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माँ तुम कौन हो? कहां से आई हो माँ? क्या माँ सिर्फ वह चेहरा है, जिसे मैंने जन्म लेने के बाद सबसे पहले देखा या मांँ उसके भी परे है, एक भाव या...
माँ तुम कौन हो? कहां से आई हो माँ? क्या माँ सिर्फ वह चेहरा है, जिसे मैंने जन्म लेने के बाद सबसे पहले देखा या मांँ उसके भी परे है, एक भाव या…
माँ… क्या लिखा जा सकता है?
क्या प्यास को लिख सकते हैं शब्दों में या घड़े के पानी को लिख सकते हैं क्या? कैसा है उसका स्वाद या प्रतीक्षा या फिर रुदन? नहीं ना। इसलिए मां के लिए कुछ भी नहीं लिखा जा सकता है क्योंकि यह समस्त संसार मां के नयनों से गिरे आसुओं से पोषित एक पौधा है।
असल में मां इतनी सारी भावनाओं के साथ लबरेज है कि उसे चंद शब्दों समेटना या परिभाषित करना असंभव जान पड़ता है।
माँ, एक शब्द जिसको सुनते ही हमारे सिर पर आ जाता है एक हाथ हमारी माँ का।
माँ पास हो या दूर, हमारे आस-पास आ जाती है। वह अपनी ममता हर पल हमारे ऊपर उडेलती रहती है। वह एक स्नेह भाव है, जिसमें हम हमेशा सराबोर रहते हैं…इसलिए मां सिर्फ एक शब्द, एक स्त्री ही नहीं है, बल्कि एक भाव है…
फिर भी अगर माँ के बारे में लिखना चाहूं तो कवियत्री मित्र हरप्रीत कौर के कविता के शब्दों को उधार लेना मुझे ज्यादा सही लगता है जिसमें वो लिखती हैं…
मां तुने यह क्या कर दिया…अपने हिस्से का डर मेरी रंगों में भर दिया…
या फिर रघुवीर सहाय के शब्दों को जिसमें वो लिखते है कि…
मैं अपनी मां की भावना करता हूं तो मुझे वह नाचती हुई नहीं, बाग में बेलें छांटने की मजूरी करती हुई दिखती है…
पहली कविता इसलिए हर मां अपने संतत्ति को जीवन में शानदार ऊंचाई पर पहुंचते देखना चाहती है। वह अपने साथ की तमाम असुरक्षा से अपने संतत्ति को मुक्त करना चाहती है पर अनजाने में वह अपने हिस्से का डर संतत्ति में भर ही देती है।
वही दूसरी कविता में मां के श्रम को सतह पर ला पटकती है क्योंकि उसकी कभी पहचान नहीं की जाती है और कह दिया जाता है यह तो उसका काम है।
माँ कौन है?
कहां से आई है माँ?
क्या माँ सिर्फ वह चेहरा है, जिसे शिशु जन्म लेने के बाद सबसे पहले देखता है या मांँ एक भावना है?
स्त्री के लिए सदा यह बात कही जाती है कि एक स्त्री का जीवन अधूरा है यदि वह मातृत्व के सुख से वंचित हो। यदि एक शिशु को नौ माह पेट में पालना है तो संसार में ऐसी बहुत सी माएं है जो इस सुख से वंचित हैं। माँ होना दरअसल बहुत कुछ पाने से कहीं ज्यादा देना है। माँ भरणी है। मेरी नज़र में वह किसी भी खालीपन को भरने में सक्षम है।
जगत में जो भी आया है उसकी पहली टीचर माँ ही होती है। वह जो कहती है वह जो बताती है वही सब कुछ होता है बच्चों के लिए।
धीरे-धीरे पिता, भाई-बहन, परिचितों, दादा-दादी, आस-पड़ोसियों से जीवन के बारे में समझने का सिलसिला शुरू होता है। मां जो बताती है वही बच्चे के लिए पत्थर की लकीर होती है। वही हर बच्चों में सामाजिकता का पहला पाठ भरती है। जिसके आधार पर बच्चे दुनियावी चीजों का मूल्यांकन करते हैं।
उसके बाद स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई और टीवी की दुनिया को देखने समझने की क्षमता हमारे नज़रिया बनाती है।
बड़े हो जाने के बाद भी माँ के खजाने में कुछ होता है जो बड़े से बड़े समस्या का समाधान कर देता है।
हर माँ के अनुभवों को समझना और उसका मूल्यांकन करना संभव नहीं है इसलिए यह आज तक किया भी नहीं किया गया है। फिर चाहे माँ कामकाजी हो या आम गृहणी, अनुभवों का बड़ा संसार तो होता ही है उनके पास।
मर्दस डे हम कमोबेश हर साल मनाते हैं और अपनी मांओं को शुक्रिया भी अदा करते हैं। लेकिन क्या एक दिन ऐसी हस्ती के लिए काफी है?
आज हमें जरूरत इस बात की अधिक है कि हमारी मांओं से हमारा जीवन कितना अधिक प्रभावित है इस बात को समझें।
यह प्रभाव ही आज हमारे जीवन को संवार रहा है, वह किसी अनमोल तोहफे से कम नहीं है हमारे जीवन में।
हम उसके महत्व को स्वीकार्य कर लेंगे और उसे आगे बढ़ाएंगे तो मां को सम्मान स्वयं ही देने लगेंगे हर रोज़… हर दिन…
मूल चित्र : Apis Ramadan 2021,YouTube
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