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तुम एक औरत हो औरत, उससे ज़्यादा कुछ नहीं…

जय नेहा को हर समय नीचा दिखाता था कि, “तुम औरत हो तुम कुछ नहीं कर सकती हो, जो पुरुषों का काम हैं उन्हें ही करने दो”।

जय नेहा को हर समय नीचा दिखाता था कि, “तुम औरत हो तुम कुछ नहीं कर सकती हो, जो पुरुषों का काम हैं उन्हें ही करने दो।”

“नेहा! तुमसे कितनी बार कहा है, जब तुमसे यह काम नहीं होता तो तुम क्यों करती हो”, जय नेहा पर चिल्ला रहा था।

“जब तुम से नहीं होता तो मत किया करो,  तुम एक औरत हो और तुमसे ये काम नहीं होगा।”

नेहा जय की ये बातें सुनकर वहां से चली तो गई, लेकिन मैं जानती थी कि उसे उसकी यह बातें कितना ठेस पहुंचा रही थी। भले ही मैं जय की माँ हूँ, लेकिन मैंने नेहा को भी अपनी बेटी ही माना है, उसको कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि वह मेरी बहू है। नेहा भी मुझे अपनी माँ की तरह ही प्यार देती थी। 

जय में ये बातें ना जाने कैसे आयी थीं कि एक स्त्री कुछ नहीं कर सकती एक पुरुष के बिना, जबकि मेरे पति के देहांत के बाद मैंने ही उसे अकेले पाला था। मेरे पति ने हमेशा मुझे इज्जत दी, वे देश सेवा में वीरगति को प्राप्त हुए थे, तब जय केवल 3 साल का था।

मेरे पति के जाने के बाद मैंने बैंक में मैनेजर के पद पर नौकरी कर ली थीं। जय के पिता के ना होने पर भी मैंने अकेले ही उसे हर प्रकार से सक्षम बनाया था। 

समय बीतते ही, जय इंजीनियर बन एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर नौकरी करने लगा था। वह मेरी बहुत इज्जत करता था, और प्यार भी बहुत करता था।पर धीरे-धीरे ना जाने क्यों उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगा था। उसके साथ उसके ऑफिस में जो सहकर्मी कार्य करते थे,  उनके कारण उसके व्यवहार में बहुत से परिवर्तन आने लगे थे।

नेहा मेरे बेटे जय के साथ उसके ही ऑफिस में कार्य करती थी। वहीं से उन दोनों की दोस्ती शुरू हुई थी और दोनों ने परिवार की मर्जी के साथ प्रेम विवाह किया था। शुरू शुरू में सब सही था, परंतु बाद में जय के व्यवहार में बहुत सा परिवर्तन आने लगा।

वह नेहा से भी ठीक से बर्ताव नहीं करता था क्योंकि ऑफिस में नेहा जय से ज्यादा तरक्की कर रही थी, उसके कारण जय को नेहा से जलन होने लगी थी।

फिर एक दिन उसने मेरी तबीयत का बहाना देकर नेहा से उसकी जॉब छोड़ने को कहा। मैं नहीं चाहती थी कि नेहा अपनी जॉब छोड़ दे, क्योंकि वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी।

मैंने जय से भी इस बारे में बात की, “तुम नेहा की जॉब क्यों छुड़वाना चाहते हो?”

“माँ तुम सारे घर का काम करती हो। मैं नहीं चाहता आपको कुछ हो जाए, इसलिए मैं नेहा की जॉब छुड़वाना चाहता हूं।”

लेकिन में जानती थी कि वह नेहा की तरक्की से चिढ़ रहा था। अब रोज-रोज इस बात को लेकर नेहा और जय में झगड़े होने लगे। इस बात के चलते नेहा ने अपनी जॉब छोड़ दी और वह घर में मेरे साथ समय बिताने लगी।

हमने सोचा जय के व्यवहार में कुछ परिवर्तन आ जाएगा, परंतु वह दिन-ब-दिन और ज्यादा बेरूखा सा व्यवहार करने लगा था।

