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मैं क्यूँ लिखती हूँ…

लिखना सुकून दे जाता है, इसलिए लिखती हूँ।इसलिए भी लिखती हूँ ताकि पढ़ सकूँ‌। एक दिन। जब यादें साथ देना छोड़ दें। और तुम रह जाओ, अक्षरशः।

लिखना सुकून दे जाता है, इसलिए लिखती हूँ।इसलिए भी लिखती हूँ ताकि पढ़ सकूँ‌। एक दिन। जब यादें साथ देना छोड़ दें। और तुम रह जाओ, अक्षरशः।

“तुम अच्छा भला इंग्लिश लिख रही थी, यूं अचानक हिंदी क्यों?”

कईयो ने पूछा। परवाह दिखाते हुए, बड़ी बेपरवाही से। आप कितना भी बेकार के सवालों से बचना चाहें, दिल दुख ही जाता हैं। फिर हम में से ज्यादातर लोग मुखर जवाब भी नहीं दें पाते।

पशोपेश मेरा

तो आज इस आधी रात तक जागते हुए मैं सोचते-सोचते थोड़ा आगे निकल गई। यह रात-रात तक जाग कर मैं लिखती क्यों हूँ? मैं लिखती ही क्यों हूँ?

क्या यूँ जाग कर लिखना, इसका कोई मोल भी है? यह अजीबोगरीब शौक बेतरतीब है? कागज पर मेरी कविता रद्दी के भाव तो‌ नहीं बिक जाएंगी? काले अक्षर से बनी कहानियां समय के साथ इतिहास बन जाएंगी? और फिर एक दिन बच्चे उस पन्ने का नाव बनाकर पानी में बहा देंगे?

तो यूँ रातों की नींद खराब कर इसलिए तो नहीं लिखती कि आप सब को मेरी लेखनी अच्छी लगे? या इसलिए कि अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकूँ। या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रतियोगिता/वेबसाइट/आपने मुझे कुछ लिखने कहा था, बस इसलिए?

जवाब खुद में समाया मिला

कई सवाल थें। जवाब के लिए फिर से लिखने का सहारा लिया। सोचा, छुटपन में तो बस इसलिए लिखती थी क्योंकि उस दिन मैं बहुत खुश थी और उस याद को संजो कर रखना चाहती थी। या कैसे मेरी बेस्ट फ्रेंड से तू-तू-मैं-मैं दिनों तक चली थी इसलिए। या फिर नए सत्ताधारी की नई नितियों की वजह से पापा को कई महीनों तक तनख्वाह नहीं मिली और हमें परेशानी हुई थी इसलिए।

लिखती थी ताकि अपनी सहेलियों की जन्मतिथि याद रख सकूँ। तो क्या मैं याद करने/रखने के लिए लिखती थी?

तो ऐसे ही मैंने एक बार अपने बच्चे की एक कहानी लिखी। आप सब ने सराहा दिया और कहा तुम्हारी लेखनी से प्रेरणा मिलती है। फिर और कहानियां और कविताएं। तो क्या इसलिए लिखा कि आपको प्रेरणादायक लगे, या फिर वह मेरी जिंदगी में भी भाव रखतीं है?

कई सवालों से टकराई, नींद क्या उबासी तक नहीं आई। पर आधी रात तक जागकर एक जवाब सूझ गया।

तो फिर लिखती क्यों हूं?

मैं शायद इसीलिए लिखती हूं, क्योंकि मेरे पास कागज़-कलम है। या फिर क्योंकि मैं लिखना जानती हूँ। शायद इसलिए भी कि मैं जवाब तुरंत दे नहीं पाती तो अरसों बाद गढ़ देती हूँ। लिखना सुकून दे जाता है, इसलिए लिखती हूँ। और इसलिए भी लिखती हूँ ताकि पढ़ सकूँ‌। एक दिन। जब यादें साथ देना छोड़ दें। और तुम रह जाओ, अक्षरशः।

मूल चित्र: Tirachard Kumtanom via Pexels

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Shilpee Prasad

A space tech lover, engineer, researcher, an advocate of equal rights, homemaker, mother, blogger, writer and an avid reader. I write to acknowledge my feelings. read more...

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