कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मेरी दादी सास और उनके दो तल्ले के झुमके…

"परे हटो सभी, नई बहू का चेहरा पहले उसकी दादी सास देखेगी।" जैसे ही घूंघट उठाया दादी ने उनकी नजरें तो बस नंदनी के झुमको पे अटक गईं। 

“परे हटो सभी, नई बहू का चेहरा पहले उसकी दादी सास देखेगी।” जैसे ही घूंघट उठाया दादी ने उनकी नजरें तो बस नंदनी के झुमको पे अटक गईं। 

“अरे दादी! आओ आओ नई बहू का चेहरा नहीं देखोगी?”

“परे हटो सभी, नई बहू का चेहरा पहले उसकी दादी सास देखेगी।” जैसे ही घूंघट उठाया दादी ने उनकी नजरें तो बस नंदनी के झुमको पे अटक गईं।

“वाह! बहुरिया तेरे झुमके तो बहुत सुंदर है और वो भी दो तल्ली के झुमके!”

“क्यों दादी? सिर्फ झुमके देखोगी या नई बहू का चेहरा भी?” सारी औरतें हंसने लगीं।

दादी ने झेंप कर कहा, “मेरी बहु जैसी तो दिया ले कर ढूंढो तो भी ना मिले इतनी सुंदर है मेरी बहू।”

आगे बढ़ने से पहले आपको दादी के बारे में कुछ बातें बताती चलूं…

ये हैं रुकमणी जी – जमींदारों घर की बेटी और जमींदारों के घर की बहू भी। जीवन में हर सुख मिला, इन्हें बस एक ही कमी रह गई थी और वो थी तो बस झुमकों की।”

इनकी शादी में हाथी घोड़ों पर बारात आई थी और ये सोलह साल की उम्र में ब्याह कर ससुराल आई थीं।  शादी में सिर से पैर तक एक एक जेवर ससुराल और मायके से चढ़े थे, लेकिन अफसोस झुमके नहीं चढ़ पाये थे।

माँ सोचा सास बना देंगी और सासू मां ने सोचा था मां तो देगी ही, इसी चक्कर में झूमके रह गए।

दूसरी औरतों के कानों में उनके सुन्दर सुन्दर घुँघरू वाले झुमके देखती तो रुक्मणि जी का दिल हिंडोले मारने लगता कि काश की झुमके उनके कान में भी सजते और वो भी दो तल्ली वाले।

सास बहुत कड़क थी इनकी और खुद की कच्ची उम्र कैसे कहती कि सासू मां से कि आपने मुझे झुमके क्यों नहीं चढ़ाये शादी में? फिर बच्चों में और घर गृहस्ती में ऐसी उलझी की झुमके का फितूर दिमाग से उतर गया लेकिन दिल से नहीं गया था झुमकों का मोह।

शादी ब्याह में जेवर से सज जाती लेकिन कान झुमकों के लिए तरस जाते। कभी-कभी अपने पति से कहतीं, “सुनो जी एक झुमका तो बनवा दो मुझे।”

तो उनका जवाब होता, “कितनी फिजूलखर्ची करवाओगी, पहले से क्या कम गहने पड़े हैं? अब बहु घर आयेंगी, बेटी का ब्याह होगा और तुम्हें झुमके बनवाने हैं?”

पति की बातें सुन रुक्मणि जी चुप रह जातीं। रुकमणी जी का यह सपना सपना ही रह गया और आज जब नंदनी के कानों के सुंदर झुमकों पे नज़र गई और वह भी दो तल्ले वाले, तो लगा जैसे बरसों सपना सामने हो। ऐसे ही तो झुमके सपने में आते थे उनके।

नई-नई शादी के बाद नंदनी जहां जाती जिद करके वही झुमके उसे पहनने को कहते दादी।

“इतने सारे गहने है मेरे पास दादी फिर भी मुझे यही झुमके क्यों कहती हैं आप पहनने को?”

