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इस संसार में प्यार ही एक ऐसा शस्त्र है, जो अपने प्रेममयी प्रहार से समीप लाता है, जो जि़ंदगी जीने के लिए संजीवनी साबित होता है ।
बहुत ही तल्लीनता से मधुर संगीत “पिया बसंती रे..पिया बसंती रे” गाते हुए बैठी थी राधा।
पालिया गांव में रहने वाली सीधी-साधी राधा! उसे क्या मालूम? अभी एक साल भी नहीं हुआ था मोहन से मुलाकात हुए और उसे अचानक ही सुकमा में नक्सलियों से सामना करने के लिए जाना पड़ गया। क्या-क्या सपने संजोए थे दोनों ने मिलकर और उनके सपने विवाह बंधन में बंधकर नया रूप लेने वाले थे। पर भाग्य में लिखा कोई टाल सका है भला?
राधा गांव में अपने माता-पिता के साथ रहकर छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ ही सामाजिक सेवाएं भी करती थी। जैसे गांव की महिलाओं को शिक्षा हेतु प्रेरित करना, छोटी-छोटी बचत कैसे करना, किसी दीन-दुखी की सेवा एवं मदद करना इत्यादि कार्यों को अंजाम दे रही थी। उसका बचपन से एक ही सपना था, संगीत-साधना सीखने का, तो रात के समय प्रतिदिन रियाज़ करती और उसकी आवाज़ मधुरमय इतनी कि सुननेवाले का मनमुग्ध हो जाए। माता-पिता की गांव में पुश्तैनी जमीन थी, जिस पर थोड़ी-बहुत खेती-बाड़ी करके गुजर-बसर हो जाती।
इसी बीच सुकमा में हुए नक्सली हमले के बाद एक बार पुन: नक्सली चर्चित हो गए। वहीं पहले से तैनात जवानों की संख्या इतनी थी नहीं की नक्सलियों को आसानी से खोज पाती, अत: अतिरिक्त जवानों की सेवाएं ली गई। जिसके तहत मोहन को देश की सेवा की खातिर जाना पड़ा।
अब गांव में रहने वाली राधा क्या जाने इन नक्सलियों का आतंक। वो तो सिर्फ अपने मोहन को चाहे़। उसकी बेरंग सी जिंदगी में रंग भरने वाला एक मोहन ही तो था, उसके मन में दबी हुई गीत-संगीत की चाह को पुनर्जन्म देने वाला, उसकी पुरानी खामोश सी जि़दगी में नवीन बहारें लाने वाला। मोहन ने एक दिन चोरी-छिपे गाते हुए जो सुन लिया था राधा को।वो बस सदैव यही कोशिश करता की किसी भी इंसान को अंधेरे से उजाले की दिशा दिखाए और वही उसने राधा के साथ किया। और संगीत की तर्ज पर हुई मुलाकात कब प्रेम में तब्दील हो गई, कुछ पता ही नहीं चला।
मोहन तो इसके पहले भी बॉर्डर पर अपनी सेवा पूरी करके, इस गांव में सिर्फ निरीक्षण के लिए आया था और जब तैनात जवानों संग जब तंबु में विश्राम कर रहे थे तभी पहली मुलाकात हुई उसकी राजेश से। और बातों ही बातों में राजेश ने अपने गांव के बारे में बताया और यह भी बताया कि किस तरह राधा दीदी ने कष्टों के साथ उसे पढ़ाते हुए यहां तक पहुंचने में मदद की। तो मोहन ठहरा गांव में घूमने का शौकीन और वैसे भी जवानों की किस्मत में कहां आराम लिखा होता है। विश्राम के लिए मिला एक सप्ताह का समय सुकून से गुजारने वह भी चल दिया राजेश के साथ पालिया गांव की सैर करने और ठंड के सुहाने मौसम में बसंत की भीनी-भीनी छाई हुई बहार का लुत्फ उठाने।
इसी बीच पता चलता है कि सुकमा में नक्सलियों ने कोहराम मचा रखा था। पर मोहन के साथ कार्यरत जवानों की टीम ने मिलकर ऐसा धावा बोला कि नक्सलियों के तो छक्के छूट गए। और वैसे भी इन क्षेत्रों के अक्सर नक्सलियों का हमला सुनने में आता है और दैनंदिनी जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
