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माँ आराम बाद में करना, पहले मेरी रोटी बना दे…

जिस इंटर्नेट का इस्तेमाल कर माँ की फ़ोटो डाल रहे हैं, उससे आप खाना बनाना क्यूँ नहीं सीख सकते? या फिर ये हाथ सिर्फ़ पोस्ट बटन दबाने के लिए है?

जिस इंटर्नेट का इस्तेमाल कर माँ की फ़ोटो डाल रहे हैं, उससे आप खाना बनाना क्यूँ नहीं सीख सकते? या फिर ये हाथ सिर्फ़ पोस्ट बटन दबाने के लिए है?


अपने परिवार के लिए औरतों के त्याग और संघर्ष से सभी लोग परिचित हैं, पर आज भी हम इसे पितृसत्ता द्वारा तय किये गए मानकों के अनुसार ही मापते हैं। 

एक औरत दिन रात अपने परिवार का ध्यान रखती है, उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखती है। जिसमें सबसे मुख्य चीज है, खाना।

चाहे वो बच्चों का स्कूल का लंच हो या सास ससुर के लिए चाय नाश्ता। पति का घर आते ही खाना माँगना, या फिर बच्चों की खाने में अलग अलग फरमाइश। ये कहना ग़लत नहीं होगा की ज्यादातर औरतों का दिन का आधा समय किचन में ही निकल जाता है। 

और इस संघर्ष और मेहनत को सराहना जाना आवश्यक ज़रूरी है, लेकिन कई मामलों में इसकी ग़लत रूप में प्रशंसा की जाती है। 

ऐसा ही कुछ दिन पहले ट्विटर पर वायरल हुई एक फोटो में देखने मिला।

किसी व्यक्ति ने अपनी माँ की रोटियाँ बनाते हुए फोटो शेयर करते हुए लिखा “Unconditional love= *MOTHER* She is never off duty.” ( बेशर्त प्यार = *माँ* वह कभी भी ड्यूटी से छुट्टी नहीं लेती) 

सुनने में तो यह बहुत ही प्यारा लग रहा है। अपनी माँ की प्रशंसा करना तो बहुत ही अच्छी बात है। लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी की फ़ोटो में देखा जा सकता था की माँ रोटियाँ बना तो रही है लेकिन साथ ही ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर लगाए हुए। 

ये कैसा बेशर्त प्यार है? एक औरत का ऑक्सिजन की कमी होने के बावजूद किचन में खड़े हो खाना बनाना बेशर्त प्यार है, या उससे कराई जा रही है गुलामी? 

ट्विटर पर लोगों ने इसके ख़िलाफ़ अपने विचार व्यक्त किए

यह फोटो को वायरल होते समय नहीं लगा। और इस फ़ोटो के ख़िलाफ़ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए लोगों ने ट्विटर पे बहुत कुछ लिखा। 

तमिल फिल्म निर्माता नवीन मोहम्मदाली ने ट्विटर पर लिखा, “यह प्यार नहीं है। यह सामाजिक संरचना के नाम पर गुलामी है।”

लेखक, कोलम्निस्ट और डॉक्टर नंदिता ईअर ने इस फ़ोटो को ट्वीट कर बस लिखा “#thegreatindiankitchen

जो कुछ दिन पहले आयी मलयालम फिल्म द ग्रेट इंदीयन किचन की और इशारा करता है। उसमें भी यही दर्शाया गया था कि कैसे एक औरत दिन रात अपने आप से पहले अपने परिवार और उनकी जरूरतों का ध्यान रखती रहती है। 

पत्रकार और लेखन गौतम मेंगले ने ट्वीट कर लिखा, “जिसने भी इस हालत में उन्हें रसोई में काम करने से रोकने के बजाय खड़े होकर यह तस्वीर ली, वह इस मामले का पहला अपराधी है, समाज अगला है।”

निसवार्थ प्यार या ग़ुलामी?

हालांकि, की फ़ोटो का मूल सोर्स या क्या यह फोटो असली है या स्टेज्ड ये तो नहीं पता, क्यूँकि ये ध्यान देने की बात है कि चूल्हे के पास ऑक्सीजन ले जाना ख़तरनाक हो सकता है।

लेकिन इस फोटो ने ये ज़रूर साबित कर दिया की हम आज भी उसी पितृसत्तात्मक समाज में जी रहे है जहाँ किचन का काम सिर्फ औरत ही संभालेगी, भले ही वो किस भी हालत में हो। और हम उसके बदले उसे या तो यह सुनाएँगे की ये उनका फ़र्ज़ है या हम उसे देवी बना एक आसन पर बैठा देंगे (लेकिन सिर्फ़ सोच में ही हाँ, असलियत में उन्हें खाना बनाने से फुरसत दे तब ना वह बैठ के आराम करे) 

आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, कहने को तो समाज और लोगों की मानसिकता में भी प्रगति हुई है। फिर क्यूँ आज भी किचन सिर्फ़ औरत ही संभालती है। और क्या उसे छूटी नहीं मिलनी चाहिए? ख़ास कर जब उसकी तबियत ठीक ना हो? क्या बच्चे और पति इतने सक्षम नहीं की खाना बना सकें? कारण चाहे जो भी हो, ये तस्वीर एक भद्दा मज़ाक है!

जिस इंटर्नेट का इस्तेमाल कर वह फ़ोटो डाल रहे उसे इंटर्नेट से खाना बनाना भी सीख सकते है। या फिर ये हाथ उनके पास सिर्फ़ पोस्ट बटन दबाने के लिए है? 

मूल चित्र: Via Twitter

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Mrigya Rai

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