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अपनी आँखों के सपने तकिये पे सूखाकर, सबके लिए वो बनने की कोशिश करते हूँ जो मैं नहीं...और तुम्हें बस मेरा शरीर दिखता है, मेरा मन नहीं...
अपनी आँखों के सपने तकिये पे सूखाकर, सबके लिए वो बनने की कोशिश करते हूँ जो मैं नहीं…और तुम्हें बस मेरा शरीर दिखता है, मेरा मन नहीं…
तुम रोज मुझे छोड़ जाया करते हो इस बिखरे से घर में अकेली कभी बर्तनों से जूझते, कभी मैले कपड़ों के बीच…
तुम्हारे माँ बाप की उम्मीदों के जाल में मैं रोज लड़ती हूं रोज जीने की कोशिश में…
अपनी आँखों के सपने तकिये पे सूखाकर सबके लिए वो बनने की कोशिश करते हुए जो मैं नहीं हूं, ना हो सकती हूं…
पर फिर भी कोशिश करती हूं मैं नहीं कह सकती कि मुझे नहीं आता इसमे मेरा मन नहीं लगता…
खाना मैं भी माँ के हाथ का ही खाती थी, पापा मुझे खिलाते थे तुम खुशकिस्मत हो तुम्हें भी नहीं आता, पर कोई शिकायत नहीं करता…
मेरे हाथ भी कंप्युटर पे ज्यादा अच्छे चलते हैं बेलन पर नहीं पर तुम्हें उम्मीद है, मैं बदल जाऊँगी पर मैं नहीं बदल पाऊँगी…
तुम बिना पूछे छू लेते हो मुझे मेरे शरीर को अपना समझ लेते हो कैसे? ये तो मेरा है… तुम्हें क्यों हक है मुझसे बच्चे पैदा करवाने का… मुझे तो नहीं चाहिए…
कैसे मैं तुमसे प्यार कर पाऊँगी क्या कभी तुमने मुझे सहलाया? तुम्हें मेरा शरीर दिखता है, मेरा मन क्यों नहीं…
मैं तो जीना चाहती हूं, चहक कर पर नहीं हो पाता… कोशिश की थी… नहीं हुआ…
सुनो, बस तुम मुझे कंधा मत देना मैं बोझ नहीं तुम पर, तब भी नहीं, ना अब शायद दो आंसू हों दुनिया के लिए… मुझ पर ना खर्च कर देना..
और हाँ, मुझे अब छुना नहीं… आखिरी बार कह रही हूँ… मुझे विदा दो…
मूल चित्र : Still from Short Film Consent/Movifi, YouTube
Life tries you as much as you can endure.....never give up !!! read more...
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