 माता-पिता, एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक एमएलए प्रतिनिधि) का एक निर्वाचित संस्था है, जो अन्य हितधारकों के साथ-साथ उनको भी एक सामान्य स्तर पर रख व्यवहार करते हैं- शिक्षकों और स्कूल प्रमुख को साथ में काम करने और सही प्रकार के प्रभाव के लिए समुदाय में शैक्षिक सुधार के लिए।
हाल ही में, दिल्ली सरकार के स्कूलों की लड़कियों के लिए स्मार्टफोन दान अभियान के लिए साझा के साथ सहयोग करते हुए, मुझे तीन ऐसी महिलाओं से बात करने का अवसर मिला, जो दिल्ली के विभिन्न हिस्सों से अपने-अपने समुदायों के एसएमसी प्रयासों का नेतृत्व कर रही हैं।
इनमें से किसी का भी सफर आसान नहीं रहा है। उन्होंने कठिन संघर्ष किया है, उनकी हिम्मत तोड़ने की कोशिश की गयी और उनसे अवसरों को छीनने की कोशिश की गयी । कभी-कभी उनके समुदाय, अन्य बार परिवार, और यहां तक कि उनकी दृढ़ विश्वास की कमी उनके खिलाफ खड़ी होती है। फिर भी, उन्होंने वर्तमान स्थिति, पितृसत्तात्मक मानसिकता, साथ ही साथ उनके आत्म-संदेह को चुनौती देना चुना, और आज वह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके समुदाय का हर बच्चा अपनी क्षमता हासिल कर सके।
आइए उनके बारे में और पढ़ें
“मेरे जीवन के एक समय पर, मैं जल्दी शादी होने और माँ बनने के कारण डिप्रेशन में चली गयी थी। ऐसा लगा कि मैं अपने भीतर ही फंस गयी हूं। मैं अपने पति या माता-पिता के प्रति जो महसूस कर रही थी, उसे व्यक्त नहीं कर पा रही थी। मैं दवाओं पर थी। उस दिन तक चीजें बहुत खराब थीं जब मुझे अपने बच्चे के स्कूल से फोन आया।”
दर्शना 3 बच्चों की मां हैं और पूर्वी दिल्ली के जहांगीरपुरी की रहने वाली हैं। दर्शना हमेशा से अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी करना चाहती थी और चीजें सही दिशा में जा रही थीं। पर, दुर्भाग्य से, उसका स्कूल केवल 8 वीं कक्षा तक था और उससे आगे की पढ़ाई करने के लिए, उसे दूसरे दूर के स्कूल में दाखिला लेने की ज़रूरत थी, जो कभी नहीं हुआ। यह उसके लिए उसके इस सफ़र का अंत बन गया।
“मेरे माता-पिता समाज से काफी दबाव में थे। लड़कियों को उसके आगे पढ़ने की क्या ज़रूरत है?, समाज ये सवाल करता था।” और उसके माता-पिता इस के खिलाफ जाने से डर रहे थे।
दर्शना ने कोशिश की लेकिन वह व्यर्थ रही। उसकी अपने 18 वें वर्ष में प्रवेश करते ही तुरंत शादी हो गयी थी और दो लड़कियां और एक लड़के की माँ बन गयी। फिर 2013-14 में एक दिन, उसके बच्चे के सरकारी स्कूल से एक कॉल आशा की किरण बन कर उसके जीवन में आयी। स्कूल एसएमसी के लिए माता-पिता को शामिल कर रहा था और वह उन चुनिंदा माता-पिता में से एक थी।
दर्शना ने कहा, “मुझे इसके बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन कुछ सही लगा। मुझे लगता है कि मैं एक ऐसे माध्यम की तलाश में थी, जिससे मैं जिस सिस्टम में फंस गयी थी, उससे बाहर निकल जाऊं। मैं शिक्षक से मिली और उसने मुझे काम की आवश्यकता और महत्व के बारे में समझाया, और में तैयार हो गयी।”
अगले कुछ वर्षों के लिए, जैसे जैसे दर्शना ने अधिक बच्चों और माता-पिता के साथ बातचीत करना शुरू किया, वह समझ गई कि यह कितना मुक्तिदायी काम है। वह बच्चों से बात कर रही थी, लोगों से मिल रही थी, माता-पिता से मिल रही थी और बच्चों की शिक्षा में अधिक भागीदारी के लिए समाज को जुटा रही थी।
“मुझे ऐसा लगा दीदी, कि मैं एक पिंजरे में थी अब तक। यह एक ऐसा पिंजरा था जिसमें मैंने खुद को कैद कर लिया था। और ऐसा कुछ करना जिससे मुझे एक नई पहचान मिले, यह मेरे लिए अच्छा साबित हुआ। इस भावना ने ही मुझे डिप्रेशन से बाहर निकालने में मदद की।”
