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मेरा सिंदूर या मेरी इज़्ज़त, क्या ज़्यादा ज़रूरी है?

राजी तो हुई बबीता बुआ पर सिंदूर दान के बाद उन्होंने सभी लोगों के सामने अपना सिंदूर धो डाला और अपना मंगलसूत्र उतार दिया। 

राजी तो हुई बबीता बुआ पर सिंदूर दान के बाद उन्होंने सभी लोगों के सामने अपना सिंदूर धो डाला और अपना मंगलसूत्र उतार दिया। 

बात उन दिनों की है जब मीनू 10 साल की थी। मीनू और सारे परिवार वाले शादी में जाने के लिए तैयारी कर रहे थे।

मीनू के घर की सबसे बड़ी सदस्य थी उसकी दादी। 

मीनू ने कहा, “मैं हमारी दादी से आपकी जान पहचान करवा दूँ। मेरी दादी छोटी सी, सांवला सा रंग, पान से रंगे लाल होठ…” 

तभी दादी की आवाज सुनाई देती है। ज़ोर ज़ोर से सबको आवाज़ लगा रही थी, “जल्दी जल्दी अपना अपना सामान बांध लो सुबह तड़के ही निकलना है। सुबह सुबह सब नहा थोकर तैयार हो जाना।” ऐसा कहकर दादी सोने चली गई।

मीनू और मीनू की दीदी सबसे पहले उठ कर तैयार हो गए। क्यूँकि बुआ की शादी की ख़ुशी में रात भर सो नहीं पाए। तभी दरवाज़े पर रिक्शा के आने की आवाज़ आई। मीनू और उसकी दीदी भागते हुए रिक्शे में बैठ गईं।

पूरा परिवार दादी, मम्मी पापा सभी बस स्टेशन पहुंचे और बस में बैठ गए। बस अपने गंतव्य पर पहुंचने के लिए रवाना हुई। करीब पांच बजे मीनू और उसका परिवार अपने पैतृक गांव सोनपुर पहुंच गए। वहां शादी की तैयारी ज़ोर शोर से चल रही थी। सारे मेहमान पहुंच चुके थे।

रात ऐसे ही नाचते गाते बातचीत में निकाल गयी। सुबह सब को जल्दी उठना था। सुबह तड़के सभी बड़े उठ कर शादी की रस्मों रिवाज की तैयारियों में जुट गए। दिन ऐसे ही बीत गया। 

अब आई रात की बारी जब बारात आने का इंतज़ार हो रहा था। लेकिन जो कभी किसी ने भी सपने में भी नहीं सोचा होगा। ऐसा कुछ होने वाला था जो किसी को भी सोचने पर मजबूर कर दे।

अब मैं मीनू, बुआ के परिवार वालों से आपका परिचय कर दूँ। 

बुआ जिनकी शादी होने वाली थी उनका नाम था बबीता। बबीता बुआ के पिताजी बचपन में ही भगवान को प्यारे हो गए थे। उनको और उनके परिवार को रमन चाचा पाल रहे थे। बुआ के परिवार में उनकी मम्मी, एक बहन और एक भाई था। 

रमन चाचा ने बुआ की शादी गांव के लड़के के साथ तय किया था जो साधारण सी दुकान चलाता था। दुकान से परेशानी नहीं थी, परेशानी की बात ये थी कि उसकी उम्र भी बुआ से दोगुनी थी। दरसल कहानी तो यहीं से शुरू होती है। 

रमन चाचा की भी अपनी एक बेटी थी बबीता बुआ की उम्र की, बाईस साल की हेमा। 

बबीता बुआ को हल्की फुल्की जानकारी थी कि उनका होने वाला पति साधारण घर का है, पर उन्हें अपने रमन चाचा पर पूरा विश्वास था कि वो उनके साथ कुछ भी बुरा नहीं करेंगे। 

पर वो कहते है ना जिस पर जितना विश्वास होता है वही कभी कभी आपका विश्वास तोड़ देता है।  

रात के नौ बजे बारात द्वार पर आ गई, स्वागत सत्कार हुआ। लड़के को स्टेज पर ले जाया गया। लड़के को देखने और विधि विधान करने बबीता बुआ की माँ स्टेज पर आती है। 

लड़के को देखते ही उनके होश उड़ जाते है। देखने में लड़का बिल्कुल बूढ़ा सा आदमी था। बाल सफेद चेहरे पर झुर्री। और बबीता बुआ सिर्फ बाईस साल की ही थी। 

बबीता बुआ की माँ भी पहली बार लड़के को देख रही थी। अनमने ढंग से उन्होंने विधि विधान किया और अंदर जाकर रोने लगी। बबीता बुआ को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बात क्या है। 

बबीता बुआ ने अपनी माँ से पूछा, “क्या हुआ माँ? आज खुशी के इस शुभ घड़ी में आप क्यों रो रही हो?”

