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सुची तो पूरी गाय है। सीधी सादी आज्ञाकारी घर के कामों में माँ का हाथ बँटाती दिख जाती, दिखने में भी भोली सी और उसकी दो लंबी सी चोटी।
एक ही परिवार में दो लोग बिल्कुल अलग स्वभाव और संस्कार के साथ बड़े हो सकते हैं।
अकसर ही बचपन मे सुनने को मिलता था हमारे पड़ोस मे रहनेवाली दो बहनें एक दूसरे की पूरी उलट है। एक है सीता तो दूसरी गीता। सुची तो पूरी गाय है। सीधी सादी आज्ञाकारी घर के कामों में माँ का हाथ बँटाती दिख जाती, दिखने में भी भोली सी और उसकी दो लंबी सी चोटी।
इसके ठीक उलट उसकी छोटी बहन रुची दिनभर खेलकूद में मस्त, घर के कामों से कोई मतलब नही, माँ अगर बोल दे कोई काम तो मुँह पे तुरंत जवाब रहता की मुझसे नहीं होगा ये सब। कटे हुए बाल और सारा दिन लड़कों के साथ मैदान में खेलती रहती।
शायद ही कभी सुची को डाँट पड़ती और अगर कोई जोर आवाज में भी उसे कुछ कह दे तो बस उसकी रुलाई शुरू हो जाती। लेकिन रुचि को इन डाँट से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, कभी कभी तो अपनी बदमाशियों के लिए मार भी खा लेती। थोड़ा रोना धोना उसके बाद फिर अपनी मस्ती में। रोना धोना होता भी तब होता जब उसे अपनी कोई बात पूरी करवानी हो।
दोनों का जीने का तरीका बिल्कुल अलग। सुची को लगता शादी के बाद वो अपने सारे शौक़ पूरा करेगी और वहीं रुचि जिंदगी को आज जी भर के जीने में यक़ीन रखती क्यूँकि कल किसने देखा हैं।
कुछ सालों बाद वो लोग घर बदल कर दूसरे एरिया में चले गए। कभी-कभी चाचाजी का आना होता था हमारे घर। सूची की शादी भी हो चुकी थी और कुछ साल में छोटी रुचि की भी।
अब जब भी चाचाजी से मिलना होता तो सूची और रुचि की खबर मिलती, लेकिन अक्सर चाचाजी को सूची की चिंता रहती। कभी कहते उसकी सास बहुत कड़क स्वभाव की है, हमेशा ताना मारने की आदत थी उनको। यहाँ तक कि मायकेवालों के सामने हमेशा सूची की शिकायतें लेकर बैठ जाती। मायके आकर दो दिन भी रह नहीं सकती थी, कभी आती भी तो घर के सारे काम निपटा के आती और कुछ घंटों में मिलकर मायके से वापस चली जाती।
सुचि सास के नाजायज बातों का कभी जवाब नहीं देती, उल्टा उनकी बातों को दिल से लगा कर दुखी होती। मायकेवाले भी हमेशा सूची के ससुराल वालों को खुश रखने का प्रयास करते कुछ न कुछ देकर। कुछ सालों बाद सूची की सास का देहांत हो गया। लेकिन उसके बाद भी सूची के जीवन मे कोई बदलाव नहीं आया।
चाचाजी अब भी दुखी रहते क्यूँकि अब सूची के पति का शराब पीना काफी बढ़ चुका हैं, घर का माहौल बद से बदतर हो चुका है। लेकिन सूची को चुप होकर सब कुछ सहने की आदत हो गयी है। आज भी उसमे हिम्मत नहीं कि अपने साथ हो रहे गलत को रोक सके अपनी आवाज़ उठा सके।
रुचि के तरफ से चाचाजी को हमेशा निश्चित ही देखती आयी हूँ। ऐसा नहीं है कि उसके जीवन मे कभी कोई मुश्किल नहीं आई। लेकिन रुचि ने कभी मायके वालों को अपना दुखड़ा नहीं सुनाया क्यूँकि वो देखती आयी थी माँ पिताजी तो पहले से दुखी हैं बड़ी बेटी की तकलीफों से। उसने अपनी मुश्किलों को खुद हल करना सिख लिया था, कुछ तो अपने स्वभाव की वजह से और कुछ बड़ी बहन के हालातों से सीखकर।
मुझे आज प्रेमचंद की लिखे वो शब्द याद आ रहे जहाँ वो लिखते हैं-“संसार मे गऊ बनने से काम नही चलता,जितना दबो लोग उतना ही दबाते हैं।”
मूल चित्र: Still from short film Soul Mother/FNP Media, YouTube
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