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'मर्यादा का पालन' नाम की बेड़ियाँ बना औरत को बांध देना, या सिर्फ़ तब याद आना जब औरत की बात हो, ग़लत है। आपका क्या मानना है?
‘मर्यादा का पालन’ नाम की बेड़ियाँ बना औरत को बांध देना, या सिर्फ़ तब याद आना जब औरत की बात हो, ग़लत है। आपका क्या मानना है?
आर्थिक रूप से मर्यादा को कैसे शब्दों से परिभाषित किया जा सकता है?
सीमा, निरोध, प्रतिबंध, सामाजिक सम्मेलन, आदि को इसका अर्थ माना जाता है। सामाजिक तौर पर इसका अर्थ हम समाज द्वारा स्थापित शिष्टाचार का पालन करना मानते है।
पर इसी “मर्यादा” का इस्तेमाल कर औरतों पे सेकडों बंदिशे लगायी जाती रही हैं , उन्हें समाज के बनाए एक पिंजड़े के अंदर बंद कर उनको मर्यादा के नाम पर उसकी सीमा लागने से रोका जाता है।
घर जल्दी आने को, ढंग के कपड़े पहने को, सबसे अच्छे से पेश आने को, और भी कई चीजें बचपन से ही हमें सिखाया जाता है ताकि हम “मर्यादा में रहें”। पर यही बात आदमियों को क्यूँ नहीं बोली जाती?
इसी विषय पर हमने अपने पाठको से सवाल किया: मर्यादा का पालन सिर्फ़ औरतें ही क्यूँ करें? क्या मर्दों को मर्यादा का पालन करने की ज़रूरत नहीं?
कई पाठकों ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए इस पर अपने विचार व्यक्त किए।
मर्द बस औरतों को मर्यादा और रीति रिवाजों का पाठ पढ़ा सकते हैं खुद के लिए कोई नियम लागू नहीं करते क्योंकि भारत में पुरुष भगवान बने रहते हैं और औरतें उनकी गुलाम।
क्योंकि पुरुषों को भ्रम है के वो सुपीरियर हैं, जो कि है बिल्कुल भी नहीं। दुनिया के सबसे कमज़ोर जीव कोई है तो वो है पुरुष जो गाली से लेकर थकान मिटाने के लिए उसे औरत और शराब की जरूरत होती है। और दंभ भरते हैं के हम मर्द मजबूत है जबकि खोखला होते हैं ये मर्द।
पुरुष भी मर्यादा का पालन करते हैं। अनुशासहीनता एक निजी दुर्गुण है जिसके कारण व्यक्ति अपने साथ दूसरों को भी भ्रष्ट बना देता है। स्त्री हो या पुरुष आत्म सम्मान और दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कभी मर्यादा भंग नहीं होती।
सही मायने में मर्दो को ही मर्यादा का पालन करना बहुत जरूरी है, क्योंकि मर्द ही लिमिट क्रॉस करता है, मर्यादा में रहेगा तो दुष्कर्म जैसे महापाप नहीं करेगा।
इसकी उपज करने वाले हम ही हैं। बचपन से ही हमें माँ-बाप द्वारा यहीं सिखाया जाता है तुम लड़की हो ऐसे मत करो वैसे मत करो बचपन से ही लड़का लड़की में भेदभाव किया जाता है कभी प्यार से तो कभी डांट के। बदलाव लाना है तो खुद के परिवार से शुरू करो बेटों को सही शिक्षा दो इस भेदभाव को खत्म करो ताकि मर्यादा केवल औरत के हिस्से न आएं।
मर्यादा हर उस व्यक्ति के लिए है जो इसको समझते है। हर इंसान की मर्यादा है। जो आज ज़्यादातर औरतों तक ही सीमित कर रह गयी है। तुम मर्यादा में रहो बस, क्यूँकि तुमने अगर मर्यादा तोड़ी तो सबको अचानक मर्यादाएँ याद आ जाती हैं। और फिर बन जाते है सब हमारे हितेषी, हमारे सलाहकार, हमारे शुभचिंतक।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम को तो पुरुष मानते हैं परंतु मर्यादा क्या होती है यह नहीं जानते हैं। हां अगर बात महिलाओं को सिखाने की होती है तो खुद मर्यादा पुरुषोत्तम राम बन जाते हैं।
उन्हें भी जरूरत है। पर पुरुष प्रधान समाज में उन पर पाबंदी लगाने वाला कोई नहीं है।
मर्यादा हर एक व्यक्ति के लिए होती है और समाज और प्राकृतिक नियम अनुसार उसे इसका पालन करना चाहिए। क्यूँकि देखा गया है की जहां इसका उलंघन हुआ है वहाँ संकट ही आया है। पर इसे सिर्फ़ औरतों तक सीमित कर देना ग़लत है।
औरत हो या आदमी, यह सब पे लागू होती है ताकि संसार की नियति बनी रहे। पर मर्यादा नाम की बेड़ियाँ बना औरत को बांध देना, इसका विषय सिर्फ़ तब भी उठना जब औरत की बात हो, ग़लत है। पुरुषों का भी इसका पालन करने का उतना ही कर्तव्य।
मूल चित्र: Still from Show Balika Vadhu
A student with a passion for languages and writing. read more...
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