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मनदीप कौर सिद्धू बनीं न्यूजीलैंड पुलिस में शामिल होने वाली पहली भारतीय महिला

मनदीप कौर सिद्धू के मन में पुलिस बनने का सपना इस कदर हावी हुआ कि वह साल 2004 में टैक्सी ड्राइवर से न्यूजीलैंड में पुलिस कांस्टेबल बन गईं।

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मनदीप कौर सिद्धू के मन में पुलिस बनने का सपना इस कदर हावी हुआ कि वह साल 2004 में टैक्सी ड्राइवर से न्यूजीलैंड में पुलिस कांस्टेबल बन गईं।

महिलाएं बंदिशों को तोड़कर आगे बढ़ना जानती हैं क्योंकि उनके लिए संघर्ष एक बहाना नहीं, बल्कि स्वयं को साबित करने का जरिया होता है।

महिलाओं को पहले भले ही घूंघट में रहने की हिदायत दी जाती थी, मगर महिलाओं ने अपने घूंघट को ही परचम बनाना सीख लिया है। महिलाओं को तपती धूप में बाहर नहीं जाने की हिदायत दी जाती थी ताकि उनका रंग सांवला ना पड़े, मगर महिलाओं ने घर से बाहर निकलना का कदम लिया। अपने रंग-रुप की परवाह को किनारे रखकर महिलाओं ने अपने कदम दहलीज से लांघने शुरु किए और अपने सांवले रंग पर तंज कसते समाज को चुप भी करवा दिया। 

महिलाएं अब अपनी तरक्की की दास्तां खुद लिख रही हैं। महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करके साबित कर दिया है, कि अब महिलाएं किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं। सरकार ने भी महिलाओं के प्रोत्साहन में अपना योगदान दिया है, जिससे महिलाओं की हिम्मत को बढ़ावा मिला है। 

भारतीय मूल की महिला विदेश में पुलिस

हम हमेशा से देखते आ रहे हैं, कि महिलाओं को पुलिस बल के क्षेत्रों में बहुत कम देखा जाता था। मगर अब महिलाएं ना केवल पुलिस बल में शामिल हो रहीं हैं, बल्कि सड़कों पर अपने बच्चों के साथ ड्यूटी करती हुई भी दिखाई देती हैं। उन्हें अब अपने रंग के ढलने की फिक्र नहीं है, बल्कि अब महिलाओं को अपनी पहचान बनाने की ललक है, जिसमें मनदीप कौर सिद्धू का नाम शामिल है। मनदीप भारतीय मूल की पहली महिला हैं, जिन्होंने न्यूजीलैंड पुलिस में शामिल होकर भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया है। 

मनदीप पंजाब के मालवा ज़िले में जन्मी हैं। उनकी शादी बालिग़ होते ही कर दी गई थी, मगर साल 1992 में शादी के टूटने के बाद वह अपने माता-पिता के पास वापस आके बस गईं। वहीं साल 1999 में वह बच्चों को घर पर छोड़कर आस्ट्रेलिया चली आईं। एक महिला के लिए अपने बच्चों को छोड़कर विदेश का सफर तय करना बहुत मुश्किल रहा होगा, मगर कहते हैं ना कि मुश्किल घड़ी में लिए गए निर्णय जरुर बेहतरीन परिणाम देते हैं। कुछ ऐसा ही मनदीप के साथ हुआ। आस्ट्रेलिया पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी जीविका चलाने के लिए टैक्सी ड्राइवर का काम करने लगीं। 

किस्से सुनकर पुलिस बनने का सपना

एक नयी जगह के अनुरुप खुद को ढालने में परेशानी हुई, मगर मनदीप ने बहादूरी से अपना हर कदम उठाया। मनदीप वूमन लॉज में रहा करती थीं। जहां, जॉन पैगलर नामक एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी रिसेप्शनिस्ट का काम करता था। जॉन उन्हें पुलिस की कहानियां सुनाया करता था, जिसे सुनकर ही मनदीप के मन में पुलिस अधिकारी बनने की प्रेरणा जगी। 

मनदीप के मन में पुलिस बनने का सपना इस कदर हावी हुआ कि वह  साल 2004 में टैक्सी ड्राइवर से पुलिस कांस्टेबल बन गईं। उन्होंने फ्रंटलाइन अफसर रोड पुलिसिंग, पारिवारिक हिंसा, नेबरहुड पुलिसिंग, कम्युनिटी पुलिसिंग और बड़े अपराधों की जांच में सहयोग प्रदान किया। साथ ही अपने बच्चों की कस्टडी की लड़ाई भी लड़ती रहीं और आखिरकार वह भारतीय अदालत में कानूनी लड़ाई जीत गईं और अपने बच्चों को अपने पास बुला लिया।

मनदीप ने जिस बहादुरी और योजनाबद्ध अपने कदम आगे बढ़ाए, वह हर किसी के लिए एक प्रेरणा है। आजकल लोग थोड़ी सी परेशानी से तंग आ जाते हैं, मगर मनदीप अपने वतन से दूर होकर भी अपने हक़ के लिए लड़ती रहीं। 

मिल रहा प्रमोशन

वर्तमान में मनदीप वाईटाईमत (waitemata) शहर के हेंडरसन पुलिस स्टेशन में तैनात हैं। वह सामुदायिक जनसंपर्क अधिकारी (Community Relations Officer) की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। उनका काम विभिन्न समुदायों के साथ तालमेल रखना, मीडिया प्रोग्राम आयोजित करना, हिंसा पीड़ित घरों में जाकर उन्हें आश्वासन देना और विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों के बारे में लोगों को सलाह देना है। 

साथ ही न्यूजीलैंड पुलिस ने मनदीप कौर को सीनियर सार्जेंट के पद पर प्रमोट किया है। उन्हें वेलिंगटन शहर के पुलिस कमिश्नर ऐंड्रू कोस्टर ने प्रमोशन का बैज पहनाकर सम्मानित भी किया है।  

मूल चित्र: India in Newzealand Via Twitter 

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