दर्शना ने मुझे गर्व के साथ बोलो ऐप (Google द्वारा एक फ़्री ऐप, जो विशेष रूप से प्राथमिक छात्रों में पढ़ने के कौशल को बढ़ाने में मदद करता है) के बारे में बताया, जिसके बारे में वह इन दिनों माता-पिता को कोचिंग दे रही है। वह बहुत आत्मविश्वास से एक ही बार में कई माता-पिता को कार्यशालाओं की सुविधा देती है।
मैं उससे पूछती हूं कि कैसा अनुभव रहा जब उसे पहली बार तनख्वाह मिली, “मैं रोयी दीदी। इतनी बड़ी बात थी! मैं खुद में बदलाव महसूस कर सकती थी। इस पहचान और स्वतंत्रता ने मुझे स्पष्टता और साहस दिया अपने पति से साझा करने का की मेरे साथ क्या हो रहा है। मुझे एहसास हुआ कि अपने साथी से बात करना और साझा करना बहुत महत्वपूर्ण था।”
लेकिन इससे बहुत बदलाव नहीं आया। पैसे कमाने के बाद भी, संघर्ष थे। जहां पति-पत्नी की समझ थी, ससुराल वालों ने आपत्ति जताई और पति से मिल रहे इस नए समर्थन पर सवाल किया। अपनी पत्नी का समर्थन करने वाले आदमी का विचार घर वालों के साथ ठीक नहीं बेठा।
“जब मैंने काम करना शुरू किया तो मेरे पति जो एक कारखाने में काम करते हैं, वह कभी-कभी मेरे साथ काम पर आते थे। वह मुझे समूह का नेतृत्व करते हुए देख काफी खुश होते। मैं उनकी आँखों में गर्व का भाव देख सकती थी।”
इसने दर्शाना में बहुत साहस पैदा किया। वह प्रोत्साहित और सशक्त महसूस करती थी, और धीरे-धीरे अपने ससुराल वालों का रवैया भी बदल सकती थी।
आज, दर्शाना उन सभी जवाबों के लिए संपर्क का एकमात्र स्रोत है जो माता-पिता अपने समाज में चाहते हैं। उसका एक मात्र मिशन है, अन्य महिलाओं को घरों से बाहर निकालना और कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित करना जो वे विशेष रूप से करना चाहते हैं और जिससे उन्हें बोलने का साहस मिल सके।
उन्होंने कहा, “मैं साझा को मुझे एक्सपोजर देने के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ। अब मैं एक मंज़िल देखती हूँ और इस रोशनी को दूसरों तक फैलाना चाहती हूं। मैं ऐसी कई महिलाओं को मेरी ही कठिनाइयों से गुजरते देखती हूँ जल्दी शादी होने और कम उम्र में माँ बनने के कारण।”
मैं उनसे उनकी ऐसी सबसे बड़ी चुनौती के बारे में पूछती हूं, जो उन्हें लगता है समाज को विकलांग बनाती है, “लड़का लड़की का भेद भाव अभी भी बहुत ज़्यादा है दीदी”, और फिर खुद ही सुझाव देते हुए वह कहती है, “पर हमे चुप नहीं रहना है, इस समस्या पर आवाज़ उठानी है। अपने संघर्ष के बारे में खुलकर शेयर करना मदद करता है।”
इतना सच है, दर्शाना का यह सफ़र कई महिलाओं को अपनी वर्तमान स्तिथि को चुनौती देने और पहचान कमाने के लिए और मुश्किलों से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करता है।
“पहले जब मेरे पति के दोस्त हमें सड़क पर मिलते थे, तो मैं 10 कदम दूर खड़ी हो जाती थी। मैं शर्माती और झिझकती थी। अब, मेरे काम और नई पहचान के कारण, जब वे हमें सड़क पर मिलते हैं, तो वे मेरे पति के बजाय मुझसे बात करते हैं। अब, मेरे पति कुछ दूरी पर जा खड़े हो जाते हैं।”
शाहिदा (रजनी) पूर्व दिल्ली के यमुना विहार के एक वंचित क्षेत्र से हैं, जिसमें मुख्य रूप से दैनिक मजदूरि वाले कामगार रहते है। अपने अंतर धर्म और प्रेम विवाह के तुरंत बाद, शाहिदा को पारिवारिक स्थितियों के कारण मुंबई से दिल्ली जाना पड़ा। उनके पति ने पारिवारिक चाय की दुकान संभाला और शाहिदा घर और बच्चों की देखभाल में व्यस्त हो गईं। 11 वीं कक्षा पास शाहिदा बताती हैं कि सरकारी स्कूल, जहाँ उनका बेटा पढ़ाई करता था, वहाँ के बच्चों और उनके माता-पिता को होने वाली असुविधा के बारे में सवाल उठाने के परिणामस्वरूप उनकी खुद की पहचान बनाने का उनका सफर शुरू हुआ।
