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आखिरी बार जो हुआ था मिलना,वो उसकी सांसों का इत्र,आंखों से ढुलकते अश्कों कीकशिश,मुझे फिर उसकी खुशबू से सरोबार करजाते है।
फिर वही ग्रीष्म ऋतु, मुझे सौंधी सौंधी खुशबू वाली मायके की मिट्टी, याद दिला रही। बाबा के दुलार, और माँ के पकवानों, की सुगंध मन को महका रही।
वो यौवन, बहकता था तन मन हो के स्वछंद, वो आज़ाद हवाओं की महक, मुझे अब भी बहकाती है।
पूराने ख़त, किताबों मे सूखे गुलाब उस अधूरी प्रेम कहानी की महक को, आज भी ताजा कर जाते है।
आखिरी बार जो हुआ था मिलना, वो उसकी सांसों का इत्र, आंखों से ढुलकते अश्कों की कशिश, मुझे फिर उसकी खुशबू से सरोबार कर जाते है।
समय की गति चलती रही, वो पूरानी महक हवा संग फना हो गई, पिया ने छेड़ी महकती प्रेम बयार छोड़ घर द्वार, आ गई परदेस, रास आ गई यहाँ की आबो हवा।
महकती हूँ अब हर दम, ताकि मेरे साथ जुड़े रिश्ते मुस्कुराते, महकते रहे सदा।
मूल चित्र: Parachute Advanced Via Youtube
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