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मणिबेन नानावटी एक आम इंसान के लिए अस्पताल और महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की ज़रूरत को अपने जीवन संघर्ष से अच्छे से जानती थीं।
आजादी के बाद से आज तक मायानगरी मुबई में कई लोगों के हेल्थ के लिए लाइफ लाइन के रूप में नानावटी हॉस्पिटल का नाम अक्सर सुनने में आता है। नानावटी हॉस्पिटल जिस महिला ने पति श्री चंदूलाल नानावटी के याद में बनवाया, उनके बारे में आज अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा, वह थी मणिबेन नानावटी। जिन्होंने महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने के लिए खादी मंदिर की भी शुरुआत भी की।
एक आम इंसान के लिए अस्पताल और महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की जरूरत के बारे में मणिबेन अपने जीवन संघर्ष से जानती थी। शायद, इसलिए उन्होंने इस दोनों सामाजिक कार्य पर सबसे अधिक जोड़ दिया।
गुजरात में डेराल के समाज-सेवी और कपड़ा-विक्रेता चुन्नीलाल झावेरी के घर मणिबेन का जन्म 27 फरवरी 1905 को हुआ। पिता बेटी मणिबेन का बेहतर लालन-पालन दे नहीं पा रहे थे तो उनको अपने भाई के पास मुबंई भेज दिया। जहां जैन स्कूल में मणिबेन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा शुरू हुई। यहीं उनका विवाह 1922 में गांधीवादी नेता चंदूलाल से हुआ और मणिबेन, नानावटी परिवार का हिस्सा बन गई। पति चंदूलाल के सहयोगी के रूप में मणिबेन ने आजादी की लड़ाई में उतरी। उनका प्रयास आजादी के लड़ाई में महिलाओं को मजबूती से खड़ा करना रहा।
विले-पार्ले, जो नानावटी परिवार का घर था स्वतंत्रता लड़ाई के दौरान संघर्षों की राजनीति बनाने का प्रमुख केंद्र था। जमनालाल बजाज, स्वामी आनंद, किशोरलाल मश्रुवाला, दिलशुख दीवानजी आदि दिग्गजों के नेतृत्व में सत्याग्रही लोगों को प्रशिक्षण यहीं दिया जाता था। मणिबेन इन प्रशिक्षणों का नेतृत्व किया करती थी।
1932 में महात्मा गांधी जब गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन जाने वाले थे। उस समय वह विले-पार्ले घर पर कुछ दिन तक रहे। उसी समय महात्मा गांधी ने मणिबेन को महिलाओं के आत्मनिर्भरता के लिए खादी मंदिर शुरू करने की सलाह दी। इस खादी मंदिर ने मणिबेन को खादी सत्याग्रही बना दिया। यही से मणिबेन के जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव आना शुरू हुआ।
खादी मंदिर में महिलाओं को ग्रामीण विकास, आधारभूत शिक्षा और खादी के निमार्ण के प्रशिक्षण देना शुरू किया। वे इस प्रशिक्षण संस्था की आजीवन अवैतिक सचिव भी रहीं। उनकी इस कोशिश ने शुरुआत में गुजरात के आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर करने में सहयोग किया। आजादी के बाद विभाजन के कारण देश में आए शरणार्थी महिलाओं को आर्थिक सहायता देने में भी यह केंद्र प्रमुख रूप से सामने आया। उनके इस प्रयोग को देखकर सभी चकित रह गए।
इसी खादी मंदिर ने प्रशिक्षण संस्था के साथ-साथ बालिका-विद्यालय की स्थापना की। जो आज मुबंई में नानावटी कॉलेज के रूप में स्थापित है। मणिबेन के सामाजिक कार्यों ने लोगों के ज़हन में इस कदर स्थापित हुए कि वे लोगों की मणिबां बन गई।
मणिबेन स्वामी गांधीजी के प्रेरक नेतृत्व में सत्याग्रही महिलाओं के साथ नमक कानून के खिलाफ संघर्ष किया, जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से निकलने के बाद उन्होंने कांग्रेस के संगठनात्मक कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरु किया। गुजरात के आदिवासी ग्रामीण इलाकों में मणिबेन काफी पहुंच थी जिसका लाभ कांग्रस को आजादी के बाद हुआ।
आजादी के बाद मणिबेन ने कोई लाभ का पद या सरकारी जिम्मेदारी का वहन नहीं किया पर सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित रही।आज़ादी के तीसरे दशक में जब खादी मंदिरों को सरकारी उपेक्षा का शिकार हुआ, तब कांग्रेस संगठन से उनका काफी मनमुटाव रहा।
95 वर्ष की अवस्था में अपने निधन के समय मणिबेन बंबई के स्वतंत्रता सेनानियों में वरिष्ठम तो थी हीं, वृद्ध तथा युवा एवं परंपरावादी और आधुनिक, सभी वर्गों की महिलाओं के लिए आदर्श-सवरूप भी थीं। उनका स्थापित महिला विधालय और नानावटी अस्पताल समाज को दिया गया वह तोहफा है जो उनके नाम को कभी भूलने ही नहीं देगा, भले ही राजनीतिक दल और समाज-सेवी उनको याद नहीं करे।
मूल चित्र : lalkila.blogspot, biographyhindi
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