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विभा ने कई बार दबी जबान से कहने की कोशिश भी की थी कि अब तो आप लोग घर संभाल सकते हो, तो क्यों ना मैं एक-दो दिन के लिए...
विभा ने कई बार दबी जबान से कहने की कोशिश भी की थी कि अब तो आप लोग घर संभाल सकते हो, तो क्यों ना मैं एक-दो दिन के लिए…
विभा जी, केशव जी की पत्नी हैं। उनका एक बेटा है अरविंद, जिसका विवाह हो चुका है। उनकी बहू का नाम अनुराधा है और एक बेटी है राशि, जिसके लिए लड़के की तलाश जारी है। केशव जी और विभा जी चाहते हैं कि उसके लिए कोई ढंग का लड़का मिल जाए तो उसका ब्याह कर फ्री हो जाएं।
केशव जी एक छोटी सी कम्पनी में क्लर्क का काम करते हैं, वहीं विभा जी एक गृहिणी हैं। विभा जी को शुरू से ही घूमने का बहुत शौक था, पर घर की जिम्मेदारीयों के कारण वे मन मार लेती थीं। उन्होंने अपने परिवार को कम आय में बहुत अच्छे से संभाला था।
हालांकि उनकी ज्यादा कोई सेविंग नहीं थी, उसके बावजूद भी उन्होंने अपने बच्चों को बहुत अच्छे से पढ़ाया है। और इस काबिल बनाया है कि दोनों आज अपने पैरों पर खड़े हैं। वहीं अनुराधा भी एक पढ़ी-लिखी नौकरी पेशा लड़की है जिसे उन्होंने अपनी बहू के रुप में स्वीकार किया।
अब हालात पहले से बेहतर है। तो घर में झाड़ू पोछा करने के लिए कामवाली भी रख ली गई है। सुबह सब लोग अपने अपने काम पर चले जाते हैं और विभा जी ही पूरा घर संभालती हैं। यही कारण है कहीं पर जा भी नहीं पातीं। उनका बहुत मन करता कि अपनी सहेलियों के साथ वह भी घूमने जाए पर ऐसा संभव ना हो पाता। उनकी सभी सखियाँ हर चार-पांच महीने में दो तीन दिन के टूर पर कहीं बाहर घूमने जाती है, पर विभा जी कहीं नहीं जा पातीं।
एक दो बार विभा जी ने केशव जी से कहा भी, कि मेरी सभी सहेलियां बाहर टूर पर जाती है, तो क्यों ना मैं भी उनके साथ चली जाऊं। पर केशव जी ने यह कहकर मना कर दिया कि घर को कौन संभालेगा और विभा जी मन मार कर रह जाती। सोचा कि जब अरविंद की शादी हो जाएगी तो उसके बाद वह टूर पर जरूर जाएंगी। लेकिन अनुराधा भी जॉब करती थी, तो यह सब संभव ना हो पाया।
विभा जी ने कई बार दबी जबान से कहने की कोशिश भी की थी कि अब तो आप लोग घर संभाल सकते हो, तो क्यों ना मैं एक-दो दिन के लिए बाहर घूम आऊ। पर सभी ने मना कर दिया। कभी किसी की जरूरी मीटिंग होती थी, तो किसी को बाहर जाना होता था। हर बार विभा जी अपना मन मार कर रह जाती।
इस बार जब वैष्णो देवी के दर्शन के लिए टूर बना, तो उन्होंने केशव जी से पूछा। पर इस बार राशि को देखने लड़के वाले आ रहे थे। इसलिए केशव जी ने मना कर दिया और विभा जी यह सोच कर रह गई कि चलो कोई नहीं। मेरी बेटी के रिश्ते की बात है। अगली बार चली जाऊंगी। नियत समय पर लड़के वाले राशि को देखने आ गए और उन्हें राशि पसंद आ गई।
शादी का मुहूर्त भी अगले दो महीने बाद का ही निकला। दो महीने तो यूं ही शादी की तैयारियों में निकल गए और नियत तिथि पर राशि का विवाह भी हो गया और राशि अपने ससुराल रवाना भी हो गई।
