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सासुमाँ की आवाज सुनाई दी तो नीली दरवाजा खोल सासुमाँ के गले लग रो दी। सख्त सासुमां भी थोड़ा घबरा गई उसे रोता देख।
शादी वो लड्डू हैं, जो खाये वो पछताए और जो ना खाये वो भी पछताए। किसी ने सच कहा है, हर लड़की शादी के नाम से खुश तो होती हैं पर एक अनजाने भय से भी त्रस्त रहती हैं।
नीली भी ऐसे ही कुछ खुश, कुछ घबराई हुई थी। अभी पढ़ ही रही थी, पर सुयोग्य वर देख पिता ने रिश्ता तय कर दिया। ससुराल गांव में था। नीली ने शुरू में प्रतिवाद किया, “अभी शादी नहीं करुँगी।”
लेकिन पिता के आगे किसी की ना चलती। तो नीली की शादी हो गई।
शादी कर ससुराल आई, एक अनजाना परिवेश। मायके में विदा के समय उसे रोता देख नीलाभ ने उसे समझाया था, “वहां भी माँ-बाप और भाई-बहन हैं।”
सरल हृदय नीली इस बात को सच मान ली। सच्चाई तो वहां पहुँच कर पता चली।
ससुराल गांव में होने से घूँघट प्रथा का कड़ाई से पालन होता था। क्या मजाल किसी बहू का घूँघट जरा भी ऊपर हो जाये। घूँघट के चक्कर में नीली किसी को पहचान भी नहीं पाती थी।
कुछ समय ससुराल में रहने के बाद नीली पति नीलाभ के साथ उसके जॉब वाले शहर में आ गई। नई गृहस्थी और नये पति पत्नी। साथ सासुमाँ भी आई, गृहस्थी जमाने में मदद करने को। हर दिन कुछ खट्टा-मीठा अनुभव हो रहा था।
एक शाम सासुमाँ और पति बाजार गये थे। नीली को पेट दर्द हो रहा था, तो वह नहीं गई। रात हो गई तभी घंटी बजी, नीली को लगा नीलाभ और सासुमां होंगे। वो उठ कर दरवाजे को खोल आई, और अंदर आ लेट गई। पर अंदर किसी के आने की आहट नहीं आई। कुछ शंका हुई, तो दुबारा गई।
दरवाजा खोला तो एक अनजान शख्स खड़ा था। लम्बा चौड़ा और बड़ी सी दाढ़ी। नीली ने डर कर दरवाजा बन्द कर दिया।
वो इंसान बाहर खड़ा बोल रहा, “मैं नीलाभ का चाचा हूँ।”
लेकिन नीली विश्वास नहीं कर पा रही थी। तभी सासुमाँ की आवाज सुनाई दी तो नीली दरवाजा खोल सासुमाँ के गले लग रो दी। सख्त सासुमां भी थोड़ा घबरा गई उसे रोता देख।
तभी नीली की निगाह पीछे पड़ी, वही आदमी खड़ा मुस्कुरा रहा था।
नीली चीख पड़ी, “माँ देखिये यहीं आदमी हैं, जो दरवाजा खुलवा रहा था और कितना बद्तमीज हैं हँस भी रहा। बोल रहा था की नीलाभ का चाचा हैं। मुझे बेवकूफ बना रहा है।”
सासुमां ने नीली का चेहरा सामने किया और आँसू पोंछ बोली, “ये सच में नीलाभ के चाचा हैं। तुम इनको नहीं पहचानती हो।” और पीछे चाचा जी और नीलाभ मुस्कुरा रहे थे।
शर्म के मारे नीली अंदर भाग गई।
चाय ले जब नीली आई तो चाचाजी ने कहा, “बहू तुम घूँघट मत करो। आज तो तुम मरवा देतीं। इतना चिल्ला रही थी, कि पडोसी इक्कठा होने लगे थे। ये अच्छा हुआ की उसी समय नीलाभ आ गया।”
“आप दरवाजे पर क्यों खड़े थे देर तक?” नीली के पूछने पर उन्होंने बोला, “सच्चाई ये हैं, कि घूँघट की वजह से मैं भी तुम्हें नहीं पहचानता था। घंटी बजा तो दी पर असमंजस में था मैं कि ठीक घर आया हूँ या नहीं। बहू मैं बद्तमीज नहीं हूँ।”
उनके इतना कहते सब जोर से हँस पड़े।
सासुमां बड़बड़ा उठी, “इस घूँघट ने तो गुल खिला दिया। आज देवर जी की पिटाई हो गई होती। छोड़ो बहू घूँघट अब।”
चाचा जी भी बोले, “हाँ तुम मुझे पहचान लो, मैं तुम्हें।”
शर्मा कर नीली भाग गई। सच ससुराल गेंदा फूल की तरह खिला हुआ था। कभी तकरार और कभी प्यार।
मूल चित्र: Still from show Bhabhi Ji Ghar Par Hai
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