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मोनू उस वक्त भी मदद के लिए आया था, लेकिन उसकी आवाज़ को अनसुना करके दोनों कमरे में ही चुप्पी साधे बैठे रह गए थे।
10 साल का मोनू भागते हुए राजीव जी के घर पहुंचा।
तेज़ दौड़ने के कारण उसकी सांसें फूल रही थीं और आंखे आंसुओं से सराबोर थीं। अपनी मां को खोने का गम उसकी आंखों में प्रतिबिंबित हो रहा था।
एक मां ही उसका सहारा थी, जिसे महामारी ने उससे अलग कर दिया।
मोनू राजीव जी के गेट पर पहुंचते ही आवाज़ लगाने लगा, “साहब, मदद कर दो, पैसे चाहिए। मेरी मां मर गई है। मां को लेकर जाना है। कुछ मदद कर दो।”
मोनू आगे कुछ कहता कि इससे पहले ही उसके शब्द हलक में ही रह गए। सुखा हुआ गला अब साथ भी छोड़ रहा था।
बाहर से रोने की आवाज़ सुनकर राजीव जी और उनकी पत्नी सुमन बाहर आ गए।
मोनू की मां अनिता उनके घर में काम किया करती थी लेकिन कोरोना के कारण उन्होंने उसे काम से निकाल दिया, और इसी बीच अनिता को भी संक्रमण हो गया।
आज भी मोनू उनकी चौखट पर आया था, लेकिन अपनी मां के इलाज के पैसे मांगने नहीं बल्कि अपनी मां को अंतिम विदाई देने के इंतजाम के लिए।
ऊपर से पैसे फेंकते हुए सुमन और राजीव ने कहा, “ले जा पैसे और मां का अंतिम संस्कार कर ले।”
पैसे बंटोरते हुए मोनू ने ऊपर देखा। शायद वह सोच रहा था कि यही पैसे अगर पहले मिल जाते और मदद मिल जाती, तो मां बच जाती लेकिन…
उसकी आंखों में पीड़ा के साथ रोष भी था लेकिन अब क्या हो सकता था, उसकी दुनिया अब चल बसी थी। बिन मां के वह कैसे जिएगा, यह सोचते हुए उसने अपने कदमों को वापस मोड़ लिया।
उधर राजीव जी ने कहा, “अब शायद मोनू भी नहीं बच पायेगा, लेकिन चलो कम से कम हमने किसी के अंतिम संस्कार में मदद कर दी। दुआएं लेनी ज़रूरी होती हैं अब हम स्वस्थ रहें…”
डूबते हुए सूरज के साथ एक तरफ संवेदना अस्त हो रही थी। वहीं दूसरी तरफ लोग मौसम बदलने की कामना में सांसों को सहारा दिए जा रहे थे।
इन लोगों के पास दूसरों को बचाने के पैसे नहीं हैं लेकिन मरने पर देने के लिए हैं। इन लोगों के पास पैसे सिर्फ दुआएं कमाने के लिए होते हैं। ऐसे लोग असल में किसी की मदद नहीं कर रहे होते। वे सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं और बदले में क्या मिलेगा, इसका हिसाब-किताब लगाते रहते हैं।
मूल चित्र : Muralinath from Getty Images via Canva Pro
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