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मैं एक कड़क सास बनने की कोशिश कर रही हूँ…

"अरे गरिमा तेरी मत मारी गयी है? कितना समझाया था क्यों 'बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम बन रही है?' अपना मजाक खुद क्यों बना रही है? मेरी बात मान।"

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“अरे गरिमा तेरी मत मारी गयी है? कितना समझाया था क्यों ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम बन रही है?’ अपना मजाक खुद क्यों बना रही है? मेरी बात मान।”

“रमन, मम्मी अभी तक नहीं आयी नाश्ते के लिए!” राशि ने अपने पति से कहा। 

“आ रही है बहु! आज तुम्हारी सास के अंदाज जरा बदले बदले हैं!” राधेश्याम जी(ससुर) ने कहा

“अरे वाह मम्मी! आज साड़ी? वो भी सूती? आपके पास तो ऐसे कपड़े नहीं। ये किसने दिया आपको?” कहते हुए रमन ठहाके लगा कर हँस पड़ा। 

“हँस क्यों रहे हो रमन? मम्मी का मन किया होगा, रखी होंगी उन्होंने पहले से। आज मन किया होगा तो पहन लिया होगा। क्यों मम्मी सही कह रही हूँ ना मैं?” राशि ने अपनी सास गरिमा जी के चेहरे की गम्भीरता को भांपते हुए कहा। 

गरिमा जी ने सिर्फ “हम्म” में जवाब दिया और चुपचाप नाश्ता करने लगी।

ये देखकर रमन, राशि और राधेश्याम जी आश्चर्य में हो गए क्योंकि गरिमा जी काफी मजाकिया और हँसमुख इंसान थीं। वो रोते हुए इंसान को भी हँसाने की कला रखती थीं। 

वो रेगुलर सलवार कमीज पहनती थीं, इंडो वेस्टर्न कपड़े भी पहन लिया करती थीं। जब कोई कुछ कहता तो कहतीं, “अरे यार उम्र को गोली मारो, जिंदगी एक बार ही मिलती है, तो मैं जियो और जीने दो का मंत्र लेकर चलती हूं। कपड़े खाने तो मैं अपनी पसंद के ही रखूंगी बस।” और हर बात का जवाब फिल्मी गाने गा कर देती थी।

पूरा दिन रात बीत गया लेकिन सबके लाख बोलने पर भी सिर्फ हाँ ना में ही जवाब देतीं।

रात को राशि ने रमन से कहा, “रमन तुमने नोटिस किया जब से मौसी जी और नानी जी शादी का निमंत्रण देकर गयी है तब से मम्मी कुछ अलग व्यवहार कर रही हैं।”

“हाँ! यार तूमको तो सिर्फ अभी 6 महीने हुए हैं। मैंने तो उनको बचपन से आजतक इतना शांत कभी नहीं देखा। पापा भी यही कह रहे थे।”

दो दिन बीत गया लेकिन गरिमा जी के व्यवहार में परिवर्तन नहीं हो रहा था।

शनिवार के दिन शाम को राशि रमन और राधेश्याम जी गरिमा के पास जाकर चुपचाप उनके ही स्टाइल में चुपचाप बैठ गए, और तीनों एक साथ सोफे पर बैठी गरिमा की नकल करने लगे।

ये देख गरिमा जी को हँसी तो आ रही थी लेकिन वो अपनी हँसी को दबा ले रही थीं।

तभी राधेश्याम जी ने कहा, “रमन तुझे गाना सुनने का मन था ना। अब तेरी मां तो सुनाएगी नहीं तो मैं ही सुना देता हूं।”

“चुपचाप बैठी हो जरूर कोई बात है, पहली मुलाकात नहीं ये वर्षों का साथ है।
साजन की बातों पर गुस्सा जो आ गया, झगड़ा करो वही पहले वाली बात है।”

गरिमा जी ने कहा, “ये गाना गलत है।”

राधेश्याम जी ने कहा, “तो तुम सही कर के सुनाओ। मेरे हिसाब से तो ये गाना बिलकुल सही है।”

इतना सुनकर गरिमा वहाँ से जाने लगीं, तो रमन और राशि ने उनका हाथ पीछे से पकड़ लिया और उन्हें वापिस सोफे पर बिठा दिया।

