कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

हालात चाहे कोई भी हों, बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया अपनानी ज़रूरी है

सुरक्षा इसी में है कि बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया का पालन हो, चाहे बच्चा गोद लेने वाले रिश्तेदार या सौतले माता-पिता ही क्यों न हों।

सुरक्षा इसी में है कि बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया का पालन हो, चाहे बच्चा गोद लेने वाले रिश्तेदार या सौतले माता-पिता ही क्यों न हों।

ये महामारी एक नहीं अनेक तरह की सामाजिक चुनौतियाँ भी लेकर आयी है। कई अभिभावक इस बीमारी का शिकार हो गए हैं और इस कारण हज़ारों बच्चे आज अनाथ और बेघर हो गए हैं। भारत में वैसे भी बच्चा गोद लेने की दर काफी कम है। 

ऐसे कई मामले भी सामने आ रहे हैं जहाँ सोशल मीडिया पर इस तरह की पोस्ट शेयर की जा रही हैं जिनमें ऐसे अनाथ हुए या परित्यक्त बच्चों को गोद लेने के कई सुझाव और कई प्रस्ताव भी दिखाई दे रहे हैं। 

ये भी एक कड़वी हकीकत ही है कि कई परिवार यहाँ आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों को छोड़ रहे हैं या गोद देने के लिए तैयार हो रहे हैं। और ऐसे में बच्चों को देह व्यापार या बच्चों की तस्करी में लिप्त कई गिरोह भी सक्रिय हैं जिनके बारे में अनेक सामाजिक कार्यकर्त्ता सबको सचेत कर रहे हैं।

यहाँ ये कहना गलत नहीं होगा कि कई लोग वास्तव में इन बच्चों की मदद करने की कोशिश में लगे हो सकते हैं लेकिन कई लोग इस परिस्थिति का नाजायज़ और गलत फायदा उठाने पर भी आमादा हैं जिससे बच्चों की सुरक्षा को खतरा है। 

भारत में जैसा हम आम तौर पर मान लेते हैं, बच्चा गोद लेना कोई परोपकार का कार्य नहीं है, बल्कि एक सामजिक ज़िम्मेदारी का वहन है जिसके अंतर्गत हम एक बच्चे के पालन पोषण की संपूर्ण ज़िम्मेदारी लेनी होती है।

ऐसे किसी अनाधिकारिक स्रोत से बच्चा गोद लेने या देने के क्या नुक्सान हैं?

सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात ये भारतीय कानून के हिसाब से गैर-कानूनी है। भारत सरकार के महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की एजेंसी CARA के अनुसार कई बार माता-पिता दत्तक संतान के प्रति उत्साह दिखाते हैं लेकिन बाद में तालमेल की कमी या अन्य कारणों से बच्चा लौटाने भी आ जाते हैं। अक्सर इन बच्चों के साथ अनेक प्रकार का दुर्व्यवहार होने की संभावना बनी ही रहती है। 

इसी सब के चलते नीदरलैण्ड जैसे कुछ देशों ने हाल ही में दुसरे देशों से गोद लेने की प्रक्रिया को फ़िलहाल बंद कर दिया है। 

अक्सर बच्चों की मदद और उन्हें घर परिवार दिलवाने के वादे करने वाले लोगों को मानव तस्करी से जुड़ा हुआ भी पाया गया है। ट्विटर पर आयी कुछ टिप्पणियों में मर्द ऐसे प्रस्तावों पर बच्चियों की तस्वीरें मांग रहे हैं जो बिल्कुल भी सुरक्षित या सही का अंदेशा नहीं देता।

कानूनी प्रक्रिया को मानना ही सही क्यों है?

बच्चे और परिवारों की सुरक्षा इसी में है की गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया का पालन हो चाहे गोद लेने वाले रिश्तेदार या सौतले माता-पिता ही क्यों न हों। इससे भविष्य में नागरिक पहचान पत्रों या संपत्ति को लेकर कोई अड़चन नहीं आती है। 

इसलिए यदि आपके सामने यदि ऐसी कोई भी पोस्ट किसी भी सोशल मीडिया पर आये तो उसे आगे मत बांटे बल्कि नीचे दिए गए संस्थानों से संपर्क साध कर उसकी सूचना दें और जो भी ऐसी पोस्ट शेयर कर रहा हो उसे भी ऐसा करने से रोकें।

क्या है गोद लेने या फोस्टर केयर के भारतीय कानून?

साल 2015 में बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया के नियमों में संशोधन किया गया, गोद लेने की प्रक्रिया को कई श्रेणियों में बांटा गया है. मसलन, एनआरआई, इंटर-स्टेट, सौतेले माता-पिता या फिर रिश्तेदारों द्वारा गोद लेने के लिए अलग-अलग नियम हैं.

द इंडियन एसोसिएशन फॉर प्रमोशन ऑफ एडॉप्शन एंड चाइल्ड वेलफेयर ही वो एक मात्र एजेंसी है जो इस प्रक्रिया की निगरानी करती है। यह भारत सरकार द्वारा संचालित संस्था है, जो बच्चे को गोद लेने में लोगों की मदद करती है।

फॉस्टर केयर एक ऐसा सिस्टम है जिसमें बेसहारा हुए बच्चों को कुछ वक़्त के लिए एक परिवार का आसरा कानूनी रूप से प्रदान किया जाता है। ये भी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एजेंसियों द्वारा ही किया जा सकता है।

ऐसे ही आप किसी भी बच्चे को अपने घर में ला कर नहीं रख सकते वो कानूनन अपराध है। फॉस्टर केयर परिवारों द्वारा या समूहों द्वारा भी दी जाती है, जैसे भारत में SOS चिल्ड्रन विलेज हैं जहाँ एक तरह के समूह या समुदाय में बच्चों का पालन पोषण होता है जब तक उन्हें गोद न लिया जाए या वे व्यस्क न हो जाएँ।

कानूनी प्रक्रिया के बिना सीधा बच्चा गोद लेना अपराध है। मतलब हालात चाहे कोई भी हों, बच्चा गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया माननी ज़रूरी है।

यदि ऐसे किसी बच्चे या परिवार को मदद की आवश्यकता हो तो इन भरोसेमंद संसाधनों का उपयोग करें –

Childline 1098, Delhi commission of Protection of child rights (हेल्पलाइन 9311551393), National Commission for Protection of child Rights (हेल्पलाइन 1800-121-2830), Kailash Satyarthi Children’s Foundation (हेल्पलाइन 1800-102-7222).

मूल चित्र : Ziviani from Getty Images, Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Pooja Priyamvada

Pooja Priyamvada is an author, columnist, translator, online content & Social Media consultant, and poet. An awarded bi-lingual blogger she is a trained psychological/mental health first aider, mindfulness & grief facilitator, emotional wellness read more...

15 Posts | 104,415 Views
All Categories