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गीता ने आकर सबसे पहले सरपंच से मुलाकात करी। सरपंच गीता को देखकर शर्मिंदा हो गए। उन्होंने गीता से अपने शब्दों के लिए माफी मांगी।
“गोरा! ज्यादा पढ़ा मत अपनी लड़की को वरना सिर पर चढ़ जाएगी।”
”मेरी छोरी पढ़के कुछ इस गांव के लिए ही करेगी, मांगी।”
“छोरियां कभी कुछ कर पावें हैं?”
“मांगी, येई खातिर तो पढावें के लिए भेज रहे हैं शहर।”
“हां हां! देख शहर जाकर कर गुल खिलाएगी। तब ना कहना पहले नहीं बोला।”
“छोड़ मांगी ये सब बात। फसल तो अच्छी लहलहाई खेतन में इस बार।”
”ये तो है गोरा, बाजार मा अच्छी कमाई होई इस बार।”
“बस मांगी बारिश ना हो। पिछले साल बाढ़ से फसल पूरी बर्बाद हो गई थी।खैर! काम खत्म अब घर निकलें।”
“बाबा! आ गये आप, लो हाथ मुंह धो लो मैं खाना लगाती हूं।”
“अरे! सुन तो गीता, कहाँ भागी जा रही?”
“जी बाबा आई। लो खाना खाओ पहले आप।”
“तू भी ना पूरी अपनी मां पर गई है। वो भी तेरी तरह कितना ध्यान रखती थी।”
“हाँ बाबा! अब बोलो।”
“अच्छा तेरा परीक्षा परिणाम कब आ रहा?”
“बस अगले सप्ताह आने वाला है। देख लेना बाबा मेरा इस बार सिलेक्शन जरुर होगा।”
“बिल्कुल बिटिया, तुझे इस गांव का नाम जो रौशन करना है।”
कुछ दिनों के बाद, इधर गोरा खेत में काम कर ही रहा था कि अचानक उसकी बेटी दौड़ती हुई उसके पास आई।
“बाबा! बाबा!”
“हाँ! बिटिया बोल?”
“बाबा!”
“अरे! जल्दी बोल, मेरा दिल बैठा जा रहा।”
“मेरा सिलेक्शन हो गया बाबा और मैंने टॉप भी किया है। अब मैं इंजीनियर बनूंगी और आपके लिए बहुत सारे पैसे कमाऊंगी। फिर अपना भी पक्का घर होगा, हैं ना बाबा।”
“हाँ मेरी बच्ची, मेरी गुड़िया आज तूने मेरा सिर ऊंचा कर दिया। चल भगवान को प्रसाद चढ़ा, फिर गांव में सबको मिठाई भी तो बांटनी है।”
गोरा ने सभी को खुश होकर मिठाई बांटी, “सरपंच जी मेरी बेटी को आशीर्वाद दें कि वो अच्छे से पढ़ाई कर इस गांव का नाम रोशन करे।”
“अरे चल, बड़ा आया बेटी को इंजीनियर बनाने वाला। घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने।”, हंसते हुए सरपंच ने कहा।
गीता की पहली रैंकिंग आने की वजह से उसे पढ़ाई का खर्चा और बाकी सुविधा सरकार की तरफ से मिल गईं। अब तो गीता को पंख मिल गए थे उड़ने के लिए। सारी तैयारी कर गीता निकल गई अपनी आगे की पढ़ाई के लिए। गोरा ने खुशी-खुशी ट्रेन में बिठाकर विदा किया बेटी को।
इधर गोरा की फसल लगभग तैयार होने को थी और आसमान में बादलों का उमड़ना-घुमड़ना चालू हो गया। सभी किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखनी शुरू हो गईं। दूसरे रोज़ जम कर बारिश हुई, ऐसी की तीन-चार रोज तक थमने का नाम नहीं लिया। नदी में आई उफनती बाढ़ ने पूरी फ़सल बर्बाद कर दी थी।
बाढ़ की वजह से किसानों की रीढ़ की हड्डी टूट चुकी थी। अब पाने को कुछ नहीं था, सब बर्बादी के कगार पर आ चुके थे। गीता को जब घर के हालातों का पता चला तो उसने घर वापसी की जिद्द करी, पर गोरा ने उसे साफ मना कर दिया।
समय बीता कई किसानों ने आत्महत्या तो कईयों ने किसान ऋण के द्वारा दुबारा जीवन शुरू किया।
नदी के कहर ने सभी की फसलें बर्बाद कर दी थीं। हर बार की तरह इस बार भी पुल निर्माण की बात हुई, पर इस बार भी सब कुछ कागजों तक ही सीमित रह गया। गोरा की भी आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी। अब वो अपनी फसलों पर ना निर्भर हो किसी और काम में लग गया।
कई साल गुज़र गए गीता भी पढ़ाई पूरी कर अब नौकरी करके बड़ी इंजीनियर बन चुकी थी। उसकी सरकारी नौकरी ने गोरा को भी आर्थिक तंगी से उबार दिया था।
कुछ समय बाद गीता का तबादला उसके गांव हुआ। गोरा चाहता था कि गीता अपने गांव के लिए कुछ करे।
गीता ने आकर सबसे पहले सरपंच से मुलाकात करी। सरपंच गीता को देखकर शर्मिंदा हो गए। उन्होंने गीता से अपने शब्दों के लिए माफी मांगी। गीता ने पुरानी बातों को भूल गांव के लिए पुरानी नदी पर बांध बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे सभी ने सहर्ष स्वीकार किया।
कुछ समय की मेहनत के बाद, बांध बनकर तैयार था। सभी गोरा और उसकी बेटी गीता की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। इस बांध ने सभी किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी थी। सभी एक सुर में बोल रहे थे, “बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं”
मूल चित्र: Star Plus Nayi Soch Ad Via Youtube
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