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ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार समानता अभी 135 वर्ष दूर है

2021 की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत को 156 देशों में 140वां स्थान मिला। ये साउथ एशिया में तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है। 

2021 की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत को 156 देशों में 140वां स्थान मिला। ये साउथ एशिया में तीसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है। 

पिछले सप्ताह जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत 156 देशों में से 140वें पायदान पर फिसला। जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के मुताबिक भारत साउथ एशिया में तीसरा सबसे खराब परफॉर्ममेंस करने वाला देश है।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट कई अन्य वैश्विक रैंकिंग रिपोर्टों में से है, (जैसे प्रेस फ्रीडम इंडेक्स, ह्यूमन फ़्रीडम इंडेक्स, ग्लोबल हंगर इंडेक्स आदि), जहाँ भारत को एक खराब रिपोर्ट कार्ड सौंपा गया है। पिछले साल भारत का स्थान 153 देशों में 112वें स्थान पर था। हालांकि यह रैंकिंग हर साल गिर ही रही है। जब 2006 में पहली बार भारत को शामिल किया गया था तब इसे 98 वां स्थान मिला था।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में देशों का मूल्यांकन चार मानकों के आधार पर किया जाता है:

  • आर्थिक भागीदारी और अवसर
  • शिक्षा का अवसर
  • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता
  • राजनीतिक सशक्तीकरण

इंडेक्स में 1 उच्चतम स्कोर होता है जो समानता की स्थिति तथा 0 निम्नतम स्कोर होता है जो असमानता की स्थिति को दर्शाता है।

अभी असल में समानता आने में 135 साल से ज्यादा का वक्त लगेगा

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 में भी लगातार आइसलैंड 12वें साल दुनिया में पहले स्थान पर रहा जहां समानता का स्तर करीब 90% है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की वजह से महिलाओं की स्थिति काफी खराब हुई है। पिछले साल की रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं और पुरुषों को बराबर आने में अभी करीब 100 साल का वक्त और लगेगा, जिसमें इस साल 35 साल का और इजाफा हुआ है।

इसका मतलब है कि हर जगह समानता के नारे लगाए जाने वाले समाज में अभी असल में समानता आने में 135 साल से ज्यादा का वक्त लगेगा। (जो कि बेशक अगली बार की रिपोर्ट में बढ़ जाएगा।)

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 में भारत के बारे में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ें इस प्रकार हैं :

  • भारत में अभी जेंडर गैप 62.5% है।
  • इंडिया में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में 13.5% की गिरावट आयी है। 2019 में महिला मंत्रियों की संख्या 23.1% थी और अब ये 2021 में  घटकर 9.1% रह गई है। हालांँकि अन्य देशों की तुलना में भारत राजनीति में महिलाओं की भागीदारी में 51वें स्थान पर है।
  • पिछले वर्ष की तुलना में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसरों में 3 प्रतिशत की गिरावट आई है।
  • भारत में महिलाएं पुरुषों के तुलना में सिर्फ 20 फीसदी कमा पाती हैं, जो कि देश को इस मामले में सबसे निचले 10 देशों की सूची में डालता है।
  • प्रोफेशनल और टेक्निकल भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्‍सेदारी सिर्फ 29.2 फीसदी है।
  • मैनेजेरियल पदों पर सिर्फ 14.6 फीसदी और सिर्फ 8.9 फीसदी कंपनियां ऐसी हैं, जहां टॉप मैनेजेरियल पदों पर महिलाएं हैं।
  • शिक्षा में, भारत में 17.6% पुरुषों की तुलना में एक तिहाई महिलाएं (34.2%) निरक्षर हैं।
  • लिंग आधारित सोच के कारण, जन्म के समय लिंगानुपात में भी बड़ा अंतर सामने आया है, इसके अलावा चार में से एक महिला को जीवन में घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है।
  • स्वास्थ्य और अस्तित्व से जुड़े सबइंडेक्स में भारत निचले 5 देशों में शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है, “यह तथ्य है कि भारत और चीन जैसे आबादी वाले देश वैश्विक औसत परिणाम को कम करने में योगदान देते हैं।”
  • जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 में भारत को लेकर ये भी कहा गया है कि प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण जैसी प्रथाओं के चलते प्रतिवर्ष गायब होने वाली बालिकाओं के 1.2 से 1.5 मिलियन मामलों में से 90-95% मामले केवल भारत और चीन में देखने को मिलते हैं।

ये तो सिर्फ वे आधार हैं जो हर एक इंसान की ज़रूरत हैं

क्या आपने गौर किया कि ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में शामिल किये जाने वाले पैमाने बहुत बेसिक होते हैं। ये वे आधार हैं जिन पर हर एक इंसान का हक़ है। इसमें स्त्री पुरुष तो बाद में आते हैं। क्या अच्छे स्वास्थ्य, अच्छी इनकम, उच्च शिक्षा के बिना कोई व्यक्ति रह सकता है? फिर क्यों इन सबसे आधी आबादी को कई सदियों से कई सदियों तक वंचित रखा जा रहा है?

इसके लिए आप किस पर आरोप लगा रहे हैं? सरकार, समाज, पितृसत्ता, शिक्षा या कानून पर? खैर, हम यूँ ही एक दूसरे को दोषी ठहराने का खेल खेलते रहेंगे और ये गैप यूँ ही बढ़ता रहेगा। जब तक शुरुवात खुद से नहीं करेंगे तब तक चाहकर भी कुछ नहीं बदल सकता है।

मूल चित्र : pixelfusion3D from Getty Images Signature via CanvaPro

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Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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