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रिश्तेदारों की भीड़ धीरे-धीरे कम हो गई सब अपने घरों को प्रस्थान जो कर गए थे। अब होने लगी सुनैना की वास्तविकता से पहचान।
अजीब सी हलचल होने लगी है, समझना मुश्किल सा होता जा रहा है। यह जिंदगी किस तरफ को ले जा रही है। कितना कुछ बदल गया है या शायद अभी और बदलाव आना भी जरूरी है। इसी उधेड़ बुन में उलझी थी – सुनैना। वह जिंदगी के नज़रिए को कभी सकारात्मक रूप से लेती ,तो कभी खुद को दोषी ठहराती।
माना आज का युग नारी के लिए काफी बदलाव लाया है लेकिन क्या वो आजादी मिल पाई है? शायद नहीं।
आज भी वह अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रही है चाहे घर हो या ऑफिस। रिश्तों को निभाने में अपनी पहचान खो बैठी है। कुछ कमी तो आज भी उसके जीवन में है जिसको वह चाह कर भी पूरी नहीं कर पाई।
सुनैना भी इसी सोच में थी। दिन भर का काम निबटा कर अकेली बैठी अपनी जिंदगी का मुआयना कर रही थी।
कल की ही तो बात है जब वह नई नवेली दुल्हन के रूप में इस घर में आई थी। हर लड़की की तरह उसके भी अपने नए जीवन के बारे में कुछ सपने थे। शुरू का समय था हर कोई उसको अच्छा महसूस कराने में लगा था।
यह सब उसको भी अपना सा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना ही घर हो। सभी से प्यार पा रही थी। हर रिश्ते को अच्छे से महसूस कर रही थी। रिश्तों में अपनापन पाकर अपने को गौरवमय समझ रही थी।
घर के सदस्यों की अपेक्षाएं सुनैना से बढ़ती जा रही थीं लेकिन उसकी इच्छाएं क्या मायने रखती थीं?
यह तो कोई जानना ही नहीं चाहता था। सुनैना अपने कर्तव्यों को निभाती, बिना कोई अपेक्षा रखते हुए लेकिन एक खालीपन उसके अंतर्मन को चोट दे रहा था। हर एक को खुश रखना तो ख्वाहिश थी उसकी लेकिन उसकी अपनी खुशियों का क्या?
बहुत बड़ी-बड़ी ख्वाहिशें नहीं थी उसकी, वो तो छोटी-छोटी बातों से ही खुश हो जाने वाली लड़की थी। पति अपने काम में वयस्त रहते थे। ऐसा नहीं कि वे उसके मन की हालत नहीं समझते थे लेकिन अपने बातों को अच्छे से कह पाने की आदत नहीं थी शायद।
जब भी सुनैना को पतिदेव के साथ बाहर घूमने का मौका मिलता तो वह अपने को खुशकिस्मत मानती, ऐसी ही थी सुनैना। उसे अपने पति से बड़े बड़े उपहारों की कोई कामना नहीं थी क्योंकि उसे तो चाहिए था सिर्फ प्यार, सम्मान और वक्त। शायद हर स्त्री यही चाहती है।
अब वो समय आया जो हर स्त्री के जीवन में आता है उसे खुशखबरी मिली वो नन्हा मेहमान जिसकी जीवन में आने से पति पत्नी के संबंधों को नई दिशा मिलती है। आखिर वो दिन आया जब वह खुशी बेटे के रूप में उनके घर आई।
सब बहुत खुश थे पहली नन्ही खुशी और वो भी बेटा। लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख रही थी बच्चे की तबीयत बिगड़ी और ऐसे बिगड़ी की उसको साथ ही ले गई। ना जाने ईश्वर ऐसे कैसे बेरहम हो गया। जीवन जैसे खतम हो गया। मन को कैसे समझाए सुनैना। पति पत्नी दोनो ही नहीं समझ पा रहे थे एक दूसरे को कैसे समझाएँ।
खैर, समय तो चलता ही जाता है।
सुनैना कैसे भूल पाती यह कोई घटना नहीं थी, उसके जीवन का खालीपन था जो कैसे भरता कोई नहीं जान पा रहा था। सुनैना धीरे-धीरे अपने घर के काम में वयस्त होने लगी। खाली समय में बैठती तो ईश्वर से यह ही प्रश्न करती मैं ही क्यूं? फिर वो समय भी आया फिर से खुशियां लौटी एक नन्ही परी के रूप में। घर खुशियों से भर गया। सुनैना को तो पंख लग गए। पति पत्नी दोनो बहुत खुश थे। समय कम पड़ता था नन्ही बच्ची को संभालने में।
सब की लाडली हो गई। गुड़िया रानी बड़ी हो रही थी लेकिन लोगो के मुंह कौन बांधे अब एक भाई भी हो तो? सुनैना भावुक हो जाती सोचती क्या भाई होना जरूरी है? क्या एक बहन के लिए? क्या दो बहनें अच्छे से एक दूसरे के लिए काफी नहीं हैं?
बात तो तब हुई जब सुनैना की घर आई लक्ष्मी दूसरी बेटी के रूप में। लेकिन मां के लिए उसकी बेटियां राजकुमारी से कम नहीं थीं, लेकिन हमारे समाज में ये फर्क तो है ही, जो सुनैना और उसकी बच्चियां समय समय पर महसूस करती थीं।
समय बीतता गया बच्चियां अपनी पढ़ाई में अच्छी थीं। दोनों एक दूसरे को काफी अच्छे से सपोर्ट करतीं। कहते हैं बेटियां बड़ी हो जाएँ तो मां की सहेली बन जाती है। सुनैना भी उनकी सहेली बन गई थी। तीनों एक साथ खूब मस्ती भी करती। एक बार फिर लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आने लगा ,बेटियां अपने अपने क्षेत्र में आगे जो बढ़ रही थीं। आज सुनैना भी सिर उठा कर चलती और सोचती क्या यह वही लोग है जो बेटी के जन्म पर कटाक्ष करते नहीं चूकते।
आज के समय में जब बेटियां आकाश की ऊंचाइयों को नापती हैं तो इस सोच को बदलना होगा जो सिर्फ बेटे बेटियों तक ही सीमित है। जहाँ सिर्फ यह सोच है कि बेटा हो तो मां बाप के साथ तो होगा, बेटा हो तो वंश आगे बढ़ेगा।
इन लोगों को अपनी सोच में परिवर्तन लाने की जरूरत है क्योंकि बेटी से एक नहीं दो घर खूबसूरत बनते हैं। बेटे से सिर्फ वंश नहीं चलता, यदि उसको जन्म देने वाली जननी ही ना हो तो? यह शक्ति तो बेटियों को ईश्वर द्वारा ही प्राप्त हुई है फिर क्या पता जिन बेटियों को माता पिता राजकुमारी की तरह पालते हैं वो ही उनके राजकुमार बेटों की कमी को पूरा कर दें।
जरूरत है बेटों की सोच में बदलाव लाने की, उनको भी आगे आकर इस समाज की पुरानी परंपरा को तोड़ने की, जिसमे सिर्फ बेटियां ही दोनों घर को संभालती आई हैं। उनको भी पहल करनी होगी तभी हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने में अपना योगदान दे सकते हैं।
मूल चित्र : Still from Hindi Drama Short Film Manzilein, YouTube
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