4 बेटियों और एक बेटे की माँ, उसके जुनून और पूछताछ की भावना को देखते हुए, जल्द ही वह एसएमसी का हिस्सा बन गई और माता पिता और स्कूल के बीच एक माध्यम बन मदद करने लगी।
“शुरू में मैंने सोचा था कि यह मुझे अपने बच्चों की पढ़ाई और प्रगति में बेहतर रूप से शामिल होने में मदद करेगा, लेकिन मुझे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि मैं अन्य बच्चे और साथ-साथ उनके माता-पिता के जीवन को भी प्रभावित कर पाऊँगी।”
“मैडम, जो हमारी बात प्रिंसिपल तक पहुंचाती है” के रूप से जाने जानने वाली, शाहिदा ने अपने समुदाय में माता-पिता की मानसिकता और दृष्टिकोण में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिनमें से अधिकांश अनपढ़ हैं और बच्चे की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी की शक्ति को कम स्तर पर आंकते थे। तब से, उसने सैकड़ों माता-पिता में जागरूकता पैदा करने में मदद की, उन्हें अड्मिशन फ़ॉर्मैलिटी के साथ मदद की, उन्हें स्कूल की प्रक्रिया के बारे में सूचित किया और उन्हें यह भी बताया कि कैसे लैंगिक समानता वाले समुदाय आज के समय में आवश्यक है।
चुनौतियों के बारे में बात करते हुए वह बताती हैं-
“मैंने एक वोलनटियर के रूप में शुरुआत की। और इसलिए, इस बारे में लोगों के काफ़ी सवाल थे, कि मैं कैसे दूसरों की मदद करने के लिए परिवार के समय के साथ समझौता कर रही थी और वह भी बिना तनख्वाह के। ससुराल वालों को आपत्ति थी – इसकी क्या जरूरत है? एक बहु का फ़र्ज़ है घर की देखभाल करना और उस पर उसे समझौता नहीं करना चाहिए, खासकर जब उससे पैसे तक नहीं मिल रहे। लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे पति मेरे साथ खड़े रहे। वह बहुत पढ़े-लिखे नहीं हैं लेकिन यह मानते हैं कि मुझे अपने ज्ञान का उपयोग करना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए।”
शाहिदा के लिए, दूसरों की मदद करने के लिए घर की चार दीवारें छोड़ना और यह नई पहचान हासिल करना कुछ ऐसा है जिसने उसे गौरव और सशक्तिकरण का एहसास दिलाया है।
शाहिदा ने मुस्कुराते हुए कहा, “बात करने का तरीक़ा मुझे मेरे काम ने सिखाया है। मुझे कोई पूछता नहीं था पर अब हर काम के लिए आगे करते हैं। बाहर का काम हो, या फिर घर का कोई मसला, अब सब मुझे ही याद करते हैं। यह मेरी लाइफ़ का चेंजिंग मोमेंट है।” और वह हँस पड़ीं।
और क्यों नहीं, शाहिदा अब एक कमाने वाली औरत है और परिवार की आमदनी में अच्छा योगदान देती है। अपने समुदाय की प्रत्येक महिला को एक मुख्य सलाह जो वह देती है – कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों। और वह यह सुनिश्चित करती है कि वह इस आत्म-विश्वास, जो उसने अपने काम के माध्यम से कमाया है, हर महिला जिसके संपर्क में वो आती है उनपे इसका असर छोड़ दे।
सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि खुद की लड़कियों के लिए भी वह एक बड़ी रोल मॉडल हैं। शाहिदा बताती हैं कि कैसे उनकी बेटियां बड़ी होने पर उनके इस समुदायों को जुटाने के काम को आगे बढ़ना चाहती हैं। वह एक आशाजनक विचार के साथ मुझे छोड़ देती हैं।
“दीदी, मैंने हमेशा सोचा था कि जिन लोगों के पास पैसा है, जो लोग कार चलाते हैं और बड़े घर से हैं, वे अपने पैसे दान करके समुदाय की मदद कर सकते हैं लेकिन वास्तव में, हम में से हर कोई अपनी क्षमता में मदद कर सकता है और मुझे विश्वास है कि मैं इसका एक सच्चा उदाहरण हूं।”
क्या शाहिदा की सकारात्मकता किसी भी समुदाय के लिए परिवर्तन की एक बड़ी ताकत नहीं है?
