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एक सी परिस्थिति में ही बेटा के लिए अलग और बेटी के लिए अलग नजरिया रखते हुए रीमा अनजाने में बच्चों की परवरिश में अंतर कर रही थी।
शाम की चाय पूरा परिवार एक साथ पीता तो बातों का भी सिलसिला चल पड़ता था। रीमा पति और बच्चों के चेहरे पर तैरती खुशियों को देख बहुत खुश थी। एक गृहिणी यही तो चाहती है।
ऐसे ही बातों बातों में बेटा मनु ने अपने दिल का हाल खोल दिया था। बचपन से वह देखता आया कि माँ उसकी बहन को उसकी तुलना में बहुत ज्यादा महत्व देती है। कभी कभी वह इस बात से नाराज भी हो जाता था। उस समय माँ उसे प्यार कर मना लेती। पर बेटी को बेटा से ज्यादा महत्व देने से नहीं चूकती।
तब पापा बेटे को प्यार से पुचकारते और खूब बातें करते। सदा शांत रहने वाले पापा चुपके से उसे अपने बचपन की शरारतों के किस्से सुनाते, तो वह अपनी नाराजगी भूल पापा की बातों में खो जाता।
वे अपनी जिंदगी की पुरानी बातों का उदाहरण देकर भी उसे समझाते, “बेटा, जब मैं जॉब करने पहली बार नये शहर में गया था। मुझे घर के काम करना, खाना बनाना बिलकुल नहीं आता था। होटल में खाना खाता और चाय भी किसी टी स्टॉल पर पी लेता। इससे स्वास्थ्य खराब होने लगा। धीरे धीरे हल्का फुल्का काम सीखा तो चाय घर पर ही बनाने लगा। कभी मैगी नूडल्स बना लेता तो कभी पोहा भी बनाने लगा।”
मनु आश्चर्य से पापा की तरफ देखने लगा। तब वे बोले, “घर का काम सबको करना चाहिए। बेटा को भी।”
माँ से उपेक्षित मनु अपने पापा से प्यार और मार्गदर्शन पाकर माँ के कामों में मदद भी करने लगा। छोटे छोटे काम करते हुए रसोई में माँ से खाना बनाना सीख लिया।
इसलिए लॉकडाउन में जब हेल्पर नहीं आया तब मनु ने वर्क फ्रोम होम करते हुए समय पर चाय बनाकर भी पिया और खाना बनाकर खाया भी। उसे किसी पर निर्भर होने की जरूरत ही नहीं पड़ी। माँ पापा के पास आकर भी वह माँ के कामों में मदद करता रहता ताकि माँ पर काम का अधिक बोझ न पड़े।
रीमा को बेटे के दिल की बात जब पता चली तो उसे बहुत अफसोस हुआ। सच, वह शुरू से ही सिर्फ बेटी को ही महत्व देती आयी थी। इसलिए वह कहीं न कहीं बेटे के साथ अन्याय कर रही थी और उसे इसका अंदाजा भी नहीं था। वो तो अच्छा हुआ कि पति राकेश ने बेटे को समय रहते संभाल लिया और दोनों बच्चों को सही परवरिश मिली।
उसने पति से शिकायत भरे लहजे में पूछा, “आपने बेटे को सही समय पर सही बातें सिखाया। पर आप मुझसे ज्यादा बात नहीं करते थे। क्यों? आपकी चुप्पी से मुझे बहुत गुस्सा आता था।”
पत्नी की शिकायत का जवाब देते हुए पति ने कहा, “तुम तो तुम हो। अपनी मर्जी के आगे मेरी बात सुनना ही नहीं चाहती थी। तो मैं ने भी ज्यादातर मामलों में चुप रहना ही बेहतर समझा। ताकि घर में बेवजह की कलह न हो।” रीमा ने भोलेपन से कान पकड़ कर पति को ‘सॉरी’ कहा, तो पति उसकी मासूमियत पर फिदा होते हुए प्यार से मुस्कुरा दिए।
अब रीमा का नजरिया बिलकुल बदल गया। उसके लिए बेटा और बेटी दोनों बराबर हैं। वह समझ गयी कि दोनों को पढ़ाई और ऑफिस के साथ साथ घर के काम करने भी आने चाहिए।
और एक बात रीमा ने गाँठ बाँध ली कि घर को पति और पत्नी दोनों मिलकर चलाते हैं। सिर्फ पत्नी ही बच्चों की परवरिश नहीं करती है, इसमें पति का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है। शांत रहकर भी उसके पति ने समझदारी से परिस्थितियों को संभाला और बेटे को सही राह दिखाया।
गलत नजरिया को बदल कर के ही खुशियों की छांव नसीब होती है। एक सी परिस्थिति में ही बेटा के लिए अलग और बेटी के लिए अलग नजरिया रखते हुए रीमा अनजाने में बच्चों की परवरिश में अंतर कर रही थी।
मूल चित्र: Meri Maggi Via Youtube
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