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भाभी, आप रात को ऑनलाइन क्या कर रहीं थीं?

मैं सोचने लगी कि अब तक तो मुझ पर निगरानी रखी जाती थी अब आज ये बात भी पता चली कि ऑनलाइन  निगरानी भी मेरी रखी जाती है।

मैं सोचने लगी कि अब तक तो मुझ पर निगरानी रखी जाती थी अब आज ये बात भी पता चली कि ऑनलाइन  निगरानी भी मेरी रखी जाती है।

“मेरी मम्मी को पसंद नहीं तू…” गाने का रिंगटोन मेरे पतिदेव अनिकेत के फोन पर लगातार बजे जा रहा था। और अनिकेत बाथरूम में नहा रहे थे। मैं दीया, अपनी प्यारी सी रसोई में सुबह का नाश्ता बनाने में व्यस्त थी और मेरी चार साल की बेटी सिया टीवी पर कार्टून देखने में व्यस्त।

मैं गाने को सुनकर मन ही मन बोल रही थी गजब मुझ पर व्यंग करने वाला गाना लगाया है।

अरे अरे! मेरा मतलब मेरे पतिदेव की मम्मी यानी मेरी आदरणीय सासुमां की मैं आदर्श बहु नहीं हुँ। ना, ऐसा इसलिए ऐसा बोल रही हूं क्यूंकि उनकी नजर में मैं एक तेज ,चलाक और घर तोड़ने वाली बहु हूँ।

क्योंकि सच कड़वा होता है, और वो सच मैं शुरू से मुँह पर ही बोल देती हूँ ताकि मेरे दिल पर कोई बोझ ना रहे और मेरा दिल दिल की बीमारी से भी बचा रहे। दूसरा कारण हमारी शादी जो कि लव-मैरिज है।

वो बात अलग है कि शादी के बाद लव-मैरिज में से लव गायब हो चुका है, सिर्फ मैरिज बची है, क्योंकि अब पहले वाला प्यार कम तकरार ज्यादा हो गयी है हमारे बीच। पहले मुझसे शादी करने के लिए अपने परिवार के खिलाफ गए और अब शादी होने के बाद परिवार के लिए मेरे खिलाफ हो जाते हैं।

जब भी कोई पारिवारिक मतभेद सास ननद से होता है पतिदेव कहते हैं कि तुम चुप नहीं रह सकती थीं? तुम्हारा बोलना जरूरी है क्या? इतना सुनकर रोज खुद से हजारों कसमें वादे करती हूँ अब कुछ भी हो जाये मैं नहीं बोलूंगी। वही वादा निभा रही थी बजते फोन को ना उठाकर।

“अरे! यार दीया देखो तो किसका फोन है?”

इतना सुनते मैं चली गयी फोन के पास देखा तो ननद रेखा का फ़ोन था। सच मानिए फोन को पकड़ते ऐसा लगा जैसे हाई टेंशन का तार छू लिया हो। फिर भी बोल पड़ी, “रेखा दीदी का फोन था कट गया।”

शायद उनको भी आभास हो गया की मैं ही फोन उठाने जा रही हूँ तो मेरी शिकायत मुझसे कैसे करेंगी।

ना जी! ये तो माजक था। फोन तो हमारे देर करने से कटा।

अनिकेत बाथरूम से बाहर आकर बोला, “तुम भी हद करती हो? उठा नहीं सकती थी फोन? खुद के मायके वालों का फोन तो ऐसे भागकर उठाती हो जैसे कोई कोहिनूर दे रहा हो तुम्हें। पता नहीं क्यों फोन कर रही थी रेखा? लेकिन तुम्हें क्या पड़ी है? तुम्हारी बहन थोड़ी ना है वो”, कहते हुए वहाँ से अंदर अपने कमरे में चले गए।

और मैं जवाब ढूंढ रही थी। आ तो बहुत सारे रहे थे लेकिन मैं सटीक जवाब के चक्कर में थी, तब तक देर हो गयी और अनिकेत मुझे सुना कर चले गए बहन से बात करने।

ये अकसर होता है मेरे साथ जवाब बाद में ही याद आता है। आप लोगों के साथ भी ऐसा होता है तो बताइयेगा जरूर।

मैं सोचने लगी कि महाशय मेरे मायके का फोन तो कभी उठाते नहीं। कभी किसी ने आग्रह किया कि जरा बात करा दो तो बात ऐसे करते है जैसे कोई सैलिब्रिटी हों। खैर, दामाद जो ठहरे तो अभिमान स्वाभाविक है। मन ही मन मैं सोच रही थी। तब तक…

अनिकेत गुस्से में चिलाये, “दीया, दीया यहाँ तो आना। रेखा क्या कह रही है कि भाभी हमें लाइक नहीं करती?”

“क्या हुआ? इतना क्यों चिल्ला रहे हो? ये किसने कहाँ कि मैं लाइक नहीं करती और वैसे भी मेरे लाइक करने ना करने से क्या फर्क पड़ता है किसी को?”