“मैं 9 वीं कक्षा में दूसरी आई थी, दीदी। पूरे स्कूल के सामने मेरी मैडम ने मुझे शाबाशी दी थी और फिर मेरे 12 वी में डिस्टिंक्शन आए”, रेणु ने खुशी के साथ मुझसे बात करते हुए शेयर किया।
“किसने सोचा होगा कि मेरे जैसा कोई इंसान जो दिल्ली में रहता था और एक अच्छा स्टूडेंट, जो बिना किसी ट्यूशन के पढ़ाई करता था, उसे 12 वीं से आगे की पढ़ाई करने का मौका नहीं मिलेगा? मैं एक शिक्षक बनना चाहती थी और मुझे प्रवेश पत्र भी मिल गया, लेकिन मेरी माँ ने उससे फाड़ दिया”, रेणु अतीत को याद करते हुए दुखी आवाज़ में कहती है।
कभी-कभी किसी चीज़ को करने का साहस हमारे अंदर अनुभव द्वारा खाई ठोकरों से मिलता है, और रेणु की कहानी ऐसी ही है।
4 बहनों और 2 भाइयों के परिवार में दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी रेनू को लगा कि उसके पास शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करने का उचित मौका है, लेकिन उसका परिवार बिल्कुल भी उसके इस सपने में सहायक नहीं था। स्कूल ख़त्म करने के बाद, उसकी शादी करा दी गयी और उसे गाँव जाना पड़ा। हालाँकि, किस्मत में जो लिखा होता है वह होके रहता है, गाँव में किया गया एक सर्वेक्षण और दिल्ली में एक स्टील फैक्ट्री में उसके पति के लिए नौकरी का मौका, उसे शहर वापस ले आया।
जब रेणु वापस दिल्ली आई, तो उसने अपने बच्चों की सही परवरिश करने और उन्हें जो उसके साथ हुआ उससे बचाने की ठानी। वह शुरू से उनकी शिक्षा में शामिल रही और यह सुनिश्चित किया कि वे अच्छे से पढ़े। उनकी भागीदारी और प्रतिबद्धता को देखते हुए, उन्हें स्कूल में बुलाया गया और जल्द ही एसएमसी टीम के सदस्य के रूप में शामिल किया गया। तब से, वह बच्चों की शिक्षा में माता-पिता के शामिल होने की आवश्यकता और महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के मिशन पर लग गयी। इतना ही नहीं, उनके कई सुझाव अब स्कूल प्रोटोकॉल या स्कूल के सुधार के हिस्से में शामिल किये गए हैं।
“मीटिंग वाली दीदी” बुलाए जाने वाली रेणु, अध्यक्ष के रूप में अपने समुदाय से एसएमसी प्रमुख हैं, और अपने कार्यों के लिए कई प्रशंसाएं जीती हैं।
अपने काम के बारे में बात करते हुए, उन्होंने ने बताया, “मैंने ट्यूशन दिए हैं, सैकड़ों माता-पिता को अपने बच्चों की अड्मिशन प्रक्रिया में मदद की, साथ ही साथ मुफ्त में कई ईडब्लूएस फॉर्म भी भरे। जब माता-पिता मुझे धन्यवाद देते हैं, तो यह मेरा सबसे बड़ा इनाम है।”
रेणु मुझे बताती है कि कभी कभी ऐसा भी होता है की कुछ बच्चों को एडमिशन नहीं मिलता है क्योंकि माता-पिता के पास बिजली बिल जैसे दस्तावेज नहीं होते, लेकिन उन्होंने अपनी क्षमता से ऊपर जाके आवश्यक दस्तावेजों की व्यवस्था और सुझाव देने के तरीके से मदद से, अंत में एडमिशन करा दिए।
