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ऐसे पुरुषों को लगता है कि यदि वो अपनी नग्न तस्वीरें भेजेंगे तो उन्हें भी ऐसी तस्वीरें मिलेंगी, जबकि ये कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है।
कोविड महामारी में शाश्वती शिवा ने वही किया जो अधिकतर भारतीय नागरिक कर रहे हैं- अपने बीमार परिजनों के लिए इंटरनेट पर मदद की गुहार लगाना।
उन्हें पहली बार एक वेंटीलेटर तलाशने में इसमें सफलता भी मिली और इसलिए उन्होंने दोबारा प्लाज़्मा के लिए भी सहयोग की गुहार सोशल मीडिया पर ही लगायी।
इस दौरान उनका नंबर कई जगह शेयर किया गया और हालाँकि वो इस बात को लेकर सहज नहीं थीं लेकिन उनके दोस्तों को लगा कि ऐसा करने से उन्हें मदद जल्द मिलने की संभावना अधिक है तो उन्होंने नंबर रहने दिया।
इसके बाद उनका जो अनुभव रहा उसे उन्होंने पहले ट्विटर के ज़रिये और फिर यहाँ विस्तार से लिखा।
“मुझे कॉल आती रहीं, ये पूछते हुए कि मैं कहाँ रहती हूँ, क्या मैं अकेली रहती हूँ, क्या मैं सिंगल हूँ, क्या मैं उनसे बात करुँगी, मेरा पूरा नाम क्या है, एक आदमी तो चूमने की आवाज़ें निकलता रहा।”
लेकिन उनका ये बुरा अनुभव इतने में ही समाप्त नहीं हुआ, उनकी ट्वीट और बाद में इस लेख के बाद उन्हें सोशल मीडिया पर फिर से ट्रोल किया जाने लगा। उनके साथ ही अन्य महिलाओं ने भी ऐसे ही भयावह अनुभव शेयर किये हैं जहाँ इस प्रकार की एब्यूज़ पर कोई भी नियंत्रण नहीं है।
एक अन्य महिला फेसबुक पर अपने ऐसे ही अनुभव के बारे में लिखती हैं:
“मैं जो कर रही हूँ वो इसलिए कि किसी की मदद हो सके। मेरा इस तरह से एक सेक्सुअल वस्तु की तरह प्रयोग होना या केवल हस्तमैथुन के लिए एक सामान जैसा समझे जाना गलत है और मुझे निश्चित ही सिर्फ एक औरत के रूप में जन्म लेने के कारण इस तरह से असुरक्षित और क्रोधित महसूस करवाना भी सही नहीं। और ये कोई चुटकला या मज़ाक नहीं।” (फेसबुक पोस्ट का अपभ्रंश)
अक्सर ऐसी घटनाओं के बाद का महिलाओं को ही दोष देने लगते हैं-
तुम्हें अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए, सोशल मीडिया पर महिलाओं को मुखर नहीं होना चाहिए या फिर इस तरह के वाहियात हुकुम भी दिए जाते हैं कि महिकाओं और लड़कियों को मोबाइल फ़ोन ही इस्तेमाल नहीं करने चाहिए।
जबकि सवाल ये होने चाहिए कि हमारे पुरुष और लड़के इस तरह का बर्ताव बार-बार क्यों करते हैं? उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि ये सब मज़ाक या मामूली बात है जिससे वो आसानी से बच कर निकल सकते हैं?
अधिकतर केसों में जब ऐसे शिकायतें सामाजिक संस्थानों या कानूनी प्रक्रिया तक जाती हैं तब भी उन्हें मामूली या आम बता कर उन पर उचित या त्वरित कार्यवाही नहीं होती।
अनेक शोधों में पाया गया है कि ऑनलाइन अब्यूज़ में लगभग 95 % महिलाओं के खिलाफ होती है। हालाँकि इस तरह के शोषण की जड़ें हमारे पितृसत्तात्मक और शोषण से भरे सामाजिक ढांचे में ही हैं आधुनिक तकनीक ने इसे और आसान बना दिया है।
हम ये मानने को तैयार ही नहीं कि इस तरह के ऑनलाइन शोषण की एक बड़ी मानसिक और सामाजिक कीमत हमारी महिलाएँ और लड़कियां चुकाती हैं और ये उनके सामान्य जीवन, सामाजिक सरोकारों से जुड़ने और सहज मानसिक स्वास्थ्य में एक बहुत बड़ी बाधा है।
Voices from Digital Spaces: Technology Related Violence Against Women के अनुसार ऑनलाइन शोषण इस तरह विशिष्ट या अलग है:
मनोवैज्ञानिक शोध से ये भी ज्ञात हुआ है कि पुरुषों को लगता है कि यदि वो अपनी नग्न तस्वीरें भेजेंगे तो उन्हें उत्तर में भी ऐसी ही तस्वीरें मिलेंगी। जबकि ये साफ़ होना चाहिए कि बिना सहमति के किसी व्यस्क को भी ऐसा कंटेंट भेजना कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है।
महामारी में सबका ही इंटरनेट उपयोग बढ़ा है और इसी अनुपात में ऑनलाइन शोषण में भी बढ़त हुई है। महामारी के चलते अनेक महिलाएँ सोशल मीडिया का उपयोग न केवल अपने दोस्तों से जुड़े रहने बल्कि अनेक तरह की सामाजिक या माड़ की गतिविधियों के लिए भी करने लगी हैं। ऐसे में उन्हें कई बार होनी निजी जानकारी जैसे पता या फ़ोन नंबर सांझा करने पद रहे हैं जिनका दुरूपयोग किया जा रहा है।
घरेलु हिंसा के साथ ही ऑनलाइन शोषण और धोखाधड़ी में भी अप्रत्याशित बढ़त हुई है। जबकि अभी बाहर आना जाना वैसे ही कम है ऐसे में सोशल मीडिया सबके जुड़े रहने और मदद मांगने या पहुंचाने का अच्छा माध्यम बन सकता है लेकिन अधिकतर महिलाओं के लिए यहाँ होने वाले शोषण ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को और भी बिगाड़ा है।
भारत में ऑनलाइन शोषण के लिए भारत सरकार की इस वेबसाइट पर अनाम रह कर भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं, या हेल्पलाइन नंबर 155260 से सहयोग लें।
मूल चित्र : Still from short film U Turn, YouTube
Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...
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