कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
भारतीय महिला सुन्दरता में किसी देश की नारी से कम नहीं है, यह बात पहली बार सुष्मिता सेन ने मिस यूनिवर्स बनकर पूरे विश्व के सामने रखी।
21 मई 1994 को एक सांवली सूरत वाली और लंबे कद की 19 वर्ष की एक भारतीय लड़की ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। उसने मिस यूनिवर्स बन कर दुनिया को यह दिखा दिया कि हिन्दुस्तानी लड़कियाँ किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। यह लड़की कोई ओर नहीं बल्कि सुष्मिता सेन ही थीं।
भारतीय महिला सुन्दरता में किसी देश की नारी से कम नहीं है, परन्तु यह बात पहली बार सुष्मिता सेन ने मिस यूनिवर्स बनकर पूरे विश्व के सामने रखी।
सुष्मिता सेन मनीला में संपन्न 43 वीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में इस सम्मान से सम्मानित होने वालों पहली भारतीय महिला थीं। इस सम्मान ने भारतीय महिलाओं को अहसास करवाया कि सुंदरता के जो मापदंड दुनिया के विकसित देशों ने बनाए हैं, भारतीय महिला उन सब मापदंडो पर भी खरी उतरती हैं।
19 नवंबर, 1975 को हैदराबाद में सुष्मिता सेन ने एक बंगाली परिवार में जन्म लिया। उनके पिता श्री सुबीर सेन वायुसेना में विंग कमांडर थे। उनकी माँ सुभ्रा सेन एक आभूषण डिजाइनर हैं।
सुष्मिता सेन काबिलियत और सुंदरता दोनों का समावेश है। इसी काबिलियत से उन्होंने यह सम्मान हासिल किया। इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवन में बहुत ही बोल्ड कदम उठाए। वह एक अकेली माँ की जिम्मेदारी उठाने वाली निडर महिला हैं। स्पष्टवादी सुष्मिता अपने जीवन के फैसले स्वयं लेने के लिए मशहूर हैं।
जब लोग कामयाबी पर पहुँच कर व्यस्त हो जाते हैं और केवल अपने बारे में सोचते हैं, उस समय में सुष्मिता सेन ने सन 2000 में एक बच्ची को गोद लेकर उसके भरण पोषण की जिम्मेदारी ली और उसके दस वर्ष बाद 2010 में एक और बच्ची को गोद लिया।
“ब्रह्माण्ड सुन्दरी बनी वो ऐसी पहली हिन्दुस्तानी है
और कोई नहीं वो तो सुष्मिता सेन बेटी रानी है।
झंडा जिसने भारत का पूरे विश्व पर लहराया था,
और कोई नहीं वो तो बंगाल की शान हमारी है।”
मूल चित्र: via Twitter
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
Please enter your email address