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आप ही डिसाइड कर लें कि मेरा राशन के लिए पैसे देना ज़रूरी है या खाना पकाना? अगर काम ना करूँ तो पकाने के लिए खाना ही नहीं होगा।
पूरा परिवार ड्रॉइंग रूम में बैठकर टीवी पर रामायण देख रहा था। बालकाण्ड में राम द्वारा अहिल्या की मुक्ति!
नीरू, घर की बहु, इस कोरोना काल में काम का दुगुना बोझ झेल रही थी।
ऑफ़िस वाले वर्क फ़्रॉम होम के बहाने पूरे दिन कुछ ना कुछ काम बताते रहते और घरवाले उसे घर में कम्प्यूटर पर लगी देखकर सोचते कि इसे कितना आराम है। ये कौन सा कोई शारीरिक काम है जिस से ये थक जाती होगी।
ससुर जी चाय की गुहार लगाते, तो पति कुछ अच्छे नाश्ते की फ़रमाइश करते।
सास चाहतीं कि घर में ही है तो कम से कम अच्छा खाना तो बना के खिलाए सब को!
‘कुछ पूजा पाठ तो करती नहीं, रामायण आ रही है टीवी पर, वो ही देख ले तो कुछ पाप कट जाएँगे इसके। लेकिन नहीं, या तो ये कम्प्यूटर पे टिपटिप करेगी या फिर फ़ोन पर लगी रहेगी।
बेचारा इसका पति, मेरा बेटा अखिल, कितना काम होता है उसे? फिर भी हमारे साथ बैठने का समय निकाल ही लेता है। एक ये नीरू है, घुसी रहेगी अपने कमरे में। क़िस्मत ही ख़राब है हमारी तो। बहू जैसे तो लच्छन ही नहीं इसके। कैसे कट-कट जवाब देती है मेरे बेटे को?’ नम्रता जी सोच रही थीं।
रामायण में भी उनका मन ना लग रहा था। बार-बार बहु नीरू के कमरे की ओर देखतीं। वो बस अभी अभी ही नहा कर अपने कमरे में गयी थी और फ़ोन पर किसी से बातें के रही थी।
आख़िर नम्रता जी से ना रहा गया।
“नीरू…नीरू…”, उन्होंने आवाज़ लगायी।
नीरू ने जवाब नहीं दिया, वो अब भी फ़ोन पर धीरे-धीरे बातें कर रही थी।
उन्होंने फिर थोड़ी तेज़ी से आवाज़ लगायी तो नीरू हाथ में फ़ोन लिए ही दौड़ी आयी।
“हाँ माँ, क्या हुआ?” वो आ कर खड़ी हो गयी।
“बहू ये तुम किसके साथ बात करने में इतनी मस्त हो?” नम्रता जी ने सख़्ती से पूछा।
“मेरा एक दोस्त है माँ, पुष्कर। शहर में नया है तो उसे कुछ होम डिलिव्री वाले शॉप्स का नम्बर चाहिए वही भेज कर रही थी। बताइए आपने क्यों बुलाया?”
नम्रता जी ग़ुस्से से कुछ बोल ही नहीं पायीं।
‘और सुनो, लड़कों से बातें करती रहेंगी। हमसे बातें करने का हमारे साथ बैठने का कहा वक़्त है मैडम के पास? हम तो जैसे कुछ हैं ही नहीं।’ मन ही मन भुनभुनाती रहीं।
अखिल को भी नीरू का बर्ताव अच्छा नहीं लगा। वो वैसे भी उसे नौकरी करने देता था ताकि घर आराम से चल सके।
‘अरे पढ़ी लिखी है तो क्या? किस चीज़ का घमंड है इसको? माना कि अच्छा कमा लेती है, इसका मतलब क्या सीधे मुँह बात नहीं करेगी।’
ऊपर से थोड़ा शांत लहजे में बोला, “अरे होगा क्या? अम्मा बोल रही थी कि आके हमारे साथ रामायण देखो, और खाना वाना तो बन ही गया होगा ना?”
“नहीं अखिल, आज कुछ हल्का बना लेती हूँ, खिचड़ी या वेज पुलाओ। बहुत काम पड़ा है। मेरे टीम के काफ़ी मेम्बर्ज़ बीमार हैं, मुझे ही सब करना होगा।” यह बोल नीरू बिना उनकी प्रतिक्रिया लिए ही बिना फिर कमरे में अपने लैप्टॉप पर लग गई।
उमेश जी, अखिल के पिता, अब तक बर्दाश्त कर रहे थे।
“अखिल बेटे, ये क्या तरीक़ा है बहु का? न बात करने की तमीज़ है ना कोई तहज़ीब! तुम लोगों ने तो चार लोगों का खाना बनाने को भी कुक रखा था। हम तो कुछ कहते नहीं थे, खा लेते थे जो भी बना कच्चा पक्का। अब बहू घर पर है तो भी वही खिचड़ी? अरे भई आदमी आख़िर कमाता क्यों है जब ऐसा ही खाना खाना है? तुमने बहू को काफ़ी सर चढ़ा रखा है। लगाम कसो अपनी गृहस्थी की…”
अखिल ग़ुस्से से उठा और अपने कमरे की ओर चला जहां नीरू काम कर रही थी। उसने आते ही नीरू का लैप्टॉप बंद के दिया। नीरू देखती ही रह गयी…
“ये क्या किया अखिल? मैंने सेव भी नहीं किया था।”
“तुम उठो और कुछ दाल सब्ज़ी बनाओ जा कर। रोज़-रोज़ मेरे अम्मा-पापा को इतना बेकार खाना खिलाती हो। वो क्या सोचेंगे? अरे तुम अपने सास ससुर का मान सम्मान करना भी नहीं जानतीं?”