रमन ने गरिमा के गोद मे अपना सिर रखकर कहा, “माँ क्या हुआ कुछ तो बोलो। आप ऐसे चुप-चुप बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रहीं। ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी और के घर मे हूं। मुझे तो अब अपने ही घर मे घुटन हो रही है। आपको ऐसे देख कर लग रहा है जैसे मेरी मां कही खो गयी। क्या बात है माँ बोलो ना।”

राशि ने भी पुछा, “माँ मुझसे कोई गलती हुई क्या जो आप नाराज हैं? तो मुझे माफ़ कर दीजिए, चाहें तो डांट भी लीजिये।”

राधेश्याम जी ने मजाक करते हुए कहा, “गरिमा या तो तुम बोलो, वरना मैं तो चला फिर तुमको छोड़कर अपने पुराने प्यार रेखा के पास।”

गरिमा की आंखों में आंसू देख सब दंग रह गए।

“अरे मां आप रोने क्यों लगीं? पापा तो मजाक कर रहे थे ताकि आप कुछ बोलो।”

गरिमा जी ने कहा, “नहीं मुझे पता है कि मेरे शौक और व्यवहार के कारण सब एक एक करके मुझे छोड़ देंगे, तू भी बहु को लेकर चला जायेगा, जैसे बड़े भैया के बहु बेटा चले गए।”

राधेश्याम जी ने बीच में ही टोका, “अरे मेरी प्राणप्रिये मैं तुमको कही छोड़कर नहीं जा रहा। यहाँ तक कि हम में से कोई भी नहीं जाएगा। ये जरूरी तो नहीं की जो तुम्हारे भैया भाभी के साथ हुआ, वो हमारे साथ हमारे घर में भी हो। अब तुम पूरी बात बताओ।”

फिर गरिमा जी ने बताया, “दरअसल मौसी जब शादी का कार्ड देने आयी थीं, तो उन्होंने ने मुझसे  कहा कि ये क्या बहु की तरह सलवार कमीज पहन रखी है तुमने? सास बहू में कोई फर्क ही नहीं  नजर आ रहा। उनमें थोड़ा फर्क तो होना ही चाहिए समझी?

अब बहु आ गयी है तो थोड़ा अपने व्यवहार में गम्भीरता ला और ये सलवार कमीज, ये सब इंडो वेस्ट्रन कपड़े पहनना बंद कर दे और ये सब सजना सँवरना कम कर दे वरना बहु को लगेगा कि उसकी सास उसकी बराबरी करती है और कहीं तेरे इस व्यवहार से चिढ़ कर  बहु तुझे छोड़कर चली जायेगी तो ,समझी?

और, तुझे पता भी नहीं चलेगा कि कब बहु ने बेटे को तुझसे दूर कर दिया और जवान शादीशुदा बेटे के आगे कोई ऐसे सजसंवर कर रहता है क्या? और ये बहु से हँसी मजाक करना बंद कर समझी?”

राधेश्याम ने पुछा, “अच्छा! तो ये बात है अब बात आई समझ में। तो तुम कड़क सास बनना चाहती हो, जो बहु को काबू में रखे, बेटे बहु पर हुक्म चलाये, ये उसकी प्रैक्टिस  हो रही है? तब तो कर लो प्रैक्टिस।”

गरिमा ने कहा, “आप ये क्या कह रहे है, मैं क्यों बहु को काबू में रखूंगी? क्या आपको मेरी सोच नहीं  पता जो आप ऐसा सोच रहे है मेरे बारे में? राशि को मैंने कितने अरमानों से उतारा है, ये तो आप जानते हैं।

मैं तो सास, और मां बनने से पहले राशि की अच्छी सहेली बनना चाहती थी इसलिए तो इसको कभी और ससुराल वालों की तरह ‘माँजी पापाजी जी’ का जयकारा नहीं लगवाया। एक ही तो बहु है मेरी दूसरा कोई और बच्चा भी नही जिससे उम्मीद करूँगी या प्यार करूँगी। क्यों राशि तुम ही बताओ क्या मैंने आजतक तुमको कुछ कहा?”

राशि एकदम बोली, “नहीं माँ आप तो इस दुनिया की सबसे अच्छी सास हो और मैं सौभाग्यशाली बहु, जिसे सास के रूप में माँ और एक अच्छी सहेली मिली।”

राधेश्याम जी ने कहा, “यही तो मैं भी कहना चाहता हूं कि किसी के कहने में आकर तुमने खुद को क्यों बदला?”

रमन भी चुप न रहा, “एक और बात माँ आपके कपड़े और सजने सँवरने पर किसी को भी टिका टिप्पणी करने की जरूरत नहीं,आप जैसी है वैसी ही अच्छी लगती है हमको। अब प्लीज मुझे मेरी माँ लौटा दीजिये, और भूल जाइए कि आप सास हैं  और राशि आपकी बहु है।”

“राशि कल जो कपड़े लाये थे, वो जरा लाना।

माँ ये आपका और ये राशि का। मैं और पापा जाकर बाजार से लेकर आये हैं। ये मेरी पसन्द है। लेकिन आप नाराज थी तो हिम्मत नहीं हुई हमारी आपको दिखाने की। कल आप अपने सालगिरह पर इसे ही पहनेंगी।”

खोलकर देखा तो दोनों में बिल्कुल एक जैसे गाउन थे, गुलाबी रंग के।

“माँ कल का थीम ही यही है। मैं और पापा एक जैसे कपड़े पहनेंगे, आप और राशि एक जैसे।”

अगले दिन राशि अपनी सास को लेकर जब सालगिरह की पार्टी में आयी तो सबकी आंखे खुली की खुली रह गयीं।

एक ही शहर मे होने के कारण मौसी जी भी समारोह में उपस्थित थीं। दोनों सास-बहू को देखकर उनका मुँह खुला का खुला रह गया। अब वो मौका देखकर गरिमा से फिर वही सब कुछ कहना चाहती थी।

राशि भी उनकी नजर देखकर बात को समझ रही थी। तभी मौसी ने मौका देखकर गरिमा को वही बात दोहरा रही थी और पीछे खड़ी राशि सब सुन रही थी।

“अरे गरिमा तुझे बुढ़ापे में ये क्या सूझी तेरी मत मारी गयी है? कितना समझाया था क्यों ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम बन रही है?’ अपना मजाक खुद बना रही है? तेरे भले के लिए ही समझा रही हूँ।”

तभी पीछे से राशि ने कहा, “मौसी जी यहाँ बुढ़ा कौन है? और ये क्या ‘बूढ़ा-बूढ़ा’ लगाया है आपने? बहु आ गयी तो माँजी सारे सजने सँवरने कपड़े पहनने के अधिकार छीन गए? ये तो बड़ी अच्छी सोच है आपकी।”

राधेश्याम जल्दी बोल पड़े, “अरे! गरिमा वो कौन सा गाना है? कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातों को… इसलिए अपने कान का इस्तेमाल अब एक से सुनने और दूसरे से बेकार बातें बाहर निकालने के लिए किया करो।

वैसे मौसी जी रसमलाई खा कर जायेगा, राशि और रमन ने बड़ी अच्छी व्यवस्था की है।

चलो गरिमा, आज तो तुम कयामत दिख रही हो। चलो एक बार फिर से शादी कर लेते हैं! क्या इरादा है?”

गरिमा जी मुस्कुरा पड़ी, और कहा, “मैं का करुँ राम मुझे बुढ़ा मिल गया…”

“हाय! इतने दिनों बाद लौटी मेरी गरिमा! अब छोड़कर मत जाना किसी के कहने से। ऐसे ही रहना, सजी संवरी मुस्कुराती हुई।”

पीछे से रमन और राशि ने भी कहा, “हाँ माँ पापा बिलकुल सही कह रहे हैं।”

कहानी का सार सिर्फ इतना है कि कभी भी कोई निर्णय खुद के बुद्धि विवेक से ले ना कि किसी की सुनी सुनाई बातो  में आना चाहिए।

मूल चित्र : Still from Saas Bahu Aur Strategy/Life Tak, YouTube

 

 

 

 

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