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क्या वेब सीरीज महारानी राबड़ी देवी की कहानी है?

रानी भारती कैसे-कैसे भष्ट्राचार, नरंसहार और पति के गोली कांड के तह तक पहुँचती है, यह सब जानने के लिए आपको वेब सीरीज महारानी देखनी होगी।

रानी भारती कैसे-कैसे भष्ट्राचार, नरंसहार और पति के गोली कांड के तह तक पहुँचती है, यह सब जानने के लिए आपको वेब सीरीज महारानी देखनी होगी।

बीते शुक्रवार को सोनी लिव पर ड्रामा शैली में लेखक सर्जक सुभाष कपूर और निर्देशक करण शर्मा ने ‘महारानी’ वेब सीरिज़ में एक कहानी सुनाई है, जो यथार्थ और फिक्शन के दो गोल पोस्ट के बीच में डोलती हुई दिखती है, पर पालिटिक्ल ड्रामा वाला मनोरंजन प्रस्तुत करने में कामयाब हो जाती है।

कमोबेश सात घंटे में सुनाई गई यह कहानी, 1990 के दशक में बिहार में लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक उभार और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपने उत्तराधिकारी बनाए जाने की घटना के आस-पास बुनी गई है।

पूरी कहानी को सुभाष कपूर ने बिहार के राजनीतिक घटनाक्रमों के आस-पास बस बुना है। जिसका वास्तविक इतिहास से कोई लेना देना नहीं है। इसको बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री का बायोपिक समझना बहुत बड़ी भूल होगी।

अगर दर्शक इस कहानी को राबड़ी देवी और लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक उतार-चढ़ाव से जोड़ते हैं, तो यह बहुत बड़ी भूल होगी। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार के राजनीतिक घटनाक्रमों नरसंहारों, और घोटालों के वृत्तांत को टीवी और मोबाईल के स्क्रीन पर देखकर रोमांच और मनोरंजन पा रहे हैं। 

 

क्या कहानी है रानी के महारानी बनने की

पूरी कहानी इसकी मुख्य पात्र रानी भारती (हुमा कुरेशी) के आस पास घूमती है। जो अंगूठा-छाप है, पर मुख्यमंत्री भीमा भारती (सोहेल शाह) की पत्नी है। रानी भारती एक गृहणी है जो अपने बच्चों और पति की परवाह करती है। वह अपने बैग पैक कर पति के बिहार के सीएम पर से इस्तीफा देने के बाद वापस गांव जाना चाहती है।

लेकिन उसका जीवन तब बदल जाता है जब उसके उत्तराधिकारी होने के नाम की घोषणा हो जाती है। भीमा भारती के पार्टी के सदस्य उत्तराधिकारी की घोषणा सुनने के लिए उत्साहित है, खासकर यह की यह पद किसका होगा?

पर सभी अनपढ़ रानी भारती के उत्तराधिकारी बनने से भौचक्के हो जाते हैं। उसके बाद अनपढ़ रानी भारती के सामने कभी नरसंहार, तो कभी घोटाला, तो कभी अपने पति के गोली लगने के जांच में जिस सच्चाई का पता चलता है, पूरी कहानी उसी के आस-पास घूमती है।

रानी भारती कैसे-कैसे भष्ट्राचार, नरंसहार और पति के गोली कांड के तह तक पहुँचती है, जिसमें उसका पति भी शामिल होता है। यह सब जानने के लिए आपको सात घंटे की पूरी वेब सीरिज़ देखनी होगी।

चूंकि यह एक पालिटिक्ल ड्रामा है जिसमें थोड़ी-बहुत सच्चाई और अधिक यूटोपिया है, तो यह आपको मनोरंजक लगेगा। 

क्या अच्छा है और क्या बुरा है महारानी की कहानी में

पूरी कहानी में जिस पृष्ठभूमि का इस्तेमाल हुआ है, वह बिहार का है। लेकिन जिस भाषा का इस्तेमाल हुआ है वह कहीं से भी बिहार के करीब नहीं है।

कभी-कभी कहानी यह बताने की कोशिश करती है कि एक रबड़ स्टैप मुख्यमंत्री का ईमानदार बनना और कैसे वह भष्ट्राचार और साजिशों में डूबे अपनी पति तक को नहीं बक्शती है। नरंसहार पर हफ्ते भर में पुलिस डीजीपी को रिपोर्ट करने के लिए हड़काती है और भष्ट्राचार का पता लगाने के लिए जांच करने का आदेश देती है।

वेब सिरीज़ की कहानी बड़े उत्साह के साथ शुरू होती है, पर घोटाले की जांच और पूर्व मुख्यमंत्री पर गोली चलाने वाले को पकड़ने के जांच में अधिक समय खा जाती है। जिससे कहानी में बीच-बीच भटकती दिखती है। रानी के महारानी बनने के कहानी को जिस प्रभाव के साथ प्रस्तुत करनी थी वह मिसिंग दिखती है।

कहानी सबसे अधिक वहाँ अखरती है जहाँ वह रानी के चरित्र को महारानी तक गढ़ देती है। परंतु, दूसरी महिला को अगर कैबिनेट मंत्री बनना है तो उसे किसी नेता के साथ सोना होगा, यह सबसे अधिक परेशान करने वाली चीज है। साथ ही एक और बात जो निराश करती है कि पूरे के पूरे राजनीतिक ड्रामे के कहानी में विपक्ष दिखता ही नहीं। सत्ताधारी पार्टी में के विधायक और नेताओं के बीच खींचतान ही चलती रहती है।

पालिटिकल ड्रामे में कई चीजें इस तरह से दिखाई गई हैं जो पचती नहीं है। डीजीपी का खुद ही फील्ड तक एक्टिव होना संभव नहीं है। मुख्यमंत्री के फैसले को कोई भी राज्यपाल रोक ही नहीं सकता है। कोई भी राज्यपाल इतना अधिक प्रभावी नहीं होता है कि वह तय करे कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा या इसके पीछे की फील्डिंग सेट करे। खासकर मुख्यमंत्री को मरवाने तक की साजिश में भागीदार बने।

कलाकारों का अभिनय कहानी को थामे रखती है वेब सीरीज महारानी

वेब सीरीज महारानी में इन सारे कमियों को ढकने का काम तमाम पात्रों का अभिनय करता है। जिसमें हुमा कुरैशी और सोहम शाह का मुख्य किरदार के अभिनय निराश नहीं करते हैं।

नवीन कुमार के चरित्र का अभिनय समित सियाल ठीक-ठाक तरीके से निभाते है पर प्रभावित नहीं करते हैं। कनी कस्तूरी, इनामुल हक और वीनित कुमार जो सहायक चरित्र के रूप में आते है, उसमें सबसे अधिक इनामुल हल प्रभावित करते हैं।

सुभाष कपूर, जो सर्जक होने के साथ-साथ लेखक भी हैं महारानी के, वह मुख्य़ रूप से अच्छी सामाजिक-राजनीतिक कहानियों के लिए जाने जाते हैं इसलिए इस पॉलिटिकल ड्रामे में दर्शकों का मनोरंजन कराने में कामयाब हो जाते हैं।

मूल चित्र: Still from Show Maharani

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