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मिसेज श्रीलंका पुष्पिका डिसिल्वा के ताज के छिन जाने के बाद एक ही सवाल आया और वो ये कि तलाकशुदा या सिंगल मदर से समाज को एतराज क्यों है?
श्रीलंका में हुए एक सौंदर्य प्रतियोगिता में मंच पर हंगामे का विडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है, जिसमें विजेता चुनी गई पुष्पिका डिसिल्वा के सर पर ताज, पिछली विजेता क्लोराइन जूरी ने यह कहते हुए सर से उतार दिया चूंकि वह तलाकशुदा हैं इसलिए प्रतियोगिता के नियमों के अनुसार विजेता नहीं हो सकती हैं।
बाद में जब पुष्पिका डिसिल्वा ने आयोजकों को बताया कि वह तलाकशुदा नहीं, बल्कि सिंग्ल मदर हैं और अपने पति से अलग रह रही हैं, तब आयोजकों ने अपनी गलती मानते हुए उनको खिताब वापस कर दिया और माफी मांगी।
मिसेज श्रीलंका पुष्पिका डिसिल्वा ने अपनी जीत को सिग्ल मदर्स को समर्पित किया और सिग्ल मदर्स के परेशानियों के बारे में चर्चा भी की है।
श्रीलंका के सौदर्य प्रतियोगिता में हुए विवाद ने, महिलाओं से जुड़े उन सवालों को सतह पर लाकर खड़ा कर दिया है, जिससे केवल श्रीलंका ही नहीं, दुनिया भर की आधी-आबादी जुड़ी हुई है। खासकर उन समाज में जहां पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवहार अधिक मजबूत है। वह यह कि अगर आप तलाकशुदा हैं या आप सिग्ल मदर्स है तो आपका जीवन समान्य महिलाओं के तरह आसान कतई नहीं हो सकता है?
जहां एक तरफ तथाकथित सामाजिक नैतिकता के मापदंडों के आप सौदर्य प्रतियोगिता जैसे आयोजनों से बाहर कर दी जाएँगी, जिनसे मिली शोहरतों का आज के दुनिया में बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि इनका आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृत्तिक प्रभाव समाज पर बहुत गहरा है। तो दूसरी तरफ, हर सामाजिक संस्था सिंगल रहने के आपके फैसले को ताने मार-मार कर चुनौतियां पैदा कर देती है।
जाहिर है इससे यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि सिंगल मदर से समाज को एतराज क्यों है? असल में पूरी दुनिया में आधी-आबादी को समाज के मेंटल स्टेटस या कंडीशनिंग को चुनौति देने की ज़रूरत है।
नैटफिलिक्स पर हाल ही में रिलीज हुई बेव सीरीज मसाबा-मसाबा में एक सिंगल मदर के सामने मौजूद चुनौतियों को सामने रख दिया था और कई सवाल खड़े किए थे। नीना गुप्ता, जो न केवल प्रसिद्द अभिनेत्री है एक सफल सिंग्ल मदर भी हैं, पूछती हैं कि समाज में आज भी एक सिंगल मदर को एक्सेप्ट क्यों नहीं किया जाता है? उनकी जिंदगी को औरों के जिंदगी से अलग क्यों देखा जाता है? समाज क्यों इन मां और उनके बच्चों के लिए चुनौतियां पैदा करता है? समाज क्यों किसी भी सिग्ल मदर के कमाने की चुनौति के सामने खड़ा हो जाता है, जब कमाना उसके लिए भी उतना ही ज़रूरी है?
मैं उनकी इस बात से बिलकुल सहमत हूँ। अगर एक मर्द कमाता है तो उसे भगवान का दर्जा मिलता है और यदि वो सिंगल फादर है तो बस पूछिए मत, भगवान् से भी कोई ऊँचा दर्ज़ा हो तो हम उसे देने को तैयार हैं। लेकिन अगर किसी महिला ने बिना मर्द के जीने की, अपने बच्चे की परवरिश करने की कोशिश की है तो उसको नीचे गिराना और बात-बात पर नीचा दिखना हम अपना जन्माधिकार समझते हैं? धिक्कार है हमारी ऐसी सोच पर!
यूनाइटेड नेशन वीमन के जारी आंकड़े बताते है कि भारत में 4.5 प्रतिशत महिलाएं सिंगल मदर है। अधिकांश सिंगल मर्दस कामकाजी भी हैं उनकी संख्या 1 करोड़ तीस लाख है। रिपोर्ट के अनुसार 3.2 करोड़ महिलाएं संयुक्त परिवारों में रह रही हैं। आकंड़े बताते है कि भारत में घर चलाने वाली सिंगल मदर के परिवार में गरीबी दर 38 फीसदी है, जबकि दंपति द्दारा चलाए जा रहे परिवारों में 22.6 फीसदी है।
जाहिर है चूंकि भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवहार प्रैक्टिस में है इसलिए भारतीय समाज में तलाकशुदा महिलाओं और सिंग्ल मदर की चुनौति अधिक बड़ी है। खासकर तब जब लोकतंत्र को सरंक्षित करने वाली संस्था का व्यवहार भी पितृसत्तात्मक हो जाता है।
गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति की सिंगल मदर्स के वह बच्चे, जिनके पिता सवर्ण जाति से हैं, को तब तक जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया जाएगा, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि विशिष्ट समुदाय के कारण उन्हें अभाव, अपमान और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। क्या न्यायालय को यह नहीं पता है कि देश में किसी भी फार्म को भरने में जाति का कॉलम भरना अनिवार्य होता है? इस तरह के फैसले सिंग्ल महिलाओं को मुश्किल में डाल देते हैं, जो मनमाना होने के साथ-साथ भेदभावपूर्ण हैं।
श्रीलंका मे सौदर्य प्रतियोगिता में हुई विवाद ने तलाकशुदा और सिंग्ल मदर के चुनौतियों पर बहस करने का मंच उपलब्ध तो करा ही दिया है, जिस पर न केवल बात होनी चाहिए, यह भारत ही नहीं पूरी दुनिया के आधी-आबादी के लिए राजनीतिक सवाल भी बने, इस दिशा में भी राजनीति का विस्तार होना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में जब 89 देशों के परिवारों का सर्वेक्षण किया गया तब पता चला कि दस सिंग्ल पेरेंट परिवारों में से आठ को महिलाएं चला रही हैं। इस लिहाज से दुनिया में 10.13 करोड़ परिवारों में सिंगल मदर पने बच्चों के साथ रहती हैं। जबकि कई अन्य सिंगल संयुक्त परिवारों में रहती हैं।
जाहिर है, चाहे तलाकशुदा महिला हो या सिंग्ल मदर्स उनकी जीवन जीने की राह देश में ही नहीं पूरी दुनिया में आसान नहीं है। सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना होगा और अभी तो बस आगाज़ भर हुआ है।
मूल चित्र : Still from video, YouTube
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