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पटाखों की रात

क्या खूब लगती हैं शादियों वाली रातें, जब रौशनी पटाखों से होती है, दुल्हन को अंगारों से जलाकर नहीं।

क्या खूब लगती हैं शादियों वाली रातें, जब रौशनी पटाखों से होती है, दुल्हन को अंगारों से जलाकर नहीं।

उस रात आसमान से
तारे बरस रहे थे,
झिलमलाते, चटखते,
नीले, पीले, बैंगनी।

इससे पहले कि वो
गिर कर बिखर पाते,
एक दूसरी लकीर,
शूं कर
खींच जाती आस्मां में,
फिर और तारों की
बरसात होती।

पूरी रात ऐसे ही बरसते रहे,
तारे ये झिलमिलाते।
क्या खूब लगती हैं
शादियों वाली रातें।
जब रौशनी पटाखों से होती है,
दुल्हन को अंगारों से
जलाकर नहीं।

मूल चित्र: via youtube 

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About the Author

Vartika Sharma Lekhak

Vartika Sharma Lekhak is a published author based in India who enjoys writing on social issues, travel tales and short stories. She is an alumnus of JNU and currently studying law at Symbiosis Law School, read more...

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