सिर्फ इतना ही नहीं, हाल ही में समुदाय के 15 छात्र, जिनका स्कूल पता नहीं लगा पा रहा था, रेणु के प्रयासों और कड़ी मेहनत की बदौलत वह वापस स्कूल से जुड़ गए हैं। आज, रेणु महिलाओं के साथ-साथ उनके समुदाय की युवा लड़कियों के लिए भी एक आदर्श हैं।
“मैं हमेशा टीचर बनना चाहती थी, अब मुझे लगता है टीचर नहीं पर टीचर जैसी तो बन गयी। मैंने ट्यूशंस दी हैं और पेरेंट्स की वर्क्शाप भी।
रेणु मुझे बताती है कि कैसे एक स्टील फैक्ट्री में काम करने वाले उनके पति को उनकी उपलब्धियों पर गर्व है। लेकिन शुरू में ऐसा नहीं था। रेणु ने एक वोलनटीयर के रूप में शुरुआत की थी और काफी समय तक वही करती रही, जो उनके पति और परिवार को अच्छा नहीं लगा। लेकिन रेणु सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी। अब, वह समुदाय में अपने पति के कई दोस्तों को कोचिंग दे रही है और कमा रही है, जो उसके पति को गर्व के साथ प्रफुल्लित करता है।
जब हमने बात की, तो रेणु अपने नए घर में बस गई थी, और खुशियों से भरी हुई आवाज के साथ, मुझसे कहा, “ये घर मेरी सैलरी की वजाह से बना है दीदी।”
मैं उसकी दृढ़ता और साहस के प्रति सम्मान से भर गयी, जब उसने उस घटना को साझा किया जिसने उसे अपने नए घर की तलाश करने के लिए प्रेरित किया था। जब उसका परिवार एक दिन छत पर रात में सो रहा था, तब उसके किराए के घर में किसी ने उसकी बेटी के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी। शुक्र है कि अपराधी पकड़ा गया क्योंकि उसकी बेटी ने चिल्ला कर सबको आगाह कर दिया। रेणु उस आदमी के खिलाफ अदालत में मुकदमा लड़ रही है, और उससे उम्मीद है कि वह जीत जाएगी।
हम उसके नए घर और उसके समुदाय पर जाने के लिए एक निमंत्रण के साथ अपनी बातचीत को समाप्त करते हैं, जिसे मैं ख़ुशी से स्वीकार करती हूँ और अपने प्रयासों में उसकी अधिक शक्ति की कामना करता हूं।
दर्शाना, रेणु और शाहिदा जैसी महिलाएँ अपने समुदायों में नए पहलू ला रही हैं, रूढ़ियाँ तोड़कर इतिहास रच रही हैं और कई महिलाओं और युवा लड़कियों के लिए नए रास्ते खोल रही है। जबकि उनके शिक्षा के बारे में माँ बाप को जागरुक करना और उनका उसमें भागीदारी बढ़ाना सराहनीय है, उनके समुदायों में अन्य महिलाओं को प्रेरित करने में उनका साहस और दृढ़ विश्वास भी एक उल्लेख के लायक है।
हम महिला इतिहास माह मनाते हैं, इसमें इन जैसी महिलाओं की कहानियों को लड़कियों के लिए एक विरासत के रूप में लिखा और पास किया जाना ज़रूरी है ताकि वह इन महिलाओं से प्रेरणा ले और नए क्षेत्रों में अपने कदम रखें।
मूल चित्र: दर्शाना, शाहिदा और रेणु
Present - India Lead - Education, Charter for Compassion, Co-Author - Escape Velocity, Writer & Social Activist. Past - DU, Harvard, Telecoms-India and abroad read more...
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