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हरीश ने अपनी पत्नी नीलू की सरे बाजार हत्या करके कहा, "वह इसके लायक़ थी", क्योंकि अपने पति के मना करने के बाद भी वह नौकरी कर रही थी...
हरीश ने अपनी पत्नी नीलू की सरे बाजार हत्या करके कहा, “वह इसके लायक़ थी”, क्योंकि अपने पति के मना करने के बाद भी वह नौकरी कर रही थी…
ट्रिगर वार्निंग: इस लेख में मर्डर का वर्णन है और सभी पाठकों के लिए उपयुक्त नहीं है।
इन्स्टाग्राम पर स्क्रोल करते हुए, मेरे फ़ीड पर एक पोस्ट आया। उस पोस्ट में, राजधानी दिल्ली में 10 अप्रैल को घटी एक भयावह घटना के बारे में लिखा था और साथ ही एक विडीओ था। उस विडीओ में साफ़ दिख रहा है, एक महिला को उसके पति ने बाजार में दिन के उजाले में चाकू मार दिया, जिसे लोगों ने देखा, लेकिन उस महिला की आगे बढ़कर मदद करने की या उसे बचाने की कोशिश नहीं की। महिला के मरने के बाद भी, पति ने गुस्से में उस पर 25 बार वार किया। यह खबर पढ़ के मेरी रूह काँप उठी।
इस घटना के बारे में और पढ़ने पर पता चला कि यह शनिवार दोपहर दिल्ली के बुद्ध विहार इलाके में खुली सड़क पर हुआ था। यहाँ तक की लोगों ने वीडियो रिकॉर्ड किए, लेकिन कोई उसे रोकने के लिए आगे ना आया।
कुछ स्थानीय लोगों द्वारा पुलिस को बुलाए जाने के बाद, आरोपी/ पति को पोस्ट में दिखाए गए सीसीटीवी फुटेज को सबूत के तौर और उससे पहचान कर, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। आरोपी ने बयान में पुलिस को बताया कि उसने हाल ही में नीलू से शादी की थी और वह उसके नौकरी करने से खुश नहीं था। पुलिस ने पीड़िता की पहचान 26 वर्षीय नीलू मेहता के रूप में की है जो दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में काम करती थी। उनके पति हरीश मेहता मैरिज ब्यूरो के कर्मचारी हैं। हरीश और नीलू दोनों राजकोट, गुजरात से हैं।
अपने पति के नापसंद के बजाए, निलू ने शादी के बाद एक गृहिणी के रूप में घर ना रहने का फ़ैसला किया और हॉस्पिटल में काम करना जारी रखा। हरीश ने नीलू पर विवाहेतर संबंध होने तक का शक किया क्यूँकि वह अपने करियर को लेकर हो रहे झगड़े से तंग आ कर बुध विहार अपने माता-पिता के घर रहने के लिए चली गयी। लगभग 2 बजे, जब नीलू काम से घर आ रही थी, तब हरीश आया और उसे वहीं सड़क पर पीटना शुरू कर दिया जब तक वह मर नहीं गयी।
पुलिस ने बताया की अपनी गवाही में हरीश ने कहा की निलू को मारने का फैसला उसने “अपने दर्द को खत्म करने के लिए” लिया।
यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। “अपने दर्द” को खत्म करने के लिए अपनी बीवी का इतनी बेरहमी से कत्ल? ये कैसी बेतुकी वजह हुई। इस पूरे अपराध की वजह सिर्फ़ वही पूराना पुरुष-अहंकार और पुरुष-प्रधानता है। अगर पत्नी ने उनके हिसाब से जीवन नहीं जिया या उनकी बात नहीं मानी और अपनी इच्छा का करने का फ़ैसला लिया तो उसका आवाज़ बंद करदी।
कथित तौर पर हरीश ने जुर्म के स्थान से भागने की कोशिश भी नहीं की थी और यह तक कहा कि “वह इसके लायक़ थी”
कल्पना करना भी इतना दर्दनाक लग रहा कि निलू पट उसके अंतिम क्षणों में क्या गुजर रही होगी, कि वह सचमुच अपने पति द्वारा बाजार की सड़कों पर सैकड़ों लोगों के सामने मार दी जा रही है, फिर भी कोई भी उसे बचाने के लिए आगे नहीं आया और उसे सिर्फ खून के एक पूल में मरने दिया।
क्यूँ किसी ने उसके पति को रोका नहीं? या उसकी मदद नहीं की? सिर्फ़ ये सोच के कि पति पत्नी के बीच की बात है, घरेलू मामला है? किसी हत्या घरेलू मामला कैसे हो सकता है? और कैसे कोई अपने सामने यह होता देख भी बस खड़ा रहता है, कुछ नहीं करता? इंसानियत इस स्तर तक गिर गयी है?
