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लेकिन लिखने से जो सूकून मुझे मिलता है, उसका स्वाद हर कोई नहीं चख सकता। अब चाहे कुछ भी हो, मैं लिखती रहूँगी। खुद से ये मेरा चैलेन्ज है।
स्कूल-टाइम से ही कुछ न कुछ लिखती थी। मेरी कविता में बस दो-चार लाइन ही होती। चाहे अच्छी हो न हो, मम्मी-पापा कहते, “अरे वाह बेटा, ये तो बड़ी अच्छी लिखी है।”
“ये तो पहले से भी अच्छा लिखा है।”
भैया ने एक डायरी दी और बोला, “इसमें लिखो” और मैं डायरी में अपनी छोटी छोटी कविताएँ लिखने लगी। स्कूल, कॉलेज में अपनी रचनाएँ सुनाती, और वाहवाही मिलने पर खुश हो जाती।
इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स और कम्प्यूटर कोर्स करने के बाद कॉन्वेन्ट स्कूल में कम्प्यूटर टीचर की जॉब की। उसके बाद शादी हो गई। एक दो कम्प्यूटर ट्यूशन दिये पर घर और बच्चों की प्राथमिकता के चलते, ट्यूशन देना बन्द करना पड़ा।
मेरा लिखने का शौक और कम्प्यूटर दोनों मानों कहीं खो गए। मन को समझाया कि अभी मेरे घर और बच्चों को मेरी ज़रुरत ज्यादा है। तभी मेरे आर्कीटेक्ट पति और मैंने ऑटोकैड (AutoCAD) का कोर्स किया। पति के प्रयासों से मैं कम्प्यूटर से फिर से जुड़ गई और पति के ऑफिस कार्य में हाथ बँटाने लगी।
बच्चों को स्कूल में कुछ लिखना होता तो उनकी मदद करती, लगता कि अभी भी कुछ लिख सकती हूँ । बच्चों के अपने अपने कैरियर में सफल होने पर लगा कि अब मैं अपने लेखन को समय दे सकती हूँ।
सबसे पहले मैंने व्हॉट्सऐप ग्रुप पर अपनी कविताएँ भेजी। सराहना मिली तो मन में दबी टीस को थोड़ी राहत मिली। अपने छोटे छोटे विचार लिखकर भेजने शुरु किए। किसी दिन नहीं भेज पायी तो फोन आते कि “समिधा तुम्हारा विचार नहीं आया, तुम ठीक तो हो ना।”
मेरी एक मित्र का फोन तो मेरे लिए किसी एवार्ड से कम न था, “आज तुम्हारा कुओट नहीं आया। तुम्हारे विचार मेरी बेटी ज़रुर पढ़ती है, अपने ऊपर अप्लाई भी करती है और उसे स्कूल असैम्बली में बोलती है, कह रही थी कि आज असैम्बली में क्या बोलूँगी?”
एक मित्र ने सुझाया कि अपनी कविता का ऑडियो डालिए। तब मैंने अपना यूट्यूब चैनल बनाया और मेरी रचनाओं का दायरा थोड़ा बड़ा हो गया।
कुछ समय बाद खुशकिस्मती से मुझे विमेंस वेब हिंदी जैसा सशक्त माध्यम मिला और मेरी रचनाओं के प्रकाशन से मेरे लेखन-कार्य को और बल मिला। आत्म-संतुष्टि का अनुभव मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती। उसके बाद मुझे और भी कई मंच मिले, जिन्होंने मेरी रचनाओं को सराहा।
लेकिन तभी मेरे पापा की अचानक मृत्यु ने मुझे भीतर तक तोड़ दिया ।अभी इस दुख से उबर भी नहीं पाई थी कि मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया और उसके तीन-चार दिन बाद ही सास-माँ की बीमारी से ऐसी घिरी कि।
इस बीच कितने लाइव प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए आमन्त्रण आए लेकिन मैं उनमें भागीदारी नहीं कर सकी। ऐसा लगने लगा था अब सब छूट गया है। लिखना चाहती थी पर मन इतना परेशान रहता था कि कुछ नहीं लिख पाती थी।
तभी वूमेन्स वैब से लाइव ओपन माइक में मेरा चयन हुआ और मैने ठान लिया कि पैर में कितनी भी तकलीफ हो, कैसी भी परिस्थिति हो, मैं यह जरूर करूँगी। यह मेरा चैलेन्ज था खुद मुझसे, और मैने यह किया। सराहना भी मिली और प्रेरणा भी। इसके बाद मुझे सृजन ऑस्ट्रेलिया और भारतीय भाषा अभियान के लाइव प्रोग्राम में अपनी कविता पाठ करने का अवसर मिला। लगा मानो मेरी लेखनी को पँख मिल गये हैं। लिखने की चाह आत्मविश्वास से भर गई। मन में विचार चलते रहते हैं, और कागज पर उतरते रहते हैं।
कुछ लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी भी होती हैं कि, “कुछ फायदा तो होता नहीं लिखने से”
“खाली है तो क्या करे, लिख लेती है कुछ”
“कुछ पैसा-वैसा भी मिलता है या यूँ ही।”
लेकिन लिखने से जो सूकून मुझे मिलता है, उसका स्वाद हर कोई नहीं चख सकता। अब चाहे कुछ भी हो, मैं लिखती रहूँगी। खुद से मेरा यह चैलेन्ज हर समय मुझे पहले से बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करता है। और मेरे पाठकों का प्यार मेरी लेखनी की शक्ति बन मुझे यह चैलेन्ज स्वीकार करने को प्रोत्साहित करता है।
मूल चित्र: Tirachard Kumtanom Via Pexels
Samidha Naveen Varma Blogger | Writer | Translator | YouTuber • Postgraduate in English Literature. • Blogger at Women's Web- Hindi and MomPresso. • Professional Translator at Women's Web- Hindi. • I like to express my views on various topics read more...
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