बुआ की माँ ने आँसू पोछे और बात को छुपाते हुए कहा, “कुछ नहीं कुछ नहीं चलो स्टेज पर जाना है।” 

बबीता बुआ की सहेली को उन्होंने ने बोला, “बबीता को लेकर स्टेज पर आओ।” 

बबीता बुआ खुश थी क्यूँकि हकीकत से अनजान थी अभी तक। वो तो अपने सपनों की दुनिया में खोई हुई थी। बबीता बुआ जब स्टेज पर पहुँचती है तो सामने लड़के को देख वो एक क्षण के लिए सुन्न हो गई। आँसू एक एक बूंद उनके गाल पर आ टपके। ऐसा लगा सारे सपने टूट कर बिखर गए। 

वरमाला की रस्म होनी थी अब। पर बुआ बिल्कुल तैयार नहीं थी लड़के के गले में माला डालने को। ये सब बातें बबीता बुआ ने मीनू की मम्मी को बताया चुपके से, “मैं ये शादी नहीं करूँगी। क्या मेरी कोई अहमियत नहीं? क्या मेरे लायक कोई और नहीं मिला?” 

बारात सामने बैठी , लड़का स्टेज पर बैठा वरमाला का इंतजार कर रहा था। पूरा समाज, पूरा परिवार क्या कहेंगे लोग। रमन चाचा की इज्जत की ऐसी की तैसी हो जाएगी। ये सब सोच कर मीनू की मम्मी ने बबीता बुआ को समझाया ।

उन्होंने ने बबीता बुआ से कहा, “देखिए बबीता अभी वरमाला पहना दीजिए क्यूँकि समाज और लोग क्या कहेंगे? और यदि बारात वापस चली जाएगी तो फिर शादी कैसे होगी? आप तो जानती हैं कि अगर एक बार दरवाजे से बारात वापस चली जाती है फिर लड़की आजीवन कुँवारी रह जाती है।”  

इसके बाद भी बबीता बुआ और उनकी माँ ये शादी को बिल्कुल तैयार नहीं थी। बबीता बुआ और उनकी माँ आजीवन कुँवारी रहने को तैयार थी पर ये शादी नहीं करना चाहती थी। फिर न जाने क्या हुआ कि बबिता ने अनमने मन से वरमाला पहना दी। 

रमन चाचा को बबीता बुआ की माँ ने कहा, “भाई साहब क्या आप अपनी बेटी हेमा के लिए ये रिश्ता करते? आप चाहते की आपकी बेटी को इतनी उम्र वाला इंसान मिले? इतना ही था तो हेमा से शादी करवा देते, मेरी बेटी ही क्यों? इसलिए ना क्यूँकि उसका बाप जिंदा नहीं है? क्यों किया भाई साहब ऐसा? नहीं करना था तो बता देते, मैं अपनी बेटी का विवाह खुद देख कर कर लेती।” 

इतना सुनने के बाद भी रमन चाचा कुछ नहीं बोले। पर अब आगे होगा क्या? सवाल ये था। बारात वापस जाना मतलब इज्जत की धज्जी होना। 

जितने रिश्तेदार थे सब रमन चाचा को ही भला बुरा कह रहे थे। और कहना भी उचित था। लड़का बाहर मंडप पर इन्तज़ार कर रहा था। उसके लिए तो सोने पे सुहागा वाली बात हो गई ना। 

इधर सब बबीता बुआ और उनकी माँ को समझने लगे की अब तो शादी करनी ही पड़ेगी कोई दूसरा उपाय नहीं है। इधर रमन चाचा भी बबीता बुआ और उनकी माँ के सामने अपनी इज्जत की भीख मांगने लगे। 

राजी तो हुई बबीता बुआ पर सिंदूर दान के बाद उन्होंने सभी लोगों के सामने अपना सिंदूर धो डाला और अपना मंगलसूत्र उतार दिया।  इतना ही नहीं, उन्होंने उस लड़के के साथ जाने से साफ साफ इंकार कर दिया। अगर बड़ों की इज़्ज़त रखने के लिए उन्होंने ये शादी करी तो अपनी इज़्ज़त के लिए इस शादी को मानने से इंकार कर दिया।  

उन्होंने भरी सभा, समाज, परिवार, रिश्तेदार के सामने अपने हक की लड़ाई लड़ी और अंततः बबीता बुआ की जीत हुई। उन्होंने जो किया अच्छा किया। आज वो अपने माँ के पसंद के लड़के के साथ खुश है। 

क्यों समाज में लोग इस रूढ़िवादी विचारों के चंगुल में जकड़े हुए हैं? क्या रमन चाचा को ऐसी छोटी सोच रखनी चाहिए थी? यदि बबीता बुआ के जगह पर रमन चाचा की खुद की बेटी होती तो क्या वो शादी कर देते? बिल्कुल नहीं ना? क्या बबीता बुआ ने गलत किया इंकार करके? और ना जाने कितने सवाल जो शायद आपके और हमारे मन में है। 

 

मूल चित्र: Still from Documentary A Suitable Girl

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