“रहने दे बेटा, किस से कह रहा है? इसने कब हमारी इज़्ज़त की है? पहले तो कामवली बाई थी, कुक था, तो पता नहीं चलता था हमें। इनको कहाँ अपने दोस्तों यारों से फ़ुरसत है जो ये हमारा सोचेंगी? अभी उस दिन तेरे पापा के पैरों में दर्द था तो इसने क्या किया? बाम ला कर मुझे दे दिया कि लगा देना। खुद नहीं लगा सकती थीं? फ़ोन से फ़ुरसत होगी तब तो…”
नम्रता जी अपने तीर एक एक कर चला रही थीं।
उमेश जी भी प्रतिस्पर्धा में क़ूद पड़े।
“बहु हमारा ना सही अखिल का ही थोड़ा ख़्याल कर लिया करो। इसके कपड़े कितने मैले जैसे लगते हैं, देखो तो। इसने अपनी माँ के राज मे हमेशा चमचमाते धुले कपड़े ही पहने। इसको पकोड़ियाँ इतनी पसंद हैं। बेचारा स्वाद ही भूल गया होगा इस एक साल में। हम तो यह सोच कर आ गए थे तुम्हारे पास कि इस महामारी के वक़्त पूरा परिवार एक जगह रहेगा तो अच्छा है, समय भी कट जाएगा। लगता है गलती कर दी।
नीरू ने चुपचाप अपना लैप्टॉप लिया और अपनी फ़ाइल रेट्रीव करने लगी। लैप्टॉप एक किनारे रख के उसने नम्रता जी और उमेश जी के लिए कुर्सियाँ खींची और उनसे बैठने को कहा। अखिल भी तब तक अपने बेड ओर बैठ गया था। उसे उत्सुकता थी कि नीरू किन शब्दों में माफ़ी माँगेगी।
“अम्मा, पापाजी, आप लोग जब मुझसे रिश्ता करने को राज़ी हुए थे, तो आपने मेरे पापा से कहा था कि आपको एक कामकाजी बहू चाहिए जो आपके बेटे का घर चलाने में साथ दे, क्योंकि आप लोगों पर अखिल की पढ़ाई का काफ़ी लोन था और आपको इस फ़्लैट का इंस्टालमेंट भी भरना होता है। तो मैं वो बखूबी कर रही हूँ।
इस फ़्लैट का इंस्टालमेंट मैं देती हूँ, जबकि ये अखिल के नाम ओर है। इसके लिए मुझे काफ़ी काम करना पड़ता है। मैं इस पैंडेमिक में जॉब चेंज की भी नहीं सोच सकती और ऐक्चूअली चाहती भी नहीं हूँ कि छोड़ दूँ।
अखिल ने शायद ना बताया हो पर उसे ऑफ़िस से नोटिस मिला है कि वो दूसरी जॉब देख ले। पर ये दिन भर आपके साथ टीवी देखते हैं। बजाय जॉब खोजने के मुझमें ग़लतियाँ खोजते हैं। दूसरी बात ये कि आप ही डिसाइड कर लें कि मेरा राशन के लिए पैसे देना ज़रूरी है या खाना पकाना? अगर काम ना करूँ तो पकाने के लिए खाना ही नहीं होगा।
और हाँ, जिस संस्कार की उम्मीद मुझसे करते हैं, थोड़ा अपने बेटे को भी दें, वो भी अपने माँ-बाप की थोड़ी सेवा कर सकता है। उसे तो ये भी नहीं पता कि पापाजी को पैर में दर्द था। थोड़ा अपने बेटे को भी घर में हाथ बटाना सिखाइये, थोड़ा उसे भी तो ज़िम्मेदार बनाइए।”
इतना कह कर नीरू फिर काम में लग गई।
दोस्तों, ये कहानी भले ही काल्पनिक हो लेकिन ये दृश्य काल्पनिक नहीं। आपका क्या कहना है इसके बारे में ? कोरोना काल छोड़िये, क्या कमाने वाली बहु घर के काम सिर्फ इसलिए अकेले करे क्यूंकि हमारे समाज में एक बहु का घर में यही दर्जा है? घर के काम करने का? क्या एक बहु के घर में आते ही सबको आराम करने का लाइसेंस मिल जाता है? क्या पति का अपनी पत्नी के प्रति कोई फ़र्ज़ कोई नहीं होता?
मूल चित्र : Still from Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein, YouTube
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