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हरी थी मन भरी थी राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी

थोड़े ही दिनों में सबको पता चलने वाला है कि राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी ये तिन्नी की मां ही लेखिका वंदना हैं।

थोड़े ही दिनों में सबको पता चलने वाला है कि राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी ये तिन्नी की मां ही लेखिका वंदना हैं।



नन्ही तिन्नी को मां की कहानियां बड़ी पसंद थीं। मां से कहानी सुने बिना उसे नींद ही ना आती। आज भी पलकें बिछाए मां का इंतजार कर रही है। बस मां का काम खत्म हुआ और मां तिन्नी के पास।

इस बड़े से घर में तिन्नी और उसकी मां की एक अलग ही दुनिया है। तिन्नी के पापा के जाने के बाद ना जाने क्या हो गया सबको, सारा काम मां के ऊपर डाल दिया सबने और तो और अब तिन्नी को कोई पहले की तरह प्यार भी नहीं करता।

तिन्नी उदास होकर सोच ही रही थी कि मां आ गई। “मेरी प्यारी मां, तुम मेरे लिए जल्दी से आ गई ना?” तिन्नी ने मां को गले लगाते हुए कहा। “हां मेरी बच्ची! अच्छा बताओ आज कौन सी कहानी सुनाऊं मैं?” मां ने तिन्नी को प्यार करते हुए पूछा। “आपकी तो हर कहानी मुझे बहुत अच्छी लगती है, कोई सी भी सुना दो।” तिन्नी ने अपनी मीठी आवाज में बोला। “अच्छा! तो आज हम अपनी रानी बिटिया को एक लड़की की कहानी सुनाएगे जो एक राजा के बाग में रहती थी।”

माँ ने कहानी सुनाना शुरू किया “एक बड़े से महल के एक हिस्से में एक काफी बड़ा बाग था। उसमें तरह – तरह के फल और फूल के पेड़ थे।वहीं एक मक्के का पौधा अपने – आप ही पनप गया था। राजा अपने बाग की खूब देखभाल करवाता लेकिन मक्के के पौधे की तरफ उसका बिल्कुल भी ध्यान नहीं था। एक दिन जब राजा यूं ही अपने बाग में चहलकदमी कर रहा था तो उसकी नज़र मक्के पर पड़ी। उसने एक मक्का तोड़ा और उसके ऊपर पड़े छिलके को उतार कर देखा तो मोतियों जैसे दानों से भरी कोई चीज उसे दिखी। राजा हैरान रह गया। उसने अपनी पूरी जिंदगी में ऐसी कोई चीज नहीं देखी थी। बाग के माली को बुलवाया गया। राजा ने उससे पूछा कि भई आखिर ये कौन सी चीज है? तब माली ने राजा को बताया कि महाराज यह तो मक्का है, इसको भून कर खाने पर बड़ा स्वाद आता है। राजा के लिए मक्के को भुनवाया गया और जब राजा ने चखा तो उसके मुंह से वाह वाह निकालना बंद ही ना हुआ। माली मन ही मन मुस्कुराया और बोला ‘हरी थी मन भरी थी राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी’।” मां ने तिन्नी को देखा तो तिन्नी सो गई थी। तिन्नी को चादर ओढ़ा कर मां अपने टेबल पर बैठ लिखने लगी।

अगले दिन जब मासिक पत्रिका आई तो उसमे लेखिका वंदना के द्वारा लिखे गए आर्टिकल “नारी के बढ़ते कदम को उड़ान में बदलने दो” की घर में खूब तारीफ हो रही थी। तिन्नी की दादी तो इस आर्टिकल से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने दादाजी और चाचाजी के मना करने के बावजूद मां को तिन्नी के स्कूल में टीचर की नौकरी करने की सिर्फ इजाजत ही नहीं दी बल्कि खुद अपने साथ लेकर स्कूल गईं। अब तिन्नी बहुत खुश है, उसकी दादी अब उसकी मां का पूरा साथ देती है और दादी हर महीने मासिक पत्रिका ना तो खरीदना भूलती हैं और ना ही लेखिका वंदना के आर्टिकल पढ़ना।

थोड़े ही दिनों में सबको पता चलने वाला है कि राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी ये तिन्नी की मां ही लेखिका वंदना हैं।

 

मूल चित्र: Myntra Via Youtube

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Anchal Aashish

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