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मैंने पूछा सपनों से,क्या तुम कभी सच होते हो?या बाकी सब की तरह तुम भी बस दिलासा ही देते हो? या वही कुछ टूटे सपने, और ख्वाब।
उस पार,कोई मेरे जैसी,आँख मिचौली खेलती अपने आप से,खुद को समझाती, सपनों को पूछती,क्या तुम कभी सच होते हो?या बाकी सब की तरह तुम भी बस दिलासा ही देते हो?
मैंने अम्मा से कहा कल तुम्हारे बारे में,वो बोली हट पगली ये भी क्या लड़कियों के करने की चीज हैं।
पूछा था मैंने भैया से भी कुछ दिन पहले,तब जवाब आया था ये लड़कियों वाली बातें मुझसे ना किया करो।
अब कोई तो समझाये मुझे मेरा दायरा,कोई कहे लड़की हो ये ना कर।कोई कहे लड़की हो ये किया कर।बस इसी में घसती ये मेरी नन्ही ख्वाहिशें,कुछ टूटे सपने, और कुछ कभी ना सच होने वाले ख्वाब।
मैंने पूछा सपनों से,क्या तुम कभी सच होते हो?या बाकी सब की तरह तुम भी बस दिलासा ही देते हो?
मूल चित्र: Parachute Advanced via YouTube
Gender Equality Advocate, TEDx Speaker, Social Reformer, Sociopreneur, Human Rights Activist, Pad woman of Odisha , Writer, Motivational Speaker, Art connoisseur... An impenitent, non-conformist, adventurous, boho soul and an admirer of life. Loves my Indian read more...
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