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श्रृंगार, वसंत और तुम..

उतरते इन पायलों की कसम,तू मुझे आज भी मेरे ही रूह में क्यों किसी आत्मा की तरह नजर आते ही दिल को तेरी सारी बाते मुझे एक एक कर के रुला रही हैं।

उतरते इन पायलों की कसम, तू मुझे आज भी मेरे ही रूह में, क्यों किसी आत्मा की तरह नजर आते हो, दिल को तेरी सारी बाते एक-एक कर मुझे रुला रही हैं।

श्रृंगार तो वैसे ही कुछ खास थी,

कुछ ही तो पल की बात थी।

उससे नज़र मिली और अधूरेपन में उसके साथ का कमाल है,

कि खुबसूरत मेरे जीवन की वह शाम थी।

आसान जिंदगी की जिद्द से अपने ही रास्ते चले,

वहाँ देखा था उसे मैंने और श्रृंगार में रस जैसी कोई बात थी। 

हल्की शरारती मुस्कान थी,

कभी उसकी बोलती नजरों की ही बात थी,

जिस दिन देखा था, उसी दिन से मैं उसकी खास थी।

असर मुझ पर हुआ था उसके जादुई आखों का,

अब मेरे में पत्थर जैसी कहा कोई बात थी।

वक्त था बदला मेरा,

अब जींस से सलवार कमीज की मुझे दरकार थी।


कभी शर्म, तो कभी खुद से ही कई सारे सवालों की बौछार थी।

प्यार हुआ भी तो कई रंगो की तरह,

कई सारे चुनाव की ही बात थी।

दूसरी बार में पसंद आने ही लगा था रंग लाल,

अब मेरी वही ब्लैक फॉरेवर वाली में कहा बात थी।

अब झुमके, पायल, बिंदिया सब भाने लगे मुझे,

अब मुझे कहा किसी के नजरो की कोई ख्याल थी।

उसे छोड़ अब कोई लुभाता नही मुझे,

जानकारी उसे भी थी, खुभिया दिल ए नादान की,

ये बस कुछ उस समय की बात थी।

रुको! सुनो और सोचो, क्या यह इतनी देर की मुलाकात थी?

नही नहीं कैसे भुल जाऊँ मैं तुमको, अब तो मेरे रंग लाल थे,

जो न कभी था पसंद, की वही तुम कल की बात थी। 


रोका था खुद को कई राहों में मैंने,

अनुसार वादे के तुम्हारे, वैसे ना तो कोई ऐसी बात थी।

रुकी मेरी बस तेरे नाम पे ही सांस थी।

तेरे जाने पर अब महसूस हुआ मुझे,

मैं अधूरी फिर भी तेरे ही नाम की।

बुरा कहाँ है रहना अकेले एक तलक तक,

नब्ज़ है, धड़कने हैं, मेरी एक छोटी सी दुनिया है,

जिसका अभी भी तुमको ही रहगुजर बनाया हैं।

कभी तुम याद में हो कभी इन वसंत बहार में हो,

जब जब देखा है मैंने इन वसंत को,

तेरी बाते याद आई मुझे।

लगा ही था, वक्त छोटा ही रहेगा हमारा,

इसकी ये गवाही देती इन हवाओं की झोका हैं।

खुद को मैंने तेरे लिए आज भी,

तेरे दिए पायलो से बांध रखा हैं।

कभी याद आए तो तेरे रंग से रंग जाती हूं,

इन नामुराद हवा से जाने क्यों लड़ जाती हूं।

खोखलेपन पे ही जाने क्यों मुझे नाज़ हैं,

मुझे तेरा आज भी इंतजार हैं।

आज ये रात भी जा रही हैं,

साथ तेरे अपनी आज की बाते ले जा रही है।

उतरते इन पायलों की कसम,

तू मुझे आज भी मेरे ही रूह में क्यों,

किसी आत्मा की तरह नजर आते हो।

दिल को तेरी सारी बाते मुझे एक-एक कर के रुला रही हैं।

अकेले ही तेरे होने का सारे रस्म निभा रही मैं,

आज भी इन वसंत में तेरे नाम का,

मन के रेगिस्तान कोई गुलाब खिला रही मैं।

कुछ काम रह गए अधूरे ही मेरी तरह हैं,

उनको साथ लिए सर पे,

दिल में तुम्हें बिना इजाजत के,

तुम्हें सवार रही हूं मैं।

मूल चित्र: KrishnaStudios Via Pexels 

About the Author

रंजनी मणि त्रिपाठी

Occupation -Lawyer , Blogger, Author, Social activities, " If my view at any one person to intratect and understanding my inner surface how to I explained and why I explained this is too much for me" ((कोई भी बदलाव एक ही दिन नहीं होता, उसके लिए सदिया जगनी पड़ती है)) ।।रंजनी श्रीमुख शांडिल्य।। read more...

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