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जुवेनाइल डायबिटीज के मामले बढ़ रहे हैं और ये बहुत जरुरी हो गया है कि सही इलाज के लिए हम अपने बच्चों में शुगर होने के लक्षण पहचानें।
एक माँ के लिये सबसे ज़रुरी उनके बच्चों का स्वास्थ्य होता है। दो बच्चों की माँ होने के नाते मैं और मेरी ही तरह हर माँ अपने बच्चे को हमेशा स्वस्थ ही देखना चाहती है।
लेकिन आज के बदले माहौल में जहाँ घर के सादे और पौष्टिक खाने की जगह जंक फूड ने लिया हो और खेल के मैदान में भाग दौड़ की जगह ढेरों वीडियो गेम्स ने, तो ये बहुत लाजमी है कि इसका सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य पे आयेगा ही।
घंटो टीवी और मोबाइल के आगे जमे रहने और बर्गर, पिज़्ज़ा, फ्रेंच फ्राई जैसे फ़ास्ट फूड के अधिक सेवन ने बच्चों को मोटापा और मधुमेह जिसे आम भाषा में शुगर या डाइबिटीज़ भी कहते हैं, जैसी गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया है।
याद कीजिये अपना बचपन जहाँ मधुमेह की बीमारी ज्यादातर बुजुर्गो में ही देखने को मिलती थी, शायद ही बच्चे मधुमेह से पीड़ित दिखते थे। बच्चे घर का खाना खाते और दिन भर भाग दौड़ करते फिर चाहे धूप, बारिश या ठण्ड हर मौसम में खेलते और शायद ही कभी बीमार पड़ते।
लेकिन आज परिस्थिति बदल चुकी है। मधुमेह और मोटापा हमारे आधुनिक समाज के दुष्परिणाम के रूप में दिखाई दे रहे हैं।
छोटे गोल मटोल बच्चे दिखने में बहुत प्यारे लगते है। लेकिन यही बेबी फैट आगे चल कर मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों के कारण बन जाते है। अगर आप भी बच्चों में होने वाले मोटापे और मधुमेह की समस्या से परेशान है तो ये पोस्ट आपके लिये ही है।
आईये जाने क्यों होती है बच्चों में ऐसी समस्या और कैसे इनसे बचा जा सकता है।
शरीर में इन्सुलिन कम बनने की समस्या को डायबटीज़ कहते है। यह समस्या जब बच्चों में होती है तो जुवेनाइल डायबटीज़ कहलाती है।
इसे टाइप -1 डायबटीज़ या इन्सुलिन डिपेंडेंट डायबटीज़ भी कहते है। ये विशेष कर 18 साल के कम उम्र के बच्चों में जन्म से या उम्र बढ़ने के साथ होती है। कई बार ये अनुवांशिक तो कई बार ये गलत खानपान और कम शारीरिक गतिविधि के फलस्वरूप बच्चों में है।
बच्चों में ज्यादातर टाइप -1 डायबटीज़ की समस्या देखी जाती है, जो कई बार बहुत कम उम्र यानि 5 वर्ष से कम उम्र में भी देखने को मिल जाती है। विशेषज्ञो के अनुसार हर साल करीब 10-15 हजार बच्चों में डायबटीज़ का ईलाज किया जाता है, जो की स्वं में एक बेहद चौंकाने वाला आकड़ा है।
बड़ो की तरह बच्चों में भी डायबटीज़ के दो प्रकार होते है:
कम आउटडोर एक्टिविटी और फ़ास्ट फूड खाने के बढ़ते चलन से होने वाले मोटापे के कारण बच्चों में इन्सुलिन रेसिस्टेंट की संभावना बढ़ जाती है। यही कारण है की बच्चों में डायबटीज़ का प्रमुख कारण मोटापा माना जाता है।
विशेषज्ञों की माने तो बच्चों के शरीर में बढ़ने वाले ब्लड शुगर लेवल गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है जैसे ह्रदय रोग, आईज डैमेज (अंधापन ) या किडनी फेलियर तक हो जाती है।
कई बार ऐसा होता है की या तो बच्चों में ये लक्षण समझ ही नहीं आते या फिर कई बार ये लक्षण इतने धीरे विकसित होते है की इस लक्षण का समय पे पता ही नहीं चलता।
इस संदर्भ में विशेषज्ञ कहते है की यदि आपका बच्चा भी मोटापे से ग्रसित है, तो निम्न कुछ लक्षणों पे नज़र रखे जाना चाहिए जिससे पता चले कि बच्चे को डायबिटीज है या नहीं।
बच्चों में डायबिटीज़ के लक्षण दिखने के बाद सबसे पहले चिकित्सक से संपर्क कर बच्चे का शुगर लेवल की जाँच करवाये।और यदि बच्चे में टाइप -1 डायबिटीज़ पाया जाता है तो डॉक्टर द्वारा दी गई दवाई और सुझाव के साथ साथ बच्चों के लाइफ स्टाइल में भी बदलाव करे। साथ ही खान पान की आदतों में भी बदलाव जरुरी है।
डायबटीज़ एक ऐसा रोग है जिससे पूरी तरह छुटकारा संभव नहीं लेकिन आदतों में बदलवा कर एक स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है। एक बार डायबटीज़ का पता चलने पे जीवन भर इसका ईलाज करवाना पड़ सकता है।
बच्चों को इन्सुलिन का इंजेक्शन जीवन भर भी लेन पर सकता है। ब्लड में शुगर लेवल ज्यादा है तो दिन में दो तीन बार भी लेना पर सकता है। आज कल इन्सुलिन पंप या आर्टिफिशल पेन्क्रियाज भी मिलते है और कई बार बिना इंजेक्शन के भी इन्सुलिन की दवा दी जाती है।
जैसे एक मजबूत नींव ही मजबूत ईमारत का आधार होती है, वैसे ही स्वस्थ बच्चे समाज के विकास का आधार होते है। आधुनिकता के इस दौड़ में हम माता पिता बच्चों को पैकेट फूड और मोबाइल थमा अपनी जिम्मेदारी निभा देते है, बिना इसके दुष्परिणाम जानें।
जिस तरह जुवेनाइल डायबिटीज़ के मामले बढ़ रहे हैं और बच्चे इसके चपेट में आ रहे हैं, ये बहुत जरुरी हो गया है कि अब माता-पिता अपनी जिम्मेदारी समझें और बच्चों को समय पे घर का बना पौष्टिक खाना और खुब सारी आउटडोर एक्टिविटी करवायें।
सबसे महत्वपूर्ण कार्य ये है माता पिता बच्चों के लिये समय निकालें। अगर बच्चों में शुगर होने के लक्षण दिख रहे हैं और उसे डायबिटीज़ है तो उसका मनोबल बढ़ायें, उसे हैल्दी लाइफ़ स्टाइल के बारे में समझायें। साथ ही बच्चों को मोबाईल और टीवी की दुनियां से बाहर निकाल खेल के मैदान की ओर ले जायें, जिससे बच्चों के एक स्वस्थ और सुखद भविष्य का निर्माण हो सके। आखिर स्वस्थ बच्चे ही देश और समाज का भविष्य होते हैं।
डिस्कलेमर : ये एक्सपर्ट राय नहीं है। ज़रुरत पड़ने पर अपने डॉक्टर की राय लेना न भुलें।
मूल चित्र: via ucsf.edu
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