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मेरे ससुराल वाले मेरी तारीफ किया करते, जिससे मेरी जेठानी को बहुत प्रॉब्लम होती और वो रोज नए तरीके ढूंढतीं मुझे नीचा दिखाने के।
यह कहानी नहीं है यह आपबीती है।
कैसे शादी के कुछ महीनों में ही जिंदगी की सच्चाई पता चल गई। मेरा लेख ‘कुछ लोग कभी नहीं बदल सकते’ आप लोगो ने खूब पसंद किया। उससे ही जुड़े कुछ वाक्या इस में बताए हैं।
मैं एक नौकरीपेशा महिला हूं उसके साथ साथ घर के काम भी बखूबी से निभाना जानती हूं। मेरे काम को देख कर कभी कभी मेरे ससुराल वाले मेरी तारीफ किया करते, जिससे मेरी जेठानी को बहुत प्रॉब्लम होती और वो रोज नए तरीके ढूंढतीं मुझे नीचा दिखाने के। मैं उनका भी सारा काम करती।
मैं दिन भर काम करती और यह मेरे ससुर के कान भरतीं कि दिखावे के लिए करती है। मेरे जेठ सुबह काम के लिए निकलते और रात को आते और आते ही घर पे लड़ाई शुरू कर देते।
उनको ना आगे पता होता ना पीछे का। मेरी जेठानी काम के नाम पर सिर्फ चटनी बनाती थीं और वो भी उनको चटनी का सारा सामान उठा कर देना पड़ता। जेठ जी बोलते कि उसके हाथ में मिर्ची लग जायेगी जैसे मेरे तो लोहे के बने हाथ हैं?
शादी के कुछ दिनों बाद और लॉक डाउन से पहले मेरे सास ससुर मेरे जेठानी के माता पिता के साथ हरिद्वार घूमने गए। उस दौरान मैं सुबह उठ कर मेरे और मेरे पति का नाश्ता बना कर और बर्तन करके अपने काम पर चले जाते।
एक दिन काम से घर लौटी तो जेठानी अपने बच्चों से चाय पूछ रही थीं। मेरे से तो उन्होंने नहीं पूछनी थी क्यूंकि उनका मानना था कि कौन सी जेठानी देवरानी से चाय पूछती है?
शाम को मेरे पति घर लौटे तो उन्होंने सरप्राइज प्लान किया हुआ था। क्योंकि शादी को एक महीना हो गया था तो वो मुझे बाहर गोलगप्पे खिलाने के लिए ले गए।
अभी पहला गोलगप्पा मुंह में था कि हरिद्वार से ससुर जी का फोन आया कि तुम लोग बाहर घूम रहे हो और वो घर पे उल्टियां कर रही है।
हम वैसे ही सभ छोड़ घर पहुंचे और देखा तो ठीक ही बैठी थीं। चाचा जी का बेटा आया हुआ था उसने भी टॉन्ट मारा और कहा, “घूम रहे हो?”
मैंने रात का खाना बनाया और रात को जेठ जेठानी के साथ केक काटा और बर्तन किए और सो गए।
अगले दिन फिर हम दोनो अपने काम को चले गए। सफाई वाली लगी हुई थी हमारी वो पीछे से काम कर के चली जाती। मैं शाम को घर आती, रोज सब के लिए खाना बनाती, बर्तन करती ओर सो जाते।
एक दिन काम से मैं घर लेट पहुंची। शाम के सात बज गए। उस दिन काफी थकावट हो गई। मैंने रात का खाना बनाया ओर बर्तन नहीं किए।
मेरे जेठ ने मेरी जेठानी से पूछा, “बर्तन करने हैं या सोने चलें?”
तो उन्होंने जवाब दिया, “करूँगी ही, आगे कभी बीच में छोड़े हैं?”
