कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हालत ये हो गई थी कि सुबह बहू सोती मिलती और बेटे के आने पर बहू का आफिस जाने का चक्कर होता। मीनल जी का पारा तो सातवें आसमान पर था।
कहते हैं ना प्यार एक पौधे जैसा होता है। जैसे सींचोगे वैसा फल मिलेगा। कुछ इसी तरह का प्यार है मेरे कहानी के दो मुख्य किरदारों का अविका और रित्विक। इनका प्यार बिल्कुल आज के प्यार जैसा है… हुआ तो था फटाफट पर है समझदारी वाला। तो चलिए शुरू करती हूं कहानी की शुरुआत दिलवालों के शहर दिल्ली से।
“रित्विक…रित्विक बेटा जल्दी कर आफिस के लिए लेट हो जाएगा।”
“मां जल्दी नाश्ता दो मेट्रो के लिए लेट हो रहा।”
“तुम नौजवानों की यही आदत है रात भर कम्प्यूटर में गिटपिट और सुबह जल्दबाजी।”
“अच्छा मां चलता हूं, बाय।”
और इधर अविका…
“अरे! फिर निकल गई मेट्रो (अविका ने पैर पटकते हुए कहा)।”
तभी फोन की घंटी बजती है।
“अविका कहां तक आई? यार, मैं बस आ रही।”
“आ रही मतलब? तुम्हें तो अब तक CS होना चाहिए।”
“तुम्हें पता है ना रित्विक रात की शिफ्ट के बाद मेरे लिए जल्दी आना मुश्किल होता है।”
“आज हमारी पहली एनिवर्सरी है अविका, आज के दिन पूरे दो साल हुए हैं हमारे रिलेशनशिप को और तुम?”
खैर! इधर प्रेमी जोड़ों ने अपना आज का दिन सेलिब्रेट किया।
“अविका तुम्हारे घर वालों ने कुछ कहा?”
“हां वो तो शादी के लिए रेडी हैं और तुम्हारे रित्विक?”
“यार पापा तो मान गए मम्मी रिश्तेदारों का रोना लेकर बैठी हैं। क्यूं ऐसा क्या हो गया? बस वही तुम्हारी नाईट शिफ्ट जॉब, मम्मी का कहना है लोग क्या कहेंगे। फिलहाल मैं सब संभाल लूंगा।”
इधर अविका और रित्विक के परिवार में थोड़ी अनबन के बाद शादी की तैयारियां शुरू होती हैं और अविका दुल्हन बनकर रित्विक के घर आती है। कुछ समय के बाद रित्विक तो अपना आफिस जाना शुरू कर देता है पर अविका थोड़ा घर और रित्विक की मां मीनल जी को समय देना चाहती है। जिससे दोनों के बीच अच्छी बान्डिंग बने।
किचन में मीनल जी का हाथ बंटाने अविका भी पहुंचती है।
“अरे बहू! तुम क्यूं आई? अभी तो तुम्हारे हाथों की मेंहदी भी नहीं छूटी, लोग क्या कहेंगे? बहू आई नहीं कि सास के आराम चालू? मुझे नहीं सुनना, तुम जाओ।”
अविका जब काम कराने की सोचती मीनल जी उसे मना कर देती। थक हार कर उसने आफिस जाने की सोची और कुछ दिनों बाद से जाना शुरू कर दिया।
इधर मीनल जी को बहू की रात की नौकरी अखरती थी। उन्होंने रित्विक से कहना शुरू किया।
“रित्विक बेटा लोग क्या कहेंगे? बहू को रात की नौकरी कराते हैं? पैसों की इतनी कमी हो गई जो घर की इज्ज़त को रात के अंधेरे में जाने दे रहे हैं।”
“क्या मां वो नहीं मानने वाली। हमारी शादी की पहली शर्त यही थी कि कोई किसी के काम को टोकेगा नहीं।”
“लो भला पति का बात करना कहीं टोकना होगा?”
