कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

कुछ लोग हिंदी बोलना पिछड़ेपन की निशानी क्यों मानते हैं?

अधिकांश लोग अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हैं, पर हम हिंदी भाषी, न जाने क्यों हिंदी बोलने में इतनी हिचक और शर्म महसूस करते हैं?

अधिकांश लोग अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हैं, पर हम हिंदी भाषी, न जाने क्यों हिंदी बोलने में इतनी हिचक और शर्म महसूस करते हैं?

मैं नेहा, दिल्ली से हूँ। आजकल बेंगलुरु में रहती हूँ।

अभी हाल ही में हमारे एक दूर के रिश्ते के जेठ जी अनुज और उनकी पत्नी रेनू, दिल्ली से बेंगलुरु शिफ्ट हुए हैं। तो रिश्तेदारी की नाते,  हमने उन्हें दोपहर के खाने पर आने का निमंत्रण दिया।

जब वे लोग आए तो मेरी सात साल की बेटी सिया ने उन्हें नमस्ते किया। लेकिन रेनू भाभी ने मेरी और सिया की तरफ ऐसे देखा, जैसे कोई अजूबा हो गया।

उनके बेटे ने हमें, हैलो कहा।

मैंने पूछा, ” कैसे हो बेटा? आपका नाम क्या है? आप कौन सी क्लास में पढ़ते हो?”

रेनू भाभी बड़े गर्व के साथ बोलीं, ” प्लीज़ माइंड मत करना नेहा, आयुष ( उनका छह साल का बेटा) इतनी हिंदी नहीं समझता।”

मैंने आयुष से इंग्लिश में ही उसके बारे में पूछ लिया।

सबको बैठाकर में किचिन में आ गई तो पीछे-पीछे रेनू भाभी भी आ गईं और बोलीं, “अब आजकल बच्चों  को इंग्लिश आना बहुत ज़रूरी है। चाहे हिंदी आए या न आए। हम तो आयुष से घर में इंग्लिश में ही बात करते हैं, हिंदी बिलकुल नहीं बोलते हैं।”

मैंने कहा, “भाभी मानती हूँ, अंग्रेजी आना ज़रूरी है, पर हिंदी तो हमारी मातृभाषा है। तो बच्चों को वह तो आनी चाहिए ना? हम लोग तो सिया से घर में हिंदी में ही बात करते हैं, जिससे उसे भी अपनी मातृभाषा का ज्ञान हो सके। वरना वह हिंदी सीखेगी कैसे?”

रेनू भाभी बोलीं, “अरे आजकल हिंदी कौन बोलता है? उसका कोई यूज़ भी नहीं है, इसीलिए तो हम लोग अपने बच्चों को इंग्लिश स्कूल में पढ़ाते हैं न?”

मैंने पूछा , “फ़िर आयुष, दादा-दादी, नाना-नानी से कैसे बात करता है?”

भाभी हँसकर बोलीं, “अरे कहाँ बात करता है?  न उन्हें इसकी बात समझ आती है, न इसे उनकी बात।”

फिर भाभी बोलीं, “यदि बच्चे हिंदी में बात करेंगे तो उनके दोस्त उन्हें और उनके परिवार को पिछड़ा और गँवार समझेंगे। उन्हें अपने स्तर का नहीं मानेंगे। और फिर अच्छी जॉब के लिए भी तो अच्छी अंग्रेजी आनी ही चाहिए।”

मैं सोचने लगी कि मैं और मेरे पति, दोनों ने ही हिंदी मीडियम से पढ़ाई की है और आज प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एम.एन.सी) में बहुत अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। अच्छी नौकरी पाना, आपकी प्रतिभा और हुनर पर निर्भर करता है। आपकी मातृभाषा चाहे कोई भी हो।

मैं यह नहीं कहती कि आपको अपने बच्चों को अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा नहीं दिखानी चाहिए। बच्चों को आप कितनी भी भाषाएँ सिखाइए, उन्हें अंग्रेजी में पारंगत कीजिए पर उन्हें अपनी मातृभाषा, जरूर आनी चाहिए। मातृभाषा, व्यक्ति को अपनी जड़ों से और अपनों से जोड़ती है।

मैंने देखा है, अन्य भाषओं, जैसे बंगाली, मराठी, तमिल, तेलगु, गुजराती आदि को बोलने वाले अधिकांश लोग अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हैं, पर हम हिंदी भाषी, न जाने क्यों हिंदी बोलने में इतनी हिचक और शर्म महसूस करते हैं?

यह सोच, हमें ही बदलनी पड़ेगी। अपनी मातृभाषा बच्चों को सिखाना हमारा दायित्व है, नहीं तो एक दिन हमारी मातृभाषा ही विलुप्त हो जाएगी।

मेरा मानना है कि पिछड़े, अपनी मातृभाषा बोलने वाले नहीं हैं। पिछड़े वे मातृभाषी हैं, जो अपनी ही भाषा को नीची नज़र से देखते हैं और अपनी मातृभाषा के प्रति ऐसी सोच रखते हैं!

आपके क्या विचार हैं इसके बारे में?

ऑथर ऋतू अग्रवाल के अन्य लेख पढ़ें। ऐसे और लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें   

मूल चित्र : Still from Office Romance/Mostly Sane, YouTube (for representational purpose only)

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

18 Posts | 287,489 Views
All Categories