भारत में 40% महिलाओं को अभी भी अपने करियर के विकल्प चुनने की अनुमति नहीं है और 78% विवाहित महिलाएं अभी भी गृहिणी हैं। लेकिन फिर भी आज भी ऐसे भी लोग हैं जो इस तरह की हरकतों की वकालत करते हैं? आवाज़ उठाना शायद सिर्फ़ एक विकल्प है, लेकिन ऐसी स्थितियों में हमें आवाज़ उठाना और इसके खिलाफ खड़ा होना अनिवार्य है।
माना कि करने से ज़्यादा यह बोलना आसान है। ऐसी स्तिथि में कोई भी सहम जाए। पर अगर हम कुछ ना किए, खड़े देखते रहेंगे तो यह अपराध रुकेंगे नहीं।
yourinstalawyer नामक एक इन्स्टाग्राम पेज, अपनी एक पोस्ट में शेयर की कुछ चीजें जो आप इन स्तिथियों में किसी महिला की मदद करने के लिए कर सकते हैं:
1) पहले अपनी सुरक्षा करें। एक हत्यारा के स्पष्ट रूप से उस समय में सिर पर खून सवार होता है, तो वह आपको भी चोट पहुंचा सकता है।
2) यदि आप हस्तक्षेप करना चाहते हैं, तो आपके आस-पास और लोगों को भी मदद करने के लिए कहे, लोगों के अंदर साहस एक साहस व्यक्ति को देख के आता है, इससे झुंड मानसिकता कहते है। जब आप संख्या में अधिक होते हैं तो किसी ख़तरनाक व्यक्ति पर हावी होना आसान होता है।
3) यदि आप हस्तक्षेप करने से डरते हैं तो आप हत्यारे या उत्पीड़क का ध्यान भटका सकते हैं। उदाहरण के लिए: आप एक वाहन चला रहे हैं। उसे हत्यारे में भिड़ा दे। कानून के अनुसार आप आत्मरक्षा में आवश्यक किसी भी उचित बल का उपयोग कर सकते हैं या किसी और का बचाव करने के लिए जो आपको लगता है कि मुसीबत में है। यदि यह आत्मरक्षा में किया जाता है तो यह अपराध नहीं है।
4) यदि आप मदद नहीं कर सकते, तो इसे कम से कम उस घटना को रेकोर्ड कर पुलिस को प्रदान करें ताकि यह उनके केस के साक्ष्य के रूप में उनकी मदद करे।
किसी भी प्रकार की मदद एक नैतिकता और इंसानियत के रूप में किसी की जान बचा सकती है।और सिर्फ़ महिलाओं की ओर ही नहीं, कुछ भी ग़लत या कोई भी अपराध होते हुए आप देखे, तो अपनी आवाज़ का प्रयोग करे और किसी की ज़िंदगी बचाने की कोशिश ज़रूर करे।
हाल ही में सुनी एक लाइन मुझे याद आती है “यह देश एक ही समय पर अलग अलग सदियों में जी रहा है।”
कहाँ औरतें रॉकेट बना चाँद पर भेज रही हैं और वहीं किसी गाँव में आज भी ऑनर किलिंग हो रही है। एक तरफ़ हम औरतों के सशक्तिकरण की बातें करते है और दूसरी तरफ़ हमारे देश में आज भी यह सब खबरें सुनने मिल रही है, वह भी दिल्ली जैसे बड़े शहरों की। पर बात वही है ना कि शहर किसी की सोच नहीं तय कर सकता। प्रगति के नाम पर दिखावा हो रहा है सिर्फ, क्यूँकि सोच और मनोदृष्टि तो आज भी उसी पितृसत्तात्मक समाज की ही है।
हम लड़कियों को पढ़ाने की, बढ़ाने की कितनी भी हिदायत दे लें लेकिन जब तक ऐसी स्त्रिद्वेशि सोच रखने वाले लोग समाज में हैं, तब तक महिलाएं पीड़ा से झूझती ही रहेंगी।
मूल चित्र: YouTube (for representational purpose only)
A student with a passion for languages and writing. read more...
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