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क्या आप अभी भी इस शादी को निभाना चाहते हैं?

निधि ने शादी को लेकर क्या सपने सजाए थे। खुद को संभालते हुए उसने अमृत से कहा, "क्या आप इस विवाह बंधन में बंधे रहना चाहते हैं?"

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निधि ने शादी को लेकर क्या सपने सजाए थे। खुद को संभालते हुए उसने अमृत से कहा, “क्या आप इस विवाह बंधन में बंधे रहना चाहते हैं?”

“निधि दीदी! लड़का देखा मैंने, अच्छा लगा”, स्वीटी ने अपनी बहन से बोला। “और पता है ये लोग दिल्ली के रहने वाले हैं…निधि दीदी आपकी तो ऐश ही ऐश होगी। इतने बड़े शहर में जाओगी।”

निधि की मां ने बोला, “स्वीटी तंग ना कर अपनी बहन को…पहले हां तो होने दे, निधि को पसंद तो कर लें।”

“मेरी दीदी लाखों में एक है क्यूं नहीं आएगी पसंद।”

“अच्छा चल जा मेरी लाडो लड़के वालों के लिए चाय लेकर… और ध्यान से बैठना, ज्यादा बातें नहीं…बस हां ना में सिर हिला देना…”

निधि को मिलते ही घर वालों ने पसंद कर लिया। सभी की सहमति से गाजे-बाजे और धूमधाम से निधि की शादी होती है।

सुहागरात की सेज पर बैठी निधि सुहागरात से जुड़ी हर चीज़ को सोच-सोच कर प्रसन्न हो रही थी। उसका रोम-रोम पुलकित हो रहा था।

अचानक दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ से निधि की धड़कनें बढ़ जाती हैं। निधि का पति अमृत उसके काफी करीब आ आता है। निधि अपनी तेज चलती धड़कनों को अच्छे से सुन पा रही थी और अचानक से अमृत तकिया और बेडशीट लेकर वहां से चला जाता है। ये सब इतना जल्दी हुआ कि निधि को कुछ समझ ही नहीं आया।

मुश्किल से निधि उस रात सो पाई थी। अगले दिन दोनों हनीमून के लिए निकल पड़े। दोनों के बीच बस औपचारिक बात हो रही थी। निधि ने अपनी तरफ़ से कई बार बात करने की कोशिश की पर अमृत बातों से बच कर निकल जाता।

निधि से रहा नहीं जा रहा था। आखिर मेरा कसूर ही क्या है निधि ने सोचा। उसने ठान लिया आज वो बात करके ही रहेगी।

अमृत, निधि के सो जाने के बाद कमरे में आता था। निधि सोने का बहाना कर आज जाग रही थी।

रात होते ही अमृत कमरे में आता है।

“मेरी गलती क्या है, अमृत?”

निधि की आवाज़ सुन अमृत चौंक जाता है, “तुम सोई नहीं अभी तक?”

“नींद तो मेरी कितने दिनों से गायब है, अमृत। मैंने ऐसी क्या गलती कर दी जो आप मुझसे दूर रहते हैं।”

“इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है। अपराधी तो मैं हूं”, कहते हुए अमृत चुप हो गया।

“ऐसा क्या हुआ है अमृत आप मुझे तो बताइए। हो सकता है मैं आपकी मदद कर सकूं।”

“कोई मेरी मदद नहीं कर सकता, निधि…”

“मुझ पर विश्वास करें, अमृत…”

“तो सुनो निधि एक कड़वा सच। मुझे महिलाओं में नहीं पुरुषों में रूचि है। माफ़ करना मैं तुम्हें ये सच ना बता पाया। मैं कायर था मुझमें हिम्मत नहीं थी समाज का सामना करने की।”

निधि को धक्का लगा। उसने शादी को लेकर क्या सपने सजाए थे। खुद को संभालते हुए उसने अमृत से कहा, “क्या आप इस विवाह बंधन में बंधे रहना चाहते हैं?”

“बिल्कुल निधि मैं तुम्हारा साथ चाहता हूं। तुमने जिस संयम के साथ मेरा साथ दिया उसके लिए मैं तुम्हारा त्रृणी हूं…”

“अमृत ये आपकी कोई बिमारी नहीं जिसे आप छुपा रहे हैं। हमें परिवार वालों से बात करनी होगी।  उन्हें आपको समझना होगा और आप तनिक भी परेशान ना हों। मैं अब आपके साथ हूं हर कदम पर।”

निधि और अमृत ने दूसरे दिन अपने-अपने माता-पिता से इस विषय पर बात की। सभी अमृत को समझाने में लगे थे। अमृत की मां ने तो किसी बाबा से झाड़-फूंक कर ठीक कराने की बात कही…

निधि ने सभी को बड़े ही प्यार से समझाया, “ये कोई बिमारी नहीं या भूत प्रेत का साया नहीं जो झाड़-फूंक से जाएगा। जब हम ही उनको नहीं समझेंगे, तो बाहर वालों को तो मौका मिलेगा उंगली उठाने का। आप सभी इनके मित्र बनें शत्रु नहीं। आप सभी का साथ मिलेगा, तो इनका खोया आत्मविश्वास भी वापस आएगा।”

निधि के सास-ससुर और माता-पिता को आज निधि पर गर्व हो रहा था। अमृत ने निधि को कहा, “धन्यवाद मुझे समझने के लिए और मेरा सबसे अच्छा दोस्त, शुभचिंतक और हमदर्द बनने के लिए।”

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मूल चित्र : Still from MensXp Web Series, YouTube

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