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मेरे जीवन में परी बनकर आई हो आप भाभी…

कैसे कहे बिंदिया अपनी भाभी से कि सबकी कटाक्ष भरी बातें चुभती हैं। अब नहीं सहते बनता। क्या मां ना बन पाना इतना बड़ा जुर्म है?

कैसे कहे बिंदिया अपनी भाभी से कि सबकी कटाक्ष भरी बातें चुभती हैं। अब नहीं सहते बनता। क्या मां ना बन पाना इतना बड़ा जुर्म है?

“अरे बिंदिया! तुम तैयार नहीं हुई शिवानी की गोद भराई में नहीं जाना है क्या?”

“जाने का मन तो है परी भाभी…”

“पर क्या बिंदिया? तेरी तो सबसे अच्छी दोस्त है ना फ़िर क्या अगर-मगर क्यूँ, चल जा जाकर तैयार हो जा। मां जी भी आने वाली होंगी मंदिर से।”

बिंदिया अनमने मन से वहां से चली गई, पर उसका दिल अंदर से कचोट रहा था। कैसे कहे भाभी से कि सबकी कटाक्ष भरी बातें चुभती हैं। अब नहीं सहते बनता। क्या मां ना बन पाना इतना बड़ा जुर्म है?

बिंदिया और शरद की शादी को पांच साल हो गए। शादी के बाद से दोनों निसंतान दंपति हैं जिन्हें समाज के ताने सुनने को मजबूर होना पड़ रहा। बिंदिया की भाभी है परी जो कि बहुत ही खुशमिजाज और जिंदादिल है।

परी बिंदिया को मनोवैज्ञानिक सलाह देकर उसे मानसिक रूप से कमजोर नहीं होने देती है। लतिका जी (बिंदिया की सास) बहुत ही धार्मिक स्वभाव की हैं जो बिंदिया और परी को अपनी बेटियों से कम नहीं मानती। बस कमी है घर में तो बिंदिया के मां बनने की।

अभी बिंदिया सोच ही रही थी कि परी कमरे में आ गई।

“क्या सोच रही है अभी तक, बिंदिया?”

“भाभी! आप तो सब जानती हैं कि कैसे सब मुझे ताने देते हैं। अब अगर शिवानी के घर जाऊंगी तो फ़िर कहने के लिए सबका मुंह खुलेगा।”

“तो क्या लोगों के डर से तुम कहीं आना-जाना छोड़ दोगी? क्या कभी हम घर वालों ने तुमसे कुछ कहा या तुम्हें हमारी बातें बुरी लगीं?”

“ऐसा क्यूं बोल रही भाभी, भगवान भी मुझे क्षमा नहीं करेगा अगर मैंने ऐसा सोचा भी। बड़ी किस्मत वालों को ऐसा घर नसीब होता है। कभी किसी ने मुझे एक शब्द नहीं बोला आज तक।”

“जब घर वालों ने तुझे कुछ नहीं कहा, जोकि तेरे अपने हैं। तो बाहर वालों की बातों से क्या डरना बिंदिया। ये तो लोगों के राज-काज हैं। अपना दुख देखा नहीं जाता और दूसरे का सुख सहा नहीं जाता। देख बिंदिया! ये फ़ालतू की बातों पर ध्यान ना दे। वैसे भी कल तेरी रिपोर्ट आ रही सब अच्छा ही अच्छा होगा।”

दूसरे दिन शरद और बिंदिया दोनों समय से डाक्टर के यहां गए। सारी रिपोर्ट्स के आधार पता चला कि बिंदिया गर्भधारण करने में असमर्थ है तो डाक्टर की सलाह अनुसार सरोगेसी ही एकमात्र विकल्प बचता है।

बुझे मन से दोनों घर आ गए और डाक्टर की बात को सबके सामने रखा। सरोगेसी के लिए किसी किराए की कोख को ढूंढना भी उतना ही बड़ा कार्य।

दूसरे दिन बिंदिया बुझे मन से जब सबको नाश्ता परोसने बैठी तो परी ने उसके हाथ पकड़ उसको बैठाया और सबके सामने बोला, “मैं सभी से एक बात कहना चाहती हूं। इन दोनों की बहुत ही प्रबल इच्छा माता-पिता बनने की, तो क्यूं ना घर के सदस्य होने के नाते हम इनका साथ दें।” 

मां जी कौतूहल से पूछ बैठीं, “वो कैसे बहू?”

“वो ऐसे मां जी, इनको सरोगेसी के लिए बाहर क्यूं भटकना जब मैं इनका साथ दें सकती हूं।”

सभी एकाएक परी को निहारने लगे। उसकी अचानक कही बात बिंदिया और शरद के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी।

“पर भाभी! क्या सच में? ऐसे कैसे? भाभी…” टूटी फूटी आवाज़ में बिंदिया बोल‌ नहीं पा रही थी।

“हां बिंदिया! कल मैं और तेरे भईया इस बात पर विचार करने के बाद ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। अगर हम घर वाले ही साथ ना दे सके तो किस काम के।”

परी की बातों को सुनकर बिंदिया ने उसे गले लगा लिया। परी की  शारीरिक ऊष्मा जैसे बिंदिया को ताकत दे रही थी। बिंदिया बस आंखों के आंसू से धन्यवाद कहते ना थक रही थी।

सारी डाक्टरी औपचारिकता के बाद परी ने गर्भधारण किया। और समय के साथ चलते आखिर वो घड़ी भी आ गई जिसका बिंदिया को कबसे इंतज़ार था। बच्चे की किलकारी सभी घर वालों में अचानक एक ताकत का एहसास करा गई। कि कितनी भी परेशानियां आए हम परिवार के लोग एकजुट हैं।

बच्चे के चेहरे को निहारने के बाद बिंदिया ने परी के पैरों को स्पर्श कर आशीर्वाद लिया।

“ये क्या कर रही बिंदिया?”

“आप मेरे लिए देवी हो भाभी, जिसने मुझे मां शब्द का एहसास करा दिया। त्याग की मूर्त को कैसे ना नमन करूं मैं। ये एहसान तो हम ज़िंदगी भर ना चुका पाएंगे। आप सच में हमारे जीवन में परी बनकर आई हो भाभी। आप जैसी महिलाओं को मेरा दिल से नमन जिसने मुझे जीवन की सबसे बड़ी खुशी दे दी।”

जीवन में हर छोटी-बड़ी खुशियां अनमोल होती हैं। वो चाहें जिस रूप में हमारे सामने आएं और या खुशी देने वाला कारक कोई भी हो। अगर आप भी किसी को खुशी देने की वजह बने हों तो ज़रूर बताएं।

 

मूल चित्र: Still from Preganews Via Youtube

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