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सोनी लिव की नई सीरीज काठमांडू कनेक्शन का थ्रिल महिलाओं के सवाल से जुड़ता है, जिसपर अब तक बातेें नहीं होती थीं।
तमाम ओटीटी प्लेटफार्म के दुनिया में, ‘सोनी लिव’ एक ऐसा प्लेटफार्म है जिसने मनोरंजन की वैराइटी पेश करने में बहुत सावधानी बरती है। अभी तक किसी कांट्रवर्सी में नहीं फंसने के कारण और सोनी के ब्रांड नेम के वज़ह से इस प्लेटफार्म का एक अपना दशर्क वर्ग है।
उसी दर्शक वर्ग के लिए क्राइम- थ्रिलर मनोरंजन प्रस्तुत करने के उद्देश्य से, इस हफ्ते निर्देशक सचिन पाठक ने सिद्दार्थ मिश्रा की कहानी को ‘काठमांडू कनेक्शन’ नाम से छह एपिसोड के वेब सीरिज में प्रस्तुत किया।
यह शो अपनी कहानी कहने के अंदाज से थोड़ा रोमांच पैदा करता है, पर पूरी कहानी देखने के लिए बांध कर रख पाने में कामयाब नहीं हो पाता।
बाम्बे बम ब्लास्ट और अंडरवर्ल्ड से जुड़े तार को लेकर हिंदी सिनेमा में अब तक कई कहानियां कहीं जा चुकी है। ‘काठमांडू कनेक्शन’ इस लिहाज़ से एक नई दृष्टि की स्टोरी टेलिग सामने लाने की कोशिश करता है। इसमें आतंकवाद के मामलों में पुलिस के कार्यवाही के कारण प्रभावित लोगों का रिवेंज शामिल है, जो कहानी का सबसे बड़ सस्पेंस है।
यह एक स्थापित तथ्य है कि चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो या आतंक फैलाने की घटनाएं, प्रत्यक्ष रूप से इसका सबसे बड़ा प्रभाव महिलाओं के जीवन पर ही पड़ता है, जिसको कभी नोटिस नहीं किया जाता है।
‘काठमांडू कनेक्शन’ अपनी पूरी कहानी में यही कहने की कोशिश अपने दर्शकों से करता है। पर इसका अंत में जाहिर होना कचोटता है, जबकि इसे कहानी की यूएसबी होनी चाहिए थी।
http://https://youtu.be/ZEtAt1604lQ
बाम्ब ब्लास्ट, किडनैपिंग और एक स्टार महिला पत्रकार। एक अनजान फोन कॉल्स से शुरू होती ‘काठमांडू कनेक्शन’ की कहानी जिसमें में एक पुलिस अधिकारी सामर्थ कौशिक (अमित सियाल), एक जांच शुरू करता है।
जांच आगे बढ़ती है और कहानी में नये-नये मोड़ सामने आते हैं। कहानी में आने वाले नये-मोड़ कहानी को उलझा देती है और एक ही सिरे पर रहने नहीं देती है।
इस शो में सामने आती है महिला पत्रकार शिवानी (अक्षा) की कहानी, संदीप गर्ग (विजित सिंह) की एक तरफा इश्क की कहानी। और सीबीआई आफिसर हितेश (गोपाल दत्त) की कहानी जो बॉम्ब ब्लास्ट, किडनैपिंग की घटनाओं का काठमांडू कनेक्शन से जोड़ता है, लेकिन उसके हाथ इतने बंधे है कि वह कुछ कर नहीं पाता है।
पुलिस अधिकारी सामर्थ कौशिक काठमांडू कनेक्शन को सुलझा पाता है या नहीं, वह कहां-कहां उलझता है, जिसके कारण उसका जीवन भी तबाह हो जाता है और उसपर भरोसा करने वाले लोगों का भी। यह सब जानने के लिए आपको यह तीन घंटे की सीरिज देखनी पड़ेगी।
काठमांडू कनेक्शन का थ्रिल महिलाओं के सवाल से जुड़ता है जिस पर अब तक बात नहीं होती थी।
इस कहानी का सस्पेन्स तो अच्छा है ही, पर साथ ही इसका चौंकाने वाला अंत।
पूरी कहानी के साथ अंडर-टोन में चलता एक विषय, जो कभी सामने नहीं आता, वह है आतंकवादी घटनाओं का ज्वलंत स्त्री-पक्ष।
इसकी प्रस्तुती इतने समान्य तरीके से होती है कि वह कहानी का मुख्य हिस्सा होकर भी, मुख्य हिस्सा नहीं बन पाता है।
पूरी कहानी शुरूआत में जिस दमदार तरीके से शुरू होती है वह बीच में कमजोर पड़ने लगती है। उस कमजोरी को अमिल सियाल अपने मजबूत अभिनय से अपने कंधे पर ढ़ोते रहते है।
कहानी का लगातार ट्रैक बदलना कलाकारों के चेहरे पर जिस भाव की मांग करता है, वह हर किरदार के चेहरे पर आता नहीं दिखता है। कहानी के प्लॉट को मेहनत के साथ बुना गया है। 90 के दशक के महौल को पैदा करने में मेहनत की गई, जो दिखती है।
अक्षा, अमित, गोपाल दत्त और श्रवण मिश्रा अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। अन्य कलाकारों का इम्प्रेशन औसत है पर निराश नहीं करता है। कहानी का जो अपना चौंकाने वाला पक्ष है उसका इम्प्रेसन अगर बेहतर होता तो यह यादगार सीरिज बन सकती थी। यह कमी अंत में आकर कचोटती है।
मूल चित्र: stills from show
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