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वे हिचकी लेते हुए अपने हाथ की दो उँगलियाँ दिखाती हैं, अर्थात उनके पति और बेटे दोनों ने। मैं उन्हें गले से लगाती हूँ और कहती हूँ, "पुलिस...कम्प्लेन?"
वे हिचकी लेते हुए अपने हाथ की दो उँगलियाँ दिखाती हैं, अर्थात उनके पति और बेटे दोनों ने। मैं उन्हें गले से लगाती हूँ और कहती हूँ, “पुलिस…कम्प्लेन?”
ट्रिगर वार्निंग: इस लेख में घरेलू हिंसा का वर्णन है और सब पाठकों के लिए उपयुक्त नहीं है।
वो मेरी पड़ोसन हैं। लगभग साठ पैंसठ की उम्र। पति, पुत्र, पुत्रवधू व नन्हा सा पोता, यही परिवार है उनका छोटा ख़ुशहाल सा परिवार।
उन्हें हिन्दी नहीं आती और मुझे तेलुगु, इसलिए अक्सर निगाहें मिलने पर हम मुस्कुरा भर देते हैं। हाँ, कभी-कभी हाय-हैलो भी हो जाती है। वे टूटे फूटे दो चार अंग्रेज़ी शब्दों में अपनी बात समझाने का प्रयास करती हैं और मैं समझने का।
वो अक्सर ही घर के बाहर पोते को टहलाते हुए, पौधों की निराई गुड़ाई करते हुए या अपने घर के बाहर साफ़ सफ़ाई करते हुए दिख जाती हैं।
आज पौधों में पानी डालते समय रोज़ की तरह ही मेरी नज़रें उनसे जा मिलती हैं, वे मुस्कुराती तो हैं पर अपनी आँखों की उदासी छुपा नहीं पातीं।
मैं पूछती हूँ, “इज़ एवरीथिंग ओके?” (क्या सब कुछ ठीक है?)
वे सकपकाते हुए कहती हैं, “यस…यस” (हाँ… हाँ)
मैं वापस मुड़ने को होती हूँ, तभी पीछे से उनकी आवाज़ आती है, “टी? कॉफ़ी?”
मैं आश्चर्य से भर उठती हूँ। इतने महीनों में पहली बार उन्होंने मुझे चाय या कॉफ़ी पीने के लिए आमंत्रित किया है। मैं सोच ही रही हूँ कि क्या उत्तर दूँ कि वो फिर इसरार करते हुए बोल पड़ती हैं, “प्लीज़।”
उनके घर पहुँचते ही वो कहती हैं, “कुचेंडी!” (जिसका हिन्दी में अर्थ होता है बैठिए)
घर में और कोई नहीं दिखता। मैं इशारे से उनके पोते के लिए पूछती हूँ। वे उदासी भरी आवाज़ में कहती हैं, “मॉल।”
यानी कि घर के सभी लोग मॉल गये हुए हैं।
मैं पूछती हूँ, “यू डिंट गो?” (आप नहीं गईं?)
उनकी आँखें पनीली हो उठती हैं। वो अचानक मेरा हाथ पकड़ लेती हैं और कहती हैं, “अलोन… लोनली… सैड… डिप्रेशन…. नोबडी केयर्स” (अकेली हूँ… अकेलापन… दुखी हूँ… अवसाद… कोई मेरी परवाह नहीं करता।)
मैं उनका हाथ हौले से दबाते हुए कहती हूँ, “व्हाई डिप्रेशन? यू शुड गो विथ योर फॅमिली।” (क्यों डिप्रेस्ड? आपको भी अपने परिवार के साथ जाना चाहिए।)
वे फूट फूट के रो पड़ती हैं, “नो फॅमिली… नोबडी केयर्स… आई काननोट स्पीक।” (मेरा परिवार मेरी परवाह नहीं करता… मैं किसी से कुछ नहीं कह सकती।)
मैं उन्हें चुप कराने का प्रयास कर रही हूँ और वे लगातार कहती जा रही हैं, “आई काननोट स्पीक टू एनीबॉडी।” (मैं किसी को कुछ बोल नहीं सकती।)
मैं उनके हाथ में पानी का गिलास पकड़ाते हुए पूछती हूँ, “व्हाई कांट यू स्पीक? आफ्टरऑल दे आल आर योर फैमिली। योर हस्बैंड एंड योर सन। ” (आप उन्हें क्यों कुछ नहीं कह सकतीं, आख़िरकार वे आपके पति हैं, आपका अपना बेटा है।)
उनका उत्तर मुझे चौंका जाता है, “दे विल एंग्री।” (वे नाराज़ हो जायेंगे।)
और फिर मुझे अपने कंधे से अपना ब्लाउज़ हल्का सा खिसका कर दिखाती हैं और मैं लाल कत्थई से निशान देख सिहर उठती हूँ।
उनसे तुरंत पूछ बैठती हूँ, “हू डिड थिस? योर हस्बैंड?” (किसने किया ये? आपके पति ने?)
वे हिचकी लेते हुए अपने हाथ की दो उँगलियाँ दिखाती हैं, अर्थात उनके पति और बेटे दोनों ने।
मैं उन्हें गले से लगा लेती हूँ और फुसफुसाते हुए कहती हूँ, “पुलिस…कम्प्लेन?”
वो तुरन्त झटक कर अलग होने का प्रयास करती हैं और कहती हैं, “नो कम्प्लेन।”(पुलिस कम्प्लेन नहीं)
वो कॉफ़ी बनाने के लिए बार बार उठने को तत्पर हो रही हैं और मैं उनका हाथ थामे बैठी हूँ…नि:स्तब्ध, उद्वेलित, उद्विग्न।
सोच रही हूँ…क्या नारी जीवन केवल अभिशप्त होने के लिए ही बना है?
क्या जिसे नौ महीने अपनी कोख में रख, अपने रक्त से सींचा वो अपनी माँ के ऊपर हाथ उठा सकता है?
क्या वो पति जिसके साथ उम्र गुज़ारते हुए पत्नी के जीवन की सांध्य बेला आ गई, अपनी पत्नी का सम्मान किसी अंधे गहरे कुएँ में दफ़्न कर आया है?
क्या पढ़ी लिखी पुत्रवधू के लिए बूढ़ी सास एक आया मात्र है?
क्या आज भौतिकतावादी युग में सारे रिश्ते बेमानी हैं?
हम कैसे समाज में जी रहे हैं?
इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के प्रयास कर तो रही हूँ परन्तु… उत्तर मिलेंगे, ये आशा लगभग नगण्य है।
मूल चित्र : Still from Short Film Amma/PocketFilms, YouTube
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