“अरे बहुरिया तू क्या जाने इन झुमकों की कीमत?” दादी सास की बातों से नंदनी को लगा दाल में जरूर कुछ काला है।

एक दिन अपनी दादी सास की चोटी बनाने वक्त उसने पूछ ही लिया, “दादी क्या आपको मेरे दो तल्ले के झुमके पसंद हैं?”

“अरे नहीं नहीं बहु ऐसी कोई बात नहीं और पसंद क्यों ना होंगे इतनी सुंदर झुमके जो हैं।”

“नहीं दादी, मैं कुछ नहीं सुनने वाली। आप मुझे सारी बात बताओ, जरूर कोई बात है तभी आप मुझे हमेशा वही पहनने को कहती हैं।”

नंदनी के ज़िद करने पे दादी ने सारी बातें कह सुनाईं। अब नंदनी को समझ गई थी कि दादी क्यों उसे बार बार वही झुमके पहनने को कहती है। दादी खुद को नंदनी में देखती थीं। जब नंदनी झुमके पहनती तो उन्हें लगता वो खुद पहन लें।

एक दिन दोपहर जब दादी सो कर उठी उनके सिरहाने एक सुंदर सी मलमल की पोटली रखी थी।

“अरे! यह पोटली किसने रख दी यहाँ? किसकी पोटली है ये?”

जब कोई ज़वाब नहीं आया तो उत्सुकता से दादी ने उसे खोल के देखा। अंदर एक सुनहरी रंग की डिब्बी थी। जैसे ही डिब्बी को खोल कर दादी ने देखा, अंदर एक सुंदर जोड़ी झुमकों की पड़ी थी, वो भी दो तल्ले वाले! उसमें लाल हरे पत्थर से जड़े छोटे छोटे घुँघरू से सजे उस सुन्दर से झुमके को देख दादी की आंखो में चमक आ गई।

“यह किसने झुमके रखे यहाँ?”

“मैंने रखे दादी!” नंदनी ने मुस्कुरा कर कहा, “क्या हुआ आपको ये झुमके पसंद नहीं आये क्या दादी?”

“अरे बहु! पसंद तो बहुत हैं पर यह किसके झुमके हैं?”

“आपके हैं दादी!”

“मेरे झुमके?” आश्चर्य से दादी ने कहा।

“जी दादी, यह मेरी तरफ से छोटा सा तोहफा है आपको। आपको झुमके पहने का बहुत शौक था ना? सब कुछ होते हुए भी कभी झुमका ना ले पाये। आप तो ये एक छोटा सा तोहफा अपनी बहू की तरफ से स्वीकार करें आप।”

खुशी से दादी का चेहरा चमकने लगा। जल्दी से दादी के कानों में झुमका पहना दिया नंदनी ने।

“कोई शीशा तो लाओ। देखूं तो मैं कैसी लग रही हूँ?”

दादी को पूरे परिवार ने कभी इतना ख़ुश नहीं देखा था। पूरा परिवार इकट्ठा हो गया। शीशे में दादी अपना चेहरा कभी दाएं से देखें कभी बाएं से देखें और खुद के चेहरे पर मोहित हुए जा रही थीं।

“एक सेल्फी ले लें तुम्हारे साथ दादी?”

जब उनके पोते ने कहा तो ख़ुश हो दादी ने कहा, “हां हां ले ले, लेकिन नंदिनी के साथ ले! जो खुशी आज तक किसी ने नहीं दी वो आज किया मेरी नंदिनी बहू ने दी है मुझे।”

नंदनी को ढेरों आशीर्वाद दे गले लगा लिया दादी ने और कहा, “हां सुन लो सब झुमके वाली फोटो ही मेरी तेरवीं में भी लगाना।”

“दादी मरें आपके दुश्मन! अभी तो आपको हंड्रेड प्लस जीना है…” नंदनी की बात सुन पूरा परिवार हंसने लगा।

दादी की हँसी और ख़ुशी की आज कोई सीमा नहीं थी, बरसों का देखा सपना आज जो पूरा हो गया।

मूल चित्र : Still from Tanishq Ad/YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

174 Posts | 3,907,701 Views
All Categories