वह नेहा को हर समय यह कह कर नीचा दिखाता था कि “तुम औरत हो तुम कुछ नहीं कर सकती हो, जो पुरुषों का काम हैं उन्हें ही करने दो।”

यह देख कर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। मैं चाहती थी कि दोनों अपनी गृहस्थी में खुश रहें। जय बार-बार नेहा को ज़लील करने लगा था।

इसी बीच नेहा के भाई विजय की शादी तय हो गई। नेहा अपनी माँ की मदद के लिए मायके जाना चाहती थी, तो मैंने उसे उसके घर भेज दिया।

नेहा के जाने के बाद मैं घर में अकेली हो गई थी, परंतु मैं चाहती थी कि नेहा के जाने से जय के व्यवहार में कुछ परिवर्तन आए, क्योंकि नेहा भी उसके इस व्यवहार के कारण ख़ुश नहीं थी।

अब मैं अकेले सारे घर का काम करती थी। जय को यह देखकर अच्छा नहीं लगता, वह हमेशा मुझसे कहता कि, “माँ तुमने नेहा को इतनी जल्दी उसके घर क्यों भेज दिया?” 

परंतु मैं बोली, “उसके भाई की शादी है, उसकी माँ को उसकी मदद की आवश्यकता है, इसलिए मैंने उसे उसके घर भेज दिया और वैसे भी वो करती ही क्या थी?”

अब जय को भी नेहा की कमी खलने लगी थी, क्योंकि सारे घर की जिम्मेदारी उस पर थी, और वह ऑफिस और घर का काम नहीं देख पा रहा था। पर मैं यह चाहती थी की, जय को अपनी गलती का एहसास हो की नेहा कि उसकी लाइफ में क्या अहमियत है, एक औरत का उसकी जिंदगी में क्या अर्थ है।

एक दिन वह बोला, “माँ, आपकी तबीयत खराब है, आप नेहा को वापस बुला लीजिए।” 

“नहीं बेटा वह भी अपने भाई की शादी के कामों में व्यस्त है।”

आज जय को जब घर का काम करना पड़ा, मेरी देखभाल करनी पड़ी तो उसे यह एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। लेकिन अब वो ये बात कहे कैसे?

अब मैं उससे जाकर बोली, “तुमने उसे बार-बार हर बार इस बात का एहसास दिलाया कि वह एक औरत है, इसलिए वह कुछ नहीं कर सकती है। वह ऑफिस जाती और घर का भी काम करती, लेकिन उसने कोई शिकायत नहीं की।

वह तो तुम्हारे कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलना चाहती थी, हर मोड़ पर तुम्हारा साथ चाहती थी। मैं तुम्हारी हर गलती पर पर्दा डालती रही। तुमने अपने दोस्तों के सामने भी उसे बुरा भला कहा, लेकिन मैं सब बर्दाश्त कर गई सिर्फ तुम्हारे प्यार के कारण।

एक औरत कभी कमजोर नहीं होती। जरूरत पड़ने पर वह सभी का रूप धारण कर सकती है। कब हम औरतों को इस बात से आजादी मिलेगी कि ‘हम एक औरत हैं। कमजोर हैं कुछ नहीं कर सकती हैं?”

जय रोने लगा और बोला, “माँ! मुझे माफ करना मैं अपनी यह गलती के कारण अपने रिश्ते को बिगाड़ने चला था।

आज मुझे एहसास हुआ कि एक औरत चाहे तो कुछ भी कर सकती है। वह एक मकान को स्वर्ग बना सकती है। एक आदमी के सफलता के पीछे एक औरत का ही हाथ होता है। मैं नेहा के घर जाऊंगा, उससे अपने किए की माफ़ी मांग लूंगा।”

आज मैं जय की बातें सुनकर, बहुत खुश हुई की मैंने उसे यह एहसास दिला दिया था, कि औरत चाहे तो कुछ भी कर सकती है। 

मूल चित्र: Still from Hindi Tv Serial Anupama

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