कुछ दिनों बाद विभा जी ने केशव जी से कहा कि चलो अब तो बच्चों से भी फ्री हो गए कहीं घूम ही आते हैं। पर केशव जी ने यह कहकर मना कर दिया कि जब रिटायरमेंट हो जाएगा उसके बाद जाएंगे।
अब विभा जी इस इंतजार में रहने लगी कब केशव जी का रिटायरमेंट हो और वह उनके साथ घूमने जा सके। लेकिन वह भी ना हो सका। क्योंकि कुछ महीनो में वे दादी भी बन गई। अब तो विभा जी का सारा समय अपनी पोती परी की देखभाल में ही निकल जाता। ऐसे करते करते ही काफी समय निकल गया। अब परी भी दो साल की हो चुकी थी और उधर राशि का बेटा एक साल का हो चुका था।
एक दिन यूं ही विभा जी ने केशव जी से कहा कि अब तो हम फ्री हो चुके हैं तो क्यों ना मैं एक-दो दिन वैष्णो देवी के टूर के लिए चली जाओ। मेरी वैष्णो देवी जाने की बहुत इच्छा है। केशव जी ने कहा कि ‘क्यों बेवजह परेशान होती हो। घर है तो घर को संभालो। अनुराधा भी अब जॉब पर जाने लगी है और परी अभी छोटी है।’
‘लेकिन इस तरह तो हम घर से निकल ही नहीं पाएंगे। आपने वादा भी किया था।’
‘मम्मी! क्यों पापा से बहस कर रहे हो। आपको जाना ही क्यों है आप घर क्यों नहीं संभालते?’ अरविंद ने कहा।
‘मेरी भी इच्छा होती है, जब मेरी सखियाँ घूमने जाती है। कब तक यूं ही अपनी इच्छा को मारती रहूँ?’
‘देखो हम कहीं नहीं जा रहे हैं। जिंदगी भर तो बाहर घूमता रहा हूं। मैं तो यही घर पर रहकर अपनी पोती के साथ खेलना चाहता हूं’, केशव जी ने कहा।
विभा जी चुपचाप अपने कमरे में चली गई। और कुछ फैसला किया और सो गई।
दूसरे दिन सुबह सुबह वे अपना सामान पैक कर कही जा रही थी। केशव जी ने टोका, ‘कहाँ जा रही हो? ‘
‘अपनी सहेलियों के साथ वैष्णो देवी जा रही हूँ।’
‘पर कल ही हमारी इस बारे में बात हुई थी कि हम कही नहीं जा रहे।’
‘आप शायद भूल रहे हो आपने कहा था कि जिंदगी भर मैं बाहर घूम लिया, अब मैं घर में रहना चाहता हूं। तो जनाब उसी तरह मैं जिंदगी भर घर में रहती आई हूं, अब मैं बाहर घूमना चाहती हूं। और जहां तक मुझे पता है मैं आपसे ज्यादा कुछ नहीं मांग रही हूं।’
‘मतलब?’
‘मतलब यह कि आपके रिटायरमेंट के बाद आप घर में रहकर आराम करना चाहते हैं और मैं घर के बाहर घूमने जा रही हूं। क्योंकि अब मुझे लगता है कि आप लोग सब कुछ संभाल सकते हैं।’
‘तुम कहना क्या चाहती हो?’
‘बस यही कि मुझे भी घर से रिटायरमेंट चाहिए। लेकिन जिंदगी भर के लिए नहीं। कभी कभी तो ले ही सकती हूँ।’
ऐसा कहकर विभा जी टूर के लिए रवाना हो गईं और केशव जी उन्हें जाते हुए देख मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। आखिर उनकी पत्नी का रिटायरमेंट जो था।
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मूल चित्र : Still from Best of Neena Gupta Movies/Amazon Prime Video, YouTube
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