मोहन के पिता बचपन से ही उससे कहते, “इस जन्म में जब तक जीना बेटा अपने मन में देशप्रेम सेवा सदैव रखकर देश की खातिर ही कुरबान होना।” वे भी वीर जवान ही थे, जो बाघा-बॉर्डर पर दुश्मनों का सामना करते हुए जख्मी हो गए थे और उनके साथ गुजरात से ही अन्य जवान भी बुरी तरह से घायल हुए थे । तमाम कोशिशों के बाद भी उनकी जान बचाने की कोशिश नाकामयाब रही।मोहन अपने पिताजी से बेहद प्यार करता था और बहुत आदर भी करता। तो आगे उसने पिताजी द्वारा दी गई दिशा में ही कदम बढ़ाया और सैनिक स्कूल में पढ़ाई की।पिताजी के जिघ्री दोस्त ने मोहन को अपना सहयोग प्रदान किया क्योंकि वे भी सेवानिवृत्त जवान थे।
इसी बीच नक्सलियों से युद्ध करते-करते मोहन अपने जवान साथी को बचाते हुए जख्मी हो जाता है और तुरंत ही उपचार हेतु उसे नज़दीकी अस्पताल पहुचाया जाता है। उसके जवान साथी भगवान से प्रार्थना की जाती है कि उनके इस अनमोल जवान सैनिक की जान बच जाए और ऐसे वीर सैनिक की सेवाएं देश की रक्षा हेतु प्रेरक उदाहरण बनकर सदा ही जीवंत रहे।
इतने में पालिया गांव में मोहन के अस्पताल में भर्ती होने की खबर सब जगह फैल जाती है और जैसे ही भोली-भाली राधा को पता चलता है, तो वह बेचारी एकदम से सहम जाती है और उसकी जि़ंदगी को अपने अनमोल प्यार से प्रकाशित करने और दीपक बन जीवन संवारने वाले मोहन के बारे में सोचने लगती है। ख्यालों ही ख्यालों में गांव वालों द्वारा पहले कही गईं बाते याद आने लगी। जिला दंतेवाड़ा में वर्ष 2016 में कथित फर्जी एनकाउंटर में नक्सल प्रेम कहानी का अंत हुआ था। उस समय के नक्सली मूठभेड़ में किरण और जरीना की प्रेम कहानी का अंत हो जाना इन आदिवासियों के लिए एक भयभीत करने वाला हादसा था।
जी हॉं साथियों इस संसार में प्यार ही एक ऐसा शस्त्र है, जो अपने प्रेममयी प्रहार से समीप लाता है, जो जि़ंदगी जीने के लिए संजीवनी साबित होता है । नक्सली हुए तो क्या हुआ थे तो किरण और जरीना भी आखिर प्रेमी ही ना?
इतने में राजेश पुकारते हुए आता है। “राधा दीदी! राधा दीदी! ओ राधा दीदी, जल्दी चलो मेरे साथ अस्पताल मोहन की हालत बहुत नासाज है।” सुनते ही राधा बोखलाई और बोली “भैय्या जल्दी लेकर चलो न मुझे मोहन के पास।वैसे भी पता नहीं दिमाग में कैसे-कैसे ख्याल आ रहे हैं।”
फिर दोनो पहुंचते हैं अस्पताल में और पहुंचते ही पता चलता है कि मोहन को बहुत ही घायल अवस्था में लाया गया था और संबंधित चिकित्सकों द्वारा शीघ्रतिशीघ्र उपचार भी प्रारंभ किया गया,पर सफलता नहीं मिल पा रही थी। थोड़ी ही देर में नर्स ने आकर कहा कि मोहन बाबु हलचल कर रहे हैं और राधा व राजेश जैसे ही मोहन के पास पहुँचे तो उसे देखते ही राधा बिलख पड़ी। उससे मोहन की हालत देखी ही नहीं जा रही थी। वह सोचने लगी कि मोहन ठीक तो हो जाएगा न? इतने में राजेश ने कहा “दीदी, ओ दीदी! कहां खो गई, वो देखो मोहन ने ऑंखें खोली” और राधा-मोहन एक दूसरे को ऐसे निहारने लगे जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो।
तो देखा आपने प्रेम केवल प्रेम न होकर एक संजीवनी है और कुछ ही दिनों में मोहन ठीक होकर पालिया गांव में आया अपनी राधा के साथ चिकित्सकों की आराम करने की सलाह का पालन करने। और पूर्ण रूप से ठीक होने के पश्चात उसे पास ही सैनिक विद्यालय में प्रशिक्षण जो देना था विद्यार्थियों को देश का वीर जवान बनाने हेतु।
फिर पालिया गांव में बसंत पंचमी की बहार कुछ इस तरह छायी, कि राधा-मोहन विवाह के पवित्र बंधन की शुरूआत कर, मन के बसंत में रंगे प्रेम भावों के साथ रंग गए और वे संगं-संग ही प्रेमरस बरसाने लगे।
“पिया बसंती रे..पिया बसंती रे” मोहन के साथ बेठी राधा गा रही थी और मोहन ध्यान मग्न होकर आनंद ले रहा था तल्लीनता से। और सभी गांव वाले इस मधुर संगीत का लुत्फ उठा रहे थे ।
मूल चित्र: Visa Photographc via Pexels
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