कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
एक शिक्षित महिला एक प्रगतिशील पीढ़ी बनाती है और हर व्यक्ति इस बात को समझे और दृढ़ता से पालन करे तो ही हम सभी को विकास का माहौल दे सकते हैं।
इतिहास गवाह है प्रगतिशील राष्ट्र में, महिलाओं के अदम्य साहस और अमूल्य योगदान का। किसी भी खुशहाल परिवार और राष्ट्र की धुरी होती हैं महिलाएं, खुशहाल परिवार एक प्रगतिशील समाज बनाता है।
शिक्षा, स्वास्थ्य उस राष्ट्र के सर्वांगीण प्रगति के लिए आवश्यक क्षेत्र हैं और प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता। मगर जब वे स्वयं के इस महत्व और भूमिका से अनभिज्ञ रहें तो परिवार, समाज की भी उसे सशक्त बनाने में भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
बचपन से ही अगर बेटियों को अपने सामर्थ्य, स्वास्थ्य, भावनात्मक स्वच्छता, शक्ति और प्रभाव के बारे में जानने और उन्हें अपनाने की आदत हो जाए तो वे इसके महत्व को जान कर भविष्य में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी समस्याओं का सामना कर सकती हैं। साथ ही अपने परिवार के स्वास्थय के प्रति भी जागरूक रह सकती हैं।
जब हम लड़कियों की स्वच्छता की आदतों के बारे में बात करते हैं तो न केवल घर से, बल्कि स्कूल कॉलेजों से ही यह पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही जहां शारीरिक स्वच्छता उन्हें स्वस्थ बनाती है वहीं भावनात्मक स्वच्छता उन्हें सशक्त बनाये रखती है।
महिलाएं इसे समझें कि उनकी छवि को बिगाड़ने का कोई भी अनैतिक विचार किसी भी स्तर पर ना तो मनोरंजनदायी और ना हीं मान्य होना चाहिए। एक शिक्षित महिला एक प्रगतिशील पीढ़ी बनाती है और हर एक व्यक्ति इस बात को समझे और दृढ़ता से पालन करे तो ही हम महिलाओं को एक सर्वागीण विकास का माहौल दे सकते हैं।
शिक्षा प्रणाली में सभी छात्रों का विशेषकर महिलाओं का शिक्षण संस्थानों की समस्याओं को दूर करने और स्वास्थ्य, स्वच्छता को बनाए रखने में भाग लेना हमेशा से लाभकारी रहा है। उन्हें अन्य छात्रों का इस दिशा में मार्गदर्शन करने के निर्णय लेने और नीति निर्माण में शामिल करना एक महत्वपूर्ण भागीदारी होगी, यदि ऐसा प्रावधान किया जाऐ तो।
उनकी समस्याओं के समय भावनात्मक रूप से उनका समर्थन देना जरुरी है। स्कूल कॉलेजों में छात्रों और बच्चों का समस्याओं के प्रति स्वस्थ और उचित दृष्टिकोण इसे पूर्णतया समझने में मदद करेगा।
इसके बेहतर परिणाम के लिए शिक्षण संस्थाओं द्वारा माता-पिता के साथ स्वच्छता, स्वास्थ्य जागरूकता वाली इंटरैक्टिव कार्यशालाएं आयोजित की जा सकती हैं और कुछ माता-पिता बाल सुधार निवारण समिति के समिति सदस्य बनाये जा सकते हैं।
हमें घर पर, समाज और शैक्षणिक संस्थानों में इन नियमों को लागू करना चाहिए। छात्रों की समस्या को हल करने के लिए माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों को त्रिकोणीय दृष्टिकोण अधिक प्रेम और सहानुभूति के साथ अधिक तर्क और जिम्मेदारी से अपनाना चाहिए। यह त्रिकोणीय दृष्टिकोण उनके जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद कर सकता है।
लड़कियों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता हमारे नियमित पालन का हिस्सा बने तभी हम इसके अपेक्षित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
पितृसत्तात्मक मानसिकता को समानता के अधिकार के प्रति उदार सोच और दयालु दृष्टिकोण के साथ बदला जा सकता है। सभी के लिए समानता और स्वतंत्रता की बुनियादी जानकारी के लिए लड़कों और लड़कियों दोनों को यह समझने और समझाने की आवश्यकता है।
केवल लड़कियां ही नहीं बल्कि लड़कों की परवरिश भी समानता पर आधारित होनी चाहिए। दोनों को पता होना चाहिए कि समाज दोनों की प्रगति की परिणति है, वास्तव में सभी की सहानुभूति और प्रेम के साथ व्यवहार करने की आवश्यकता होती है। हर एक व्यक्ति एक उद्देश्य के लिए यहाँ है और अपने जीवन के लिए मूल्य और सम्मान की अपेक्षा रखता है।
माता-पिता और शिक्षकों को लड़कों को लड़कियों का सम्मान करना सिखाना चाहिए ,जब तक वे इसे घर से नहीं सीखते, वे इसे बाहर नहीं दर्शा सकते। गुणवत्ता का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति, लिंग, धर्म, जाति, समाज और राष्ट्र को समान रूप से माना जाता है।
शिक्षा अभी भी सभी की पहुंच में नहीं है। शिक्षा हमारी दृष्टिकोण और समझ में बुनियादी बदलाव के लिए ज़रूरी है। इसलिए इसे सभी के लिए उपलब्ध होना चाहिए। समाज में अपराध के मामलों की संख्या बढ़ रही है और उचित और मूल्य आधारित शिक्षा की कमी भी इसके कई में से है।
साथ ही सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर एक समानांतर कंटेंट भी चल रहा है जो अश्लील कंटेंट परोस रहा है, जिसके बारे में डिजिटल साक्षरता आज की जरूरत बन गया है।
हम समाज से और मीडिया से भी नैतिक मूल्यों को सीखते हैं। आज अनैतिकता ज्यादातर कार्यों में परिलक्षित हो रही है, महिलाएं अपमानजनक और अश्लील सामग्री का पहला शिकार हो रही हैं इस सोशल मीडिया के बेपरवाह कंटैंट और कमैंट्स से।
इसके लिए समाज के शांति और सद्भावना के ताने-बाने को तोड़ने वाले और महिलाओं को अश्लील फब्तियां कसने वाले और तिरस्कृत करने वाले इन सोशल मीडिया को इस्तेमाल करने वाले लोगों और इन प्लेटफार्म को नियमित करने की दिशा में हमारा हर एक कदम सही होना भी जरूरी है।
ऐसी सामग्री को बढ़ावा देने से हम सभी को बचना चाहिए। हमें महिलाओं के प्रति सुरक्षा और सम्मान के लिए डिजिटल साक्षर भी बनना होगा।
आइए हम एक भावनात्मक रूप से स्वच्छ और मूल रूप से सशक्त समाज बनाने के लिए जिम्मेदार हों जहां महिलाओं के प्रति नैतिकता और सम्मान बरकरार रहे और छात्रों की भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भागीदारी रहे।
मूल चित्र : Still from YouTube
Pen woman who weaves words into expressions. Doctorate in Mass Communication. Media Educator Blogger ,Media Literacy and Digital Safety Mentor. read more...
Please enter your email address