कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

पहली से बच्चा नहीं हुआ इसलिए पति ने दूसरी शादी कर ली…

क्या, कभी सुना है, कि पुरुष पिता नहीं बन पाया तो औरत ने दूसरी शादी कर ली? या औरत दूसरी शादी कर, दूसरा पति ले आई? नहीं ना?

क्या, कभी सुना है, कि पुरुष पिता नहीं बन पाया तो औरत ने दूसरी शादी कर ली? या औरत दूसरी शादी कर, दूसरा पति ले आई? नहीं ना?

कोरोना की भीषण महामारी में ना जाने कितने माँओं की गोद सूनी हो गई। उन्हें एक अव्यक्त दुख़ का सामना करना पड़ रहा है।

कल पड़ोसी की बड़ी माँ नहीं रही। मतलब, उसके पिता ने दो शादियाँ कीं, पहली से बच्चा नहीं हुआ तो दूसरी कर ली।

आज कल के समय में मन बहुत कटु हो गया।

ज़हन में प्रश्न कौंध गया।

एक औरत जिसमें जन्म से ही मातृत्व का गुण होता हैं, वो बच्चा नहीं पैदा कर पाई तो क्या वो माँ नहीं?

एक लड़की बेटी हो या पत्नी हो या बहन, मातृत्व रूप में पिता, भाई और पति को संभालती है। फिर क्यों हमेशा सवालों के कटघरे में महिला ही खड़ी होती हैं?

क्यों हमेशा पीड़ा की हक़दार औरत ही होती? वह क्यों अपनी आवाज नहीं उठा पाती?

आर्थिक रूप से सबल होते हुए भी कहीं वो निर्बल हैं, उसे पुरुष का सहारा चाहिए ही। कमजोर जो हैं। बचपन से ही लड़की को सिखाया जाता हैं कि वो कमजोर है।

बीस साल की लड़की के साथ दस साल के भाई को भेज दिया जाता, वो रक्षा करेगा, पर बीस साल की लड़की पर विश्वास नहीं। जो जीवन भर भाई, पिता और पति, बुढ़ापे में बेटे के सुरक्षा कवच में रहती हैं, वो आत्मनिर्भर कैसे हो सकती है? वो खुद अपनी रक्षा कर सके, ये नहीं सिखाते।

औरत में कमी हो, तो तुरंत पति दूसरी शादी कर लेता, पर पुरुष में कमी हो तो भी वो अपनी कमी स्वीकारता नहीं, उलटे औरत में दोष थोप देता है।

इसके लिए हम औरतें भी जिम्मेदार होती हैं, जो सच्चाई से आँख बन्द कर लेती हैं। हम सास, बहू, नन्द, भाभी के रिश्तों में उलझ जाते हैं, पर औरत हो कर औरत का दर्द नहीं देख पाते।

क्यों नहीं हम दूसरी औरत के लिए खड़े हो पाते?

शायद हम जन्म से ही कमजोर हैं। कितना भी ढिंढोरा पीट लो समानता का, पर हम कभी सामान नहीं हो सकते। क्योंकि हम में वो शक्ति ही नहीं जो सच्चाई को स्वीकार कर सके। कभी घर के लिए, कभी बच्चों की दुहाई दे, औरत को हमेशा दबाया गया।

एक औरत बच्चा नहीं ला पाई तो पुरुष सात वचन और फेरों को भूल गया, और किसी दूसरे को सात वचन दे दिए। पर क्या, कभी सुना है, कि पुरुष पिता नहीं बन पाया तो औरत ने दूसरी शादी कर ली? या औरत दूसरी शादी कर, दूसरा पति ले आई? नहीं ना?

हम औरत ही उसे सास, नन्द के रूप में समझा देतीं, वो पति हैं तुम्हारा अब जो हैं उसी के साथ जीना है। क्यों नहीं हम उसे कह देते, तुम दूसरी शादी कर लो? और तो और, उस दूसरी ने दूसरी बनने का विरोध क्यों नहीं किया? इसीलिए लोग बोल देते हैं शायद कि औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं।

कहीं घर भी बिखरता तो सिर्फ मर्द ही नहीं औरत भी उतनी ही ज़िम्मेदार होती है। क्या दूसरी ने कभी भी पहले पत्नी से बात करने की कोशिश की? लेकिन यहां मर्द को ऐसे बना दिया जाता है जैसे वो जीतने की चीज़ है।

दूसरी औरत कभी ये नहीं सोचती कि वो किसी औरत का घर ख़राब कर रही है? और जो पहली का नहीं हुआ तो वो दूसरी का क्या होगा? मतलब अगर मर्द पहली औरत को धोखा दे रहा है, तो कई औरतें ये सच्चाई जानते हुए भी आँख बन्द कर लेतीं हैं… क्योंकि उनका स्वार्थ ऊपर हो जाता। या ये भी किसी तरह की जीत है? लेकिन कब तक? आज ये तो कल कोई और? क्यूंकि धोखे का ये सिलसिला दूसरी पर ख़त्म होगा, किसे पता?

जब तक एक औरत, दूसरी औरत का साथ नहीं देगी, तब तक औरतों कि स्थिति में कोई सुधार नहीं होगा।

और माँ सिर्फ वही नहीं होती जो बच्चे को जन्म देतीं हैं। पालने वाली और मातृत्व की भावना जिसमें है, वह माँ होती हैं।

मूल चित्र: Eastern Condiments via Youtube 

About the Author

6 Posts | 27,154 Views
All Categories