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आज के समय में क्या हर कोई संपत्ति के लिए अपने रंग बदल लेता है?

आज का समय ऐसा है कि हर कोई गिरगिट से भी तेजी से अपना रंग बदल लेता है। आज जो जैसा है कोई भरोसा नहीं कल को वो ना बदल जाए।

 

आज का समय ऐसा है कि हर कोई गिरगिट से भी तेजी से अपना रंग बदल लेता है। आज जो जैसा है कोई भरोसा नहीं कल को वो ना बदल जाए।


“जूही! वो मुझे तुमसे कुछ कहना था..”, दीपक जूही को रोकता हुआ बोला। 

“मेरे पास समय नहीं है दीपक… प्लीज़ मेरा रास्ता छोड़ो।”

“एक बार तो मेरी बात सुनती जाओ जूही।”

जूही बिना दीपक से बात किए घर के अंदर चली गई। छत से देखती जूही के दादा जी सब जानते थे, पर शायद जूही को समझाते हुए वो भी थक चुके थे। बिन मां-बाप की जूही अपनी छोटी बहन नीता की जिम्मेदारी को छोड़ जाना ही नहीं चाहती थी। वो हर व्यक्ति को शक की निगाहों से देखती थी और नीता को लेकर किसी पर भी भरोसा नहीं था उसे।

“जूही बेटा! ज़रा इधर तो आना, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”

“जी दादा जी! बोलिए क्या कहना था मुझसे…”

“बेटा! दीपक अच्छा लड़का है बचपन से उनके और हमारे घरों में आना-जाना लगा रहा है। तुम भी जानती हो कि उसके अंदर किसी भी प्रकार का मैल नहीं है।आखिर एक मौका तो दो उसे अपने को साबित करने का।”

“क्या मौका दूं दादा जी! आज का समय ऐसा है कि हर कोई गिरगिट से भी तेजी से अपना रंग बदल लेता है। आज जो जैसा है कोई भरोसा नहीं कल को वो ना बदल जाए। सिर्फ ये सोच के की भविष्य में वो अच्छा ही होगा, मैं नीता की ज़िंदगी के साथ कोई समझौता नहीं कर सकती। वैसे भी दीपक मुझे पसंद करता है और क्या पता वो नीता की जिम्मेदारी उठाने से कल को मना कर दे। मैं अपने सुख के लिए अपनी बहन को अनदेखा नहीं कर सकती।”

“पर बेटा! हो सकता है वो ऐसा ना निकले भविष्य में। हम सब उसके व्यवहार से भली-भांति परिचित हैं। सबसे बड़ी बात नीता अभी बहुत छोटी है जूही। तुम क्या ज़िंदगी भर कुंवारी रहोगी और शायद बड़ी होकर नीता भी आत्मग्लानि महसूस करे तुम्हारे इस फैसले से।” दादाजी ने जूही को समझाया। 

“वो सब मुझे नहीं पता आगे क्या होगा दादा जी। पर एक चीज़ की तसल्ली रहेगी कि मैं मेरी बहन के दुखों का कारण नहीं बनूँगी। कल को संपत्ति के लिए बदलती नज़रें आपने भी देखी हैं। क्या पता संपत्ति के लिए लोगों में बदलाव आ जाए।”

“जूही, और तुझे कितना समझाऊं मैं। बहन के लिए इतना प्यार देख खुशी भी बहुत होती है और साथ ही दुख भी कि मेरी उम्र हो चली, पता नहीं और कितने दिन जी पाऊंगा , पर जाने से पहले तेरा घर बसते देखने की तमन्ना है।”

अगले दिन आफिस के लिए जाते वक्त दीपक ने जूही को रोका, “जूही प्लीज़! मेरी बात तो सुनो अगर तब भी ना अच्छा लगे तो मैं कभी नहीं तुम्हें परेशान करूंगा।”

“दीपक! अभी तो आफिस के लिए देर हो रही क्या हम शाम में मिलें?”

“हाँ हाँ। तुम्हारे आफिस के पीछे वाले कैफे में मिलते है।”

जूही की रजामंदी के बाद शाम को मिलने का वादा लेकर दीपक भी वहां से निकल जाता है।

ऐसा नहीं था कि जूही को दीपक पसंद नहीं। बचपन से दोनों साथ खेले , बड़े हुए और तो और विचार समान ही हैं दोनों के, पर फिर भी जूही चाह कर भी अपने प्रेम को व्यक्त करने में डरती थी। उसे लगता था भले ही दीपक मेरे प्रति ईमानदार हो, पर क्या वो नीता को लेकर भी समान भाव रख पाएगा जो मेरा मेरी बहन के प्रति है। या ऐसा ना हो सिर्फ प्यार दिखावा हो और संपत्ति के लालच में…। कदापि अपनी बहन के लिए ऐसा खतरा मोल ना लूंगी। शायद समाज में आए दिन‌ ग़लत समाचार ने उसकी सोचने की क्षमता और लोग पर विश्वास को कम कर दिया था।

शाम को दोनों तय समय जूही और दीपक उस कैफे में मिले।जूही शायद बात जल्द खत्म कर घर जाना चाहती थी। पर दीपक के आग्रह पर रुक गई।

“जूही! ऐसा क्या है जो तुम मुझसे भागती हो। आखिर ऐसा क्या तुम्हारे दिमाग में चलता रहता है जो मेरा इतना आग्रह भी तुम्हें रोक नहीं पाता। क्या आज मुझे अपने सवालों का जवाब मिलेगा?”

“देखो दीपक! मैं सीधी बात करती हूं… हां! मैं तुम्हें पसंद करती हूं, पर कहीं ना कहीं…” और सारी बात उसने दीपक के सामने रख दीं।

दीपक एक मद मुस्कान के साथ जूही से बोला, “बस इतनी सी बात। तुम्हें क्या लगता है मैं इस प्रकार का लड़का हूं जिसे तुम्हारे अलावा संपत्ति से प्यार है। क्या इतने सालों में तुम मुझे बस इतना समझ पाई। मैं बस तुम्हें इतना आश्वस्त कर सकता हूं कि नीता को जितना प्यार तुम करती हो उससे ज़्यादा मैं करूं। उसके सुख-दुख भी मेरे हो और जहां तक संपत्ति की बात है वो चाहो तो तुम नीता के नाम कर दो, मुझे उसमें कोई रुचि नहीं। मैं तब भी तुमको उतना ही प्रेम करूंगा। इतना तो भगवान ने संपन्न किया है जो तुम और तुम्हारे परिवार को संभाल सकूं। अगर इसके बाद भी मन में कोई प्रश्न है तो बताओ। वरना कल होली है आराम से विचार कर मुझे बता देना। अगर कल का पहला रंग तुम्हारे हाथों से लगा तो मैं उसमें तुम्हारी हां समझूंगा।”

अगले दिन जूही बहुत विचार के बाद अपने निर्णय पर पहुंची। दीपक अपने घर में बैठा ही था कि उसके चेहरे पर कोमल हाथों का स्पर्श हुआ और हैप्पी होली के साथ जूही ने अपने प्यार की भी हामी भर दी।

उसके बाद रंगों का ऐसा दौर चला कि दोनों प्यार के रंग में सराबोर हो गए। सभी परिवार वाले और दादा जी भी उनके इस फैसले से खुश थे। आज सही मायने में दोनों ने प्रेम की होली खेली थी।

 

मूल चित्र: Oppo india via Youtube 

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