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ममता बनर्जी का राजनीतिक जीवन भी अनेक उतार-चढ़ावों से भरा हुआ रहा है, जिससे लड़कर ममता ने अपनी पैठ बनाई और वे लोगों की लोकप्रिय दीदी बनीं।
ऐसा माना जाता रहा है कि राजनीति महिलाओं का अखाड़ा नहीं होता क्योंकि महिलाएं केवल रोटी सेंकने के लिए ही बनी होती हैं। महिलाओं को जिस क्षेत्र से अलग रखा जाता है, उसी क्षेत्र में आकर महिलाएं अपना परचम लहराना जानती हैं।
कुछ ऐसा ही क्षेत्र राजनीति भी है, जिससे भले ही महिलाओं को अलग रखा जाता रहा है लेकिन महिलाओं ने अपनी बुद्धिमता और तार्किकता से राजनीति को भी अपना अखाड़ा बना दिया है, जहां आए दिन होने वाले दंगलों को महिलाएं बड़ी ही तार्किकता से जीत लेती हैं।
बंगाल का चुनाव लोगों के जुबान पर चढ़कर बोल रहा था लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी ने अपनी साख फिर से जमा कर उन लोगों के मुंह पर ताला लगा दिया है, जो कहते हैं कि महिलाएं राजनीति नहीं कर सकतीं। केंद्र सरकार में ममता बतौर कोयला, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, युवा मामलों और खेल के साथ ही महिला व बाल विकास की राज्य मंत्री रह चुकी हैं।
एक महिला के लिए राजनीति में आना आसान नहीं होता क्योंकि समय-समय पर महिलाओं को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है और उन इल्जामों का जवाब मांगा जाता है, जिसे उन्होंने कभी किया तक नहीं होता है।
साल 2011 में ममता ने पश्चिम बंगाल में 34 वर्षों से सत्ता पर काबिज वामपंथी मोर्चे का सफाया किया थ, जिसके बाद साल 2012 में प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने उन्हें ‘विश्व के 100 प्रभावशाली’ लोगों की सूची में स्थान दिया था।
ममता बनर्जी का जीवन भी अनेक उतार-चढ़ावों से भरा हुआ रहा है, जिससे लड़कर ममता ने अपनी पैठ बनाई है और लोगों की लोकप्रिय दीदी के तौर पर उभर कर सामने आई हैं। पिता का साया सिर से उठने के बाद ममता ने घर के पालन-पोषण में दूध तक बेचने का काम किया था।
5 जनवरी 1955 को कोलकाता में जन्म लेने वाली ममता केंद्र में दो बार रेल मंत्री रह चुकी हैं। उन्हें देश की पहली महिला रेल मंत्री बनने का गौरव प्राप्त है। बंगाल की दीदी कहे जानी वाली ममता राजनीति के क्षेत्र में स्कूल के वक्त से ही जुड़ी हुई हैं।
जिस समय ममता कॉलेज में पढ़ रही थी, वह 70 का दशक था और इसी समय उन्हें राज्य महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया गया था। ममता ने दक्षिण कोलकाता के जोगमाया कॉलेज से इतिहास विषय से ग्रैजुएश्न करने के बाद इस्लामिक विषय में मास्टर्स की डिग्री को हासिल किया था।
उन्होंने श्री शिक्षायतन कॉलेज से बीएड की डिग्री ली जबकि कोलकाता के जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून की पढ़ाई की है।
राजनीति में उनकी सक्रियता साल 1970 से शुरू हुई, जब वह कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता बनी। साल 1976 से साल 1980 तक ममता महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं।
साल 1984 में ममता ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से हराया और सबसे युवा सांसद बनने का गौरव प्रप्त किया।
इसके बाद ममता को अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया गया लेकिन साल 1989 में कांग्रेस विरोधी लहर होने के कारण उन्हें जादवपुर लोकसभा सीट से मालिनी भट्टाचार्य के खिलाफ हार का स्वाद चखना पड़ा मगर साल 1991 के चुनाव में ममता ने कोलकाता दक्षिण संसदीय सीट से जीत हासिल करके अपना परचम लगराया।
दक्षिणी कलकत्ता (कोलकाता) लोकसभा सीट से सीपीएम के बिप्लव दासगुप्ता को पराजित करने के बाद ममता साल 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में इसी सीट से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुईं।
एक स्त्री हार सकती है लेकिन हार नहीं मान सकती क्योंकि एक महिला गिरकर उठना और लड़ना जानती है। मां के गर्भ से ही एक स्त्री का संघर्ष शुरु हो जाता है, शायद इसलिए महिलाएं लड़ना जानती हैं।
ममता बनर्जी का राजनीतिक जीवन उन सामाजिक बेड़ियों को भी अंगूठा दिखाता है, जो कहता है कि एक महिला के सिर पर पुरुष का साया होना जरुरी होता है।
ममता हमेशा परंपरागत सूती साड़ी में ही नज़र आती हैं और किसी भी प्रकार के साज-श्रृंगार से दूर रहती हैं। उनके कंधे पर टंगा एक सूती थैला उनकी पहचान बन चुका है। शादी-शुदा के टैग से मुक्त ममता ने अपनी डगर अपने हाथों ही रची है।
ममता जब खेल मंत्री थीं, उस वक्त सरकार से मतभेद होने पर उन्होंने इस्तीफा देना स्वीकार कर लिया था। राजनीति के विभिन्न पड़ावों पर मतभेद हुए, जिसे देख ममता ने अपने दांव अपनाए। कभी पार्टी से स्वयं को अलग कर लिया, तो कभी विवादों से घिरी रहीं लेकिन उन्होंने राजनीति में अपनी पैठ को बनाये रखा।
राजनीति के उतार-चढ़ावों से जूझते हुए ममता ने अपने लिए अनेक कीर्तिमान रचे और महिलाओं को भी संबल प्रदान किया कि महिलाएं जब चाहें, तब राजनीति को अपना बना सकती हैं।
ममता को रंगों का बहुत शौक है, जिसे वह पेंटिंग द्वारा साझा करती रहती हैं। वह एक अच्छी कवयित्री भीं हैं, उनकी राजनीति के नाम से आई कविता लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है।
एक महिला अनेक उतार-चढ़ावों को पार करके ही शीर्ष पर पहुंचती है। घर से ही महिलाओं को निर्णयों में शआमिल करना चाहिए, जिससे महिलाएं राजनीति में अपने कदम बढ़ा सकें। महिलाओं का मत भी बहुत जरुरी होता है, जिसे महिलाएं अक्सर साबित भी कर देती हैं।
मूल चित्र : PTI / Indian Express
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