मुझे अजीब लगा क्योंकि मैंने कभी बर्तन करते नहीं देखा था। खैर मैं सो गई।
सुबह लेट उठे क्योंकि अगले दिन छूटी थी, तो देखा रात के सारे बर्तन तो वैसे पड़े ही हैं। सुबह के और इक्टठे किए पड़े हैं क्योंकि जेठ ने तो दुकान पर जाना था, तो उनके चाय नाश्ते के भी।
उस दिन मैंने सोचा देखते हैं कि मेरी जेठानी किस हद तक जाती हैं। हद तो इतनी बड़ गई कि रसोई में खड़े होने की भी जगह न बची।
क्योंकि, एक छुट्टी आई थी तो बाजार के कुछ काम थे। हम दोनों बाजार गए कुछ सामान लेने। घर आए तो देखा मेरे रूम में सफाई नहीं हुई। उस दिन कामवाली नहीं आई तो सफाई जेठानी ने करी।
घर आ कर मैंने अपने कमरे की साफ सफाई करी। कपड़े धोए, प्रेस करे। नाश्ता मैंने और मेरे पति ने किया नहीं। दोपहर का खाना भी हम दोनों के लिए नहीं बनाया गया।
खाना पूछा उनसे तो आगे से जवाब आया, “नौकर नहीं लगी मैं।”
जो थोड़ा बहुत था हम दोनों ने खा लिया अलग से। कुछ नहीं बनाया ताकि घर पे लड़ाई ना हो।
अब रात का खाना जब मैं बनाने लगी तो मैंने पूछा, “क्या बनाऊं?”
तो मेरी जेठानी का जवाब आया, “सुबह मैं बना सकती हूँ, तो रात को भी बना सकती हूँ।”
जेठ ने भी जवाब दे दिया। और उन्होंने अपना अलग बना कर खाना शुरू कर दिया। मुझे कोई अफसोस नहीं कि मैंने एक दिन बर्तन नहीं किए।
जब सास ससुर घर आए तो हम दोनों अपनी अपनी नौकरी पर गए हुए थे। पीछे से उनके कान भर दिए गए। मेरे ससुर मुझ पर और मेरे पति पर काफी गुस्सा हुए। और मेरी जेठानी ने डायलॉग याद कर रखा था, बोलीं, “मेरी थोड़ी सी भी गलती हो तो मुझे थप्पड़ मार लेना।”
जब मैंने अपनी बात रखी सास ससुर के सामने तो बोलीं, “गलती दोनों की है।”
अगले दिन जब मैं शाम की चाय बनाने लगी तो उन्होंने अपनी बेटी से मुझे कहलवाया, “पापा के लिए चाय नहीं बनानी।” तो मैंने नहीं बनाई।
जब जेठ सो कर उठा तो उन्होंने उनसे बोला, “उसने आपके लिए चाय नहीं बनाई।”
और जेठ जी का तो काम ही भड़कना था, उन्होंने जल्दी से शिकायत कर दी ससुर जी को, “आज मेरे लिए चाय नहीं बनाई।”
पास मेरे पति खड़े सब सुन रहे थे। उन्होंने अपने भाई की बेटी को बुलाया और पूछा, “चाची को चाय किसने मना करा था बनाने को?”
तो उसने बोला, “मम्मी ने मना किया था।”
जब सचाइ सामने आई तो दोनों ने बोला, “छोड़ो, जो हो गया, सो हो गया।”
फिर लॉक डाउन लग गया। काम की लड़ाई देख कर ससुर ने काम बांट दिया। काम तो नहीं, खाना बांट दिया कि सुबह का मम्मी, दोपहर का जेठानी, रात का मेरा।
अब सिर्फ खाना बांटा तो बाकी काम जेठानी कैसे करें। अभी सुबह का नाश्ता नहीं हुआ होता। पहले ही दुपहर की रोटी सब्जी शुरू जो जाती बनानी।
लॉक डाउन था तो कामवाली हट गई। अब सफाई बर्तन, कपड़े धोने, प्रेस करने, सबकी अलमारी में रखने का यह काम मेरा और मम्मी का।
काम करने की आदत तो थी नहीं मेरी जेठानी को सो कुछ आता भी नहीं था बनाना। धीरे-धीरे दोपहर की ड्यूटी भी इनसे नहीं हुई और सारा दिन लड़ाई की चाह ने इनको अलग कर दिया।
अब मैं, मेरे पति और सास-ससुर नीचे रहते हैं और खुश हैं।
मूल चित्र : PCRA SasBhau, Screenshot from YouTube
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