“तुम्हारी परेशानी ही यही है कि तुम बोलती बहुत ज्यादा हो। ये लो रेखा तुमसे बात करना चाहती है।”

मैं मन ही मन सोचते हुए कि अब क्या हुआ सुबह सुबह, ” हेलो!”

अनिकेत फिर बोला, “फोन स्पीकर पर ही रहने दो और बात करो।”

“हाँ दीदी कहिये।”

“देखिये भाभी आप हमें लाइक नहीं करतीं, ये तो हम लोग जानते हैं, लेकिन ये बात दुनिया को बताने और जताने की क्या जरूरत थी?”

मैं हैरान परेशान सच से अनजान फिर भी दोषी?

“मतलब? मैं समझी नहीं। मैंने किस से कही ये बात? मैंने तो किसी से भी कुछ नहीं कहा।”

“देखिये भाभी ज्यादा अनजान बनने का नाटक अब मत कीजिये। मेरी आदत पीठ पीछे बात करने की या बोलने की, तो बिलकुल नहीं। मैं जो बोलती हूं मुँह पर बोलती हूँ और भैया ये बात अच्छे से जानते है। इसलिए आपको बोल रही हूं।”

“लेकिन बात हुई? क्या किस ने क्या कहा आप लोगो से? और मैंने किस से क्या कह दिया?”

रेखा उधर से बोली, “किसी से कुछ कहने की क्या जरूरत? पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं कि आप फेसबुक और व्हाट्सएप पर दिनों रात ऑनलाइन रहती हैं। मैंने देखा है आपको सुबह सुबह और रात के चार बजे तक ऑनलाइन रहती हैं, लेकिन मेरी और माँ की एक भी पोस्ट पर आपने लाइक नहीं किया।

कमेंट करना तो बंद कर ही दिया था, अब लाइक करना भी बंद कर दिया? मेरे ससुराल वाले पूछ रहे थे तुम्हारी भाभी लगता है हमें लाइक नहीं करती। क्या उनसे तुम्हारे रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं? कल तो मैंने आपको तीन बजे रात को ऑनलाइन देखा था इतनी इतनी रात को कौन ऑनलाइन रहता है?”

“ये अच्छे घर की बहू-बेटियों की निशानी नहीं”, बीच में सासुमां ने बोला तो पता चला कि ये कॉन्फ्रेंसिंग काल थी।

मैं सिर पर हाथ रख सोचने लगी, अच्छा! तो अब समझ आया कि अब पूरा परिवार मिलकर मेरी ऑनलाइन निगरानी कर रहा है। एक और बात जो मैं मन ही मन सोच रही थी रेखा मुँह पर बोले तो दिल की साफ मैं बोलू तो तेज, चालक, घर को बिगाड़ने वाली।

भाई एक ही शब्द और भाव के दो मतलब बहु और बेटी के लिए अलग-अलग। क्यों फिर तो बेटी भी चालक और शातिर हुई ना? कमेंट कर दिया तो बुरा, ना करो तो बुरा, आखिर चले तो चले कैसे? मेरी समझ से तो बाहर था ये माजरा।

अब फिर सोचने लगी कि बहुओं के लिए तो पहले मुसीबत कम थी जो ऑनलाइन वाली भी जुड़ गई? कमेंट करो तो प्रॉब्लम, ना करो तो प्रॉब्लम? ऐसा कमेंट क्यों यहाँ? क्यों वहां? क्यों और ना जाने कितने क्यों क्या कब कैसे से भरें होते हैं ऑनलाइन से जुड़े सवाल।

अनिकेत ने ज़ोर  दे कर कहा, “अब बोलो क्यों चुप हो गयी जवाब दो? रात तक फेसबुक पर ऑनलाइन रहने का क्या मतलब है?”

इतना सुनते मैं सोच से बाहर आ गयी।

“क्या बोलूं? जब मैंने  रेखा दी की फ़ोटो देखी ही नहीं तो लाइक कहाँ से करुँ? और उनको मेरा कभी कमेंट पसन्द आता नहीं। तो तुम जैसे पहले कमेंट करते थे, अब भी कर देते, लाइक और कमेंट।

दूसरी बात की अगर रात में मैं ऑनलाइन थी, तो दीदी भी तो ऑनलाइन थी? फिर तो वो भी खराब हुई?

दीदी और माँजी तो कभी मेरे किसी पोस्ट पर लाइक, कमेंट नहीं करतीं, तब मैं तो कोई शिकायत नहीं करती? और अनिकेत तुम शायद भूल रहे हो कि मेरा फोन कल तुमने लिया था, तुम्हें कुछ काम था और तुम तो बोल ऐसे रहे हो, जैसे रात भर कहीं और रहते हो।

कितने आश्चर्य की बात है कि एक कमरे में रहकर भी तुम्हें ये पता ही नहीं की मैं तीन बजे रात को सो रही थी या जाग रही थी? अब तुम खुद ही जवाब दे दो कौन ऑनलाइन था, क्योंकि मैं तो सो रही थी।

रेखा दी आपको इस बात का जवाब अनिकेत ही दे सकते हैं, मैं नहीं। और आपकी पिछली पोस्ट पर भी कमेंट इन्होंने ही किया था जो आपको पसंद नहीं आया था, तो अब आप सारे सवाल जवाब अपने भैया से करो, क्योंकि मेरा फोन इनके पास था।

अच्छा किया आपने मुझे ये सवाल पूछ कर लेकिन आज एक बात और पता चली मुझे, कि आप सब अब ऑनलाइन निगरानी भी मुझ पर रखते हैं, फिर चाहे वो पति हो या सास”, कहकर फोन अनिकेत के हाथ में पकड़ाकर मैं दूसरे कमरे में चली गयी और अनिकेत के सुर अब थोड़ा बदल गए, क्योंकि सवालों के घेरे में अब वो खुद थे।

मैं सोचने लगी कि अब तक तो मुझ पर निगरानी रखी जाती थी अब आज ये बात भी पता चली कि ऑनलाइन  निगरानी भी मेरी रखी जाती है।

अगले ही पल मैंने अपना फोन उठाया और दूर के, पास के, नजदीकी रिश्तेदार और सास ननद  समस्त ससुराल के जासूस लोगों को सबको  ब्लॉक कर दिया। फेसबूक प्रोफ़ाइल में चुपचाप बैठे जासूसों को चुन-चुन कर अनफ़्रेंड कर दिया।

अगले दिन फिर मोबाइल बजा और वही रिंगटोन ‘मेरी मम्मी को पसन्द नहीं तू’ और और अबकि खूब तहलका मचा। लेकिन मुझे सुकून था कि कम से कम ये ऑनलाइन निगरानी बंद हो गई।

जिस फेसबुक व्हाट्सएप पर मैं खाली समय में टाइम पास के लिए ऑनलाइन होती हूँ, कभी-कभी अपनी सिया के लिए कुछ स्कूल एक्टिविटी और आर्ट न क्राफ्ट के पोस्ट देख लेती हूँ। कुछ मनपसंद कहानियां या वीडियो देख लेती हूँ, लेकिन लोग यहाँ भी निगरानी करने लगे थे कि कब मैं ऑनलाइन थी कितने देर रहती हूँ। प्राइवेसी में भी जासूसी की हद हो गयी है।

तभी मेरी सहेली रेवा का फोन आया, “कैसी है यार?”

“मैं ठीक हूँ। तू बता? मन की बात दबाते हुए औपचारिकता बस बोल दिया। कैसे कहूँ कि बिना गलती के गुनाहों की हाज़री दे रही हूं।”

रेवा ने कहा, “मेरा तो सुबह सुबह ही पंगा हो गया पतिदेव और सासुमां से। पतिदेव बरस पड़े कि तुमने मेरे साथ की डीपी क्यों बदली? उस कहानी को क्यों लाइक शेयर किया? जब देखो मेरे फोन को लेकर चुपके से मेरी डीपी बदल देंगे।

दोस्तों और मायके वालों के मैसेज पढ़ने लगते हैं और फिर ताने सुनाते रहते हैं कि तुम्हें ऐसे मैसेज आते हैं और सब सोचते हैं कि मैं ऑनलाइन होकर भी रिप्लाई क्यों नहीं कर रही?” एक सांस में रेवा बोले जा रही थी।

और मैं सुनकर यही सोच रही थी कि अगर पति और ससुराल वालों का बस बहुओं की साँसों पर भी चलता तो उसको भी रोककर अपनी मर्जी चलाते।

खैर, रेवा को सांत्वना देकर मैंने फोन रख दिया। लेकिन मेरी सोच अभी भी जारी थी कि हर औरत कहीं ना कहीं कैद में है। उसे अपने सोचने, समझने और पसन्द रखने का अधिकार नहीं? नहीं तो, आखिर क्यों?

आपको पता चले इसका जवाब तो मुझे बताइएगा जरूर, यदि नहीं तो कहानी को शेयर करके ये सवाल पूछे जरूर, कि आखिर कब एक औरत को अभिव्यक्ति की आजादी मिलेगी?

यहाँ एक चीज और जोड़ते हैं कि दिए गए उपरोक्त अनुभवों में से कुछ लेखिका के स्वयं के भी हैं।

कहानी के माध्यम से सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि आज कल लोग फेसबुक फ्रेंड में दोस्ती रिश्तेदारी कम निभाते है जासूसी ज्यादा करते हैं। और फिर पूछती हूँ, आखिर कब तक एक महिला को अभिव्यक्ति की आजादी मिलेगी?

क्यों हम कोई पोस्ट डालने से पहले सोचते हैं? क्यों हम अपने पसंद की प्रोफाइल पिक्चर भी नहीं लगा सकते।

मूल चित्र : Still from Short Film Who Am I/The Short Cuts, YouTube

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