अविका को मीनल जी की आवाज़ अंदर तक आ रही थी।
“तुम देख लेना रित्विक कहीं रात में ऊंच नीच हो गई तो देना लोगों को जवाब”, और मीनल जी गुस्से से अपने कमरे में चली गईं।
घर की हालत ये हो गई थी कि सुबह बहू सोती मिलती और बेटे के आने पर बहू का आफिस जाने का चक्कर होता। मीनल जी का पारा तो सातवें आसमान पर जा रहा था।
धीरे-धीरे शादी को दो साल साल बीते अब मीनल जी सोचने लगीं कि बच्चे के लिए तो बहू नौकरी छोड़ेगी ही। अब तो उन्होंने रित्विक को बच्चे के लिए परेशान करना शुरू कर दिया।
“मां मैं बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं हूं। आप अभी इन सब के बारे में सोचना छोड़ दें।” उन्होंने सोचा बेटे से क्या बोलूं बहू से ही बात करती हूं।
दूसरे दिन सुबह उन्होंने अविका से अपनी दिल की बात छेड़ी। अविका बोली, “मां मुझे कोई समस्या नहीं है पर रित्विक ही बच्चे नहीं चाहते।”
“पर ऐसा क्यूं है बहू?”
“सीधी सी बात है मां रित्विक दिन में नौकरी करते हैं और मैं रात की …अब बच्चे कौन देखेगा। सवाल ये है? और बच्चे पैदा करने का मतलब ये नहीं कि आप लोगों की खुशी के लिए कर दिए। आगे जाकर भी तो बहुत सारी रिस्पांसिबिलिटी होती है जिन्हें माता-पिता के अलावा कोई नहीं कर सकता।”
“मुझे तो अविका तुम्हारी नौकरी नहीं समझ आती। अरे ऐसा क्या है नौकरी में जो तुम छोड़ नहीं सकती। तुम लोगों की वजह से मुझे लोगों की बातें सुननी पड़ती हैं।”
“पर क्यूं मां? अगर यही नौकरी रित्विक करता तो आप उसे छोड़ने को बोलतीं? नहीं ना? तो मुझे क्यूं? सिर्फ इसलिए कि मैं लड़की हूं और आपकी बहू? और बच्चे की रिस्पांसिबिलिटी कहाँ लिखी है कि सिर्फ औरतों की है मर्दों की नहीं?”
“और ये तुम्हारी रात की नौकरी अविका क्या ये सुरक्षित है?”
“सुरक्षित तो कुछ नहीं मां। क्या दिन सुरक्षित है? हम किसी चीज़ की गारंटी नहीं दे सकते। बस हमें खुद को मजबूत बनाना है ताकि सभी चीज़ों का डटकर सामना कर पाएं।
सबसे बड़ी बात मां कौन हैं ये लोग जिन लोगों से आप डरती हैं। ये समाज के नियम कायदे हमें खुद बनाने होंगे। आप ही बताओ जब हम अपने बच्चे को सही परवरिश और समय नहीं दे पाएंगे तो सिर्फ इस समाज के लिए पैदा करना क्या उचित कदम होगा?”
बहू की बात काफी देर सुनने के बाद मीनल जी बोली, “बात तो बहू तुम सोलह आने सच बोल रही। मैं ही समाज के इन लोगों के चक्करों में पड़ी रहती हूं और ऊटपटांग सोचती हूं। तुम लोग बेटा जो भी निर्णय लेना सोच-विचार के और सही समय पर लेना। तुम लोगों के हर निर्णय में हम साथ हैं।”
अविका, मीनल जी की बात सुन बहुत हल्का महसूस कर रही थी।
आप किससे इत्तेफाक रखतीं हैं? मीनल जी से या अविका से? जिसके साथ भी आपके विचार जाएं मुझे ज़रूर बताएं।
मूल चित्र : The Choice/Mothers and Daughters via YouTube(for representational purpose only